नेपियर, रावर्ट कार्नेलिस मैगडैला के प्रथम बैरन (सन् १८१०-१८८०), ब्रिटिश फील्डमार्शल मेजर चार्ल्स फ्रेडरिक नेपियर के पुत्र, ने श्री लंका देश के कोलंबो नगर में जन्म लिया था। सन् १८१० में प्रशिक्षण के उपरांत वे नवंबर १८२८, में रॉयल इंजीनियर्स विभाग में नियुक्त हुए। कुछ वर्ष नहर विभाग में कार्य करने के पश्चात् सन् १८३८ में इन्होंने दार्जीलिंग के नए पहाड़ी नगर को बसाया। सन् १८४२ में सरहिंद में इन्होंने अफगानिस्तान से लौटनेवाली फौजों के लिए नए ढंग की छावनी बसाई। पंजाब में ब्रिटिश शासन आरंभ होने के कुछ समय पश्चात्, इन्हें चीफ इंजीनियर का पद दिया गया। ये सन् १८५६ तक इस पद पर रहे और इन सात वर्षों की अल्प अवधि में इन्होंने पंजाब की वर्तमान सड़कों, नहरों और रेलों की नींव रखी। इनके महत्वपूर्ण कार्यों में भारत के महान उत्तरी मार्ग का पंजाब खंड और बारी दोआब नहरें हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने हजारों मील सड़कों, दफ्तरों की इमारतों, किलों और कई नहरों का निर्माण किया। इन कार्यों पर बहुत अधिक व्यय होने के कारण पंजाब के तत्कालीन शासक, लार्ड लॉरेंस, ने गवर्नर जनरल से इनकी शिकायत की। इस पर ये छुट्टी लेकर इंग्लैंड चले गए। पर सन् १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के लखनऊ में घिर जाने पर, ये जनरल ऊटरैम की सहायता के लिए आ पहुँचे और इन्हीं की मोरचाबंदी से अंग्रेजों ने लखनऊ में विजय पाई। इन्होंने फिर ग्वालियर, मुरार आदि के युद्धों में भाग लिया और अंत में मानसिंह तथा तालिया टोपे को पकड़ने में सन् १८५९ में सफल हुए। इस सफलता पर इन्हें के.पी.बी. की पदवी मिली। जनवरी, १८६० में ये चीन देश के मुहिम पर भेजे गए और वहाँ इन्होंने सिंहों के युद्ध और पीकिंग के प्रवेश में भाग लिया। वहाँ से लौटने पर ये चार वर्ष गवर्नर जनरल की कौंसिल के सैनिक सदस्य रहे और लार्ड एल्गिन की असामयिक मृत्यु पर कुछ दिन गवर्नन जनरल रहे। जनवरी सन् १८६५ में ये बंबई सेना के सेनापति बनाए गए। सन् जहाँ उन्हें अपनी सेना चुननी पड़ी और सब तैयारियाँ उन्हें ही करनी पड़ीं। वहाँ मगडाला के किले पर विजयी होकर ये जून १८६८ में लौट आए। इस विजय पर कई बड़ी पदवियाँ प्रदान की लाने के अतिरिक्त इन्हें लॉर्ड मगडाला बनाया गया। सन् १८७० से सन् १८७६ तक ये भारतीय सेना के सेनापति पर पर रहे। इसके पश्चात् ये सन् १८८३ तक जिब्राल्टर के शासक रहे। पहली जनवरी सन् १८८३ को इन्हें फ्रील्डमार्शल की पदवी दी गई और दिसंबर १८८६ में ये कांस्टेबिल ऑव दि टावर ऑव लंदन में हुआ। ऐसी अभूतपूर्व सफलता और संमान बिरले ही किसी इंजीनियर को अपने जीवन में प्राप्त हुए हैं।(ब्रजमोहनलाल)