नेटाल (Natal) स्थिति : २८रू ३०फ़ द.अ. तथा ३०रू ३०फ़ पू.दे.। यह दक्षिणी अफ्रीका संघ का सबसे घना (७,११० व्यक्ति प्रति वर्ग मील) आबाद प्रांत है। इसका क्षेत्रफल ३३,५७८ वर्ग मील और जनसंख्या २९,७९,९२० (१९६०) थी। इसमें दो प्रमुख नगर पीटर मैरिट्स वर्ग और डरबिन हैं।
संपूर्ण देश शेल और बलुआ पत्थर जैसी परतदार चट्टानों के एकनत (monoclinical) वलन (fold) पर बसा है। मोड़ के अक्ष पर क्षरण के कारण भीतर की ग्रेनाइट और शिस्ट चट्टानें उधर आयी हैं, पर अन्य भागों में परतदार चट्टानों के कटाव से भूमि सीढ़ीनुमा और ऊबड़ खाबड़ हो गई है। तटीय पट्टी की ऊँचाई १,००० फुट से कम और चौड़ाई लगभग २० मील तक है, मध्यभाग की ऊँचाई २,००० फुट से ४,००० फुट और पश्चिमी भाग की ऊँचाई ४,००० फुट से ड्राकेंजबर्ग श्रेणी के अंचल तक ६,००० फुट तक है। पश्चिमी मुख्यश्रेणी से समकोण बनाती हुई लघु श्रेणियों के बीच में उपजाऊ घाटियाँ हैं। नदियाँ तीखी ढाल, गहरी घाटियाँ और जलप्रपात बनाने के कारण नौगम्य नहीं हैं।
तटप्रदेश का जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय है। औसत ताप २१रू सें. और तापांतर १०रू सें. है। अत: प्रदेश में औसत ताप १८रू सें. एवं तापांतर ८रू सें. है। वर्षा मुख्यत: दक्षिण-पूर्वीं वायु से तट पर औसतन ४०फ़ फ़ और देश के आंतरिक भाग में २५फ़ फ़ होती है। तट पर जाड़े में भी पछुआ हवाओं से वर्षा हो जाती है पर देश का आंतरिक भाग सूखा रहता है और पाला भी पड़ता है।
जानवरों में सिंह, तेंदुआ, मृग, लकड़बग्घा, सियार, साही, हरिण ऊदविलाव, दरिआई घोड़ा, मगर एवं साँप और पक्षियों में सारस, गिद्ध, गरुड़, तीतर, बटेर और मुर्गे मिलते हैं। यहाँ की वनस्पतियों में सुंदर फूलों मुख्यतया लिली का स्थान प्रमुख है।
निवासी - यहाँ के ७५ प्रतिशत निवासी नीग्रो जाति के घुँघराले बाल, मोटे होंठ और काली चमड़ी वाले जंतू हैं जिनके तृतीयांश तो अभी तक कबायली वातावरण में पशुपालन और खेती करते हैं, तृतीयांश गौरांगों के खेतों में और शेष तृतीयांश शहरों तथा खानों, कारखानों आदि में मजदूरी करते हुए पश्चिमी सभ्यता से काफी प्रभावित हुए हैं। यहाँ का शासन यहाँ की श्वेत जातियों की ११ प्रतिशत आबादी के हाथ में है। इनमें अधिकांश अंग्रेज और डच तथा कुछ जर्मन, स्कैडिनेविया निवासी और फ्रांसीसी हैं। १३ प्रतिशत निवासी एशियाई हैं, जिनमें ९७ प्रतिशत भारतीय हैं। इनका सर्वाधिक जमाव तटप्रदेश में है। भारतीयों में ५ प्रतिशत मुसलमान और शेष हिंदू हैं जिनमें से अधिकांश गुजरात और मद्रास के रहने वाले हैं। यहाँ दक्षिणी अफ्रीकी जनसंख्या के ८२ प्रतिशत भारतीय बसते हैं। ये यहाँ ईख मजदूर के रूप में इस करार पर लाए गए थे कि पाँच साल के बाद ये कोई भी काम चुनने और १० साल के बाद चाहेंगे तो निश्चित स्वदेश लौटने के हकदार होंगे। परंतु लौटनेवाले नगण्य थे, शेष यहीं बगानों, होटलां, घरों, कारखानों और व्यवसायों में लग गए। अपने निम्न जीवन स्तर और तीव्र वंश वृद्धि के कारण इन्होंने गोरों को व्यापार और संख्या दोनों में पछाड़ दिया, परिणामस्वरूप १८९६ ई. से इनका निर्बाध आना और १९१३ ई. से एकदम आना ही रोक दिया गया। १९२७ ई. में सरकार ने भारत लौटने वालों को बोनस देने का लालच दिया, जिससे २० वर्षों में लगभग १ लाख व्यक्ति लौट आए, पर अधिकांश लोगों ने वहाँ का नागरिक अधिकार मांगा जो अभी तक प्राप्त नहीं हुआ। इसी कारण महात्मा गाँधी ने अपना प्रथम सत्याग्रह यहीं से आरंभ किया था। एक प्रतिशत से कुछ अधिक निवासी संकर (गोरों और कालों के मिश्रित रक्तवाले) जाति के हैं। गोरों के अतिरिक्त किसी जाति को नागरिकता के समुचित अधिकार प्राप्त नहीं हैं। फलस्वरूप यहाँ की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अवस्था में निरंतर तनाव बना रहता है।
आर्थिक अवस्था - तट प्रदेश में गन्ना, केला, अनन्नास और खट्टे फल, उत्तर और पूर्व में कपास और शुष्क क्षेत्रों में मकई, जौ, जई मूँगफली, आलू और तंबाकू की खेती होती है। पशुपालन में अफ्रीकी संघ का यह प्रमुख प्रांत है।
कोयला इस प्रांत का एकमात्र महत्वपूर्ण खनिज है, कहीं कहीं इसकी परत के नीचे १ से लेकर ६ फुट तक मोटी कच्चे लोहे की तरह मिलती है। गन्ने से चीनी और छोआ बनाकर निर्यात किया जाता है। छोआ (शीरा) से मोटर स्पिरिट, में थिलेटेड स्पिरिट, ईथर और प्लासिटक बनाए जाते हैं। एक प्रकार के बवूल, वैटल (ज़्aद्यद्यथ्ड्ढ) वृक्षों की छाल का सत (चमड़ा कमाने के लिए), ताले तथा डिब्बाबंद फल भी यहाँ से निर्यात होते हैं।
भूमि की असमता के कारण यातायात में बहुत कठिनाई होती है। डरबैन से ट्रैसवाल जानेवाली विद्युत् रेल का मुख्य रेलमार्ग हजारों फुट की ऊँचाई पर चढ़ता उतरता है। डरबैन से पोर्ट शेषस्टोन और पाँगोला की लाइन गन्ना क्षेत्र के लिए पीटरमैरिट्स वर्ग (Pietrema-ritzburg) से क्रैंत्जका (Krantzkop) वैट्ल क्षेत्र के लिए और गलेन से डंडी और फ्राइहेट कोयला क्षेत्र के लिए बनी है। डरबैन के अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह से ट्रैंसवाल और रोडीज़िया के खनिजों का भी निकास होता है।
इतिहास एवं शासन - वैस्को-ड-गामा १४९७ ई. बड़े दिन को इस स्थान पर पहुँचा, इसलिए इसका नाम नेटाल (जन्मदिवस) रखा। केपटाउन की डच सरकार ने १६८९ ई. में डरबैन की खाड़ी को हस्तगत किया परंतु इसे बसाना आरंभ किया एक अंगरेज नौसेना अधिकारी फेयरबेल ने। डच फिर महान् यात्रा (ग्रेट ट्रैक) में उत्तर से पहुँचे और जूलू सरदार डिंगान को हराकर १८४३ ई. में नटैलियन प्रजातंत्र घोषित किया, परंतु यहाँ पर पहले से जमे अंगरेजों ने १८४४ ई. में फिर इस पर कब्जा कर इसे केप उपनिवेश का अंग बना लिया और १८५६ ई. में इस्र पृथक् राजकीय उपनिवेश (क्राउन कालोनी) बना दिया। १८९७ ई. में ज़ूलूलैंड को सम्मिलित कर लिया गया और सन् १९०३ में फ्रेहेट (Vryheid) क्षेत्र को ट्रैसवाल से निकालकर इस प्रांत में मिला लिया। अंत में १९१० ई. में यह दक्षिणी अफ्रीकी संघ का प्रांत बन गया। (रा.प्र.सिं.)
प्रांतीय विधायिका का अधिकार हाईस्कूलों, अस्पतालों एवं सड़कों की व्यवस्था तक ही सीमित है। काउंसिल की अवधि तीन वर्षों की होती है, जिसमें २५ सदस्य होते हैं। संघ के गवर्नर जनरल द्वारा पाँच वर्षों के लिए मनोनीत शासक के हाथ में शासनाधिकार होता है। इसकी सहायता के लिए काउंसिल से निर्वाचित चार सदस्यों की एक शासकीय काउंसिल होती है जिसकी अवधि तीन साल होती है। बजट संतुलन के लिए यह केंद्र पर आश्रित है।
२. नगर, स्थिति : ५रू ५०फ़ द.अ. तथा ३५रू १०फ़ प.दे.। यह ब्राज़िल में एक नगर, बंदरगाह एवं रीऊ दू नॉटें राजय की राजधानी है। यह रीऊ गैंडे दू नाटें नदी के दाहिने किनारे पर डेल्टा से दो मील ऊपर स्थित है। यहाँ पर एक उत्तम बंदरगाह है जिसका प्रयोग ब्राजिलियन सरकार नौसेनिक डिपों के रूप में करती है। यहाँ पर एक प्रसिद्ध हवाई अड्डा भी है। उद्योगों में सूती वस्त्र बनाना प्रमुख है। शक्कर एवं सूती कपड़े का निर्यात किया जाता है। इस नगर की स्थापना सन् १५९७ में एक सैनिक चौकी के रूप में हुई थी तथा सन् १८२० में यह प्रांत की राजधानी बन गया। यहाँ की जनसंख्या १,६२,५३७ (१९६०) थी।
३. नगर, हिंदेशिया में सुमात्रा द्वीप के पश्चिमी किनारे पर स्थित एक नगर है।
(राजेंद्रप्रसाद सिंह)