नूर्डेनशल्ड, निल्स ऐडॉल्फ एरिक, बैरन (Nordenskjold. NiIs Adolf Erik, Baron, 1832-1901) स्वीडन देश के निवासी तथा ध्रुव प्रदेश के समन्वेषक थे। इनका जन्म हेल्सिंगफॉर्ज़ (Helsingfors) में हुआ था, किंतु ये स्टॉकहोम (Stockholm) में बस गए थे।
आटो टॉरेल (Otto Torell) नामक भूवैज्ञानिक के आवाहन पर ये ध्रुवीय महासागर में स्थित स्पिट्सवर्जेन द्वीप के अन्वेषण के लिए गए, जहाँ इन्होंने तृतीयक (Tertiary) युग की वनस्पतियों के अवशेष ढूंढ निकाले। वापस आने पर ये स्वीडन राज्य संग्रहालय में खनिज विभाग के आचार्य तथा अध्यक्ष नियुक्त किए गए। स्पिट्सबर्जेन के सन् १८६१ वाले अभियान में भी इन्होंने भाग लिया तथा सन् १८६० में स्वीडन की विज्ञान ऐकेडेमी द्वारा उसी क्षेत्र में भेजे जाने वाले अभियान के ये अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् १८६४ में ये यात्रा करते हुए ८१� ४२� उत्तर अक्षांश तक पहुँच गए। पूर्वीय गोलार्ध में तब इतने आगे तक कोई नहीं गया था। अन्वेषण के उद्देश्य से इन्होंने सन् १८७० में ग्रीनलैंड की तथा सन् १८७२ में स्पिट्सवर्जेन की यात्राएँ कीं। पहली यात्रा में समस्त शीत ऋतु इन्हें इसी द्वीप पर बितानी पड़ी।
सन् १८७५-७६ की सफल यात्रा से उत्साहित होकर ये जून सन् १८७८ में ध्रुवीय सागर से निकलने के उस उत्तर-पूर्वी मार्ग के अन्वेषण में निकले जिसकी दीर्घकाल से खोज थी। चिल्यूस्किन (Chelyuskin) अंतरीप पार करने पर इनका जहाज वेग (Vega) बेरिंग जलसंधि के पास बरफ में फँस गया, किंतु ग्रीष्म ऋतु आने और जहाज के बरफ से छूटने पर ये अपनी यात्रा का उद्देश्य पूर्ण करने में सफल हुए। स्वदेश पहुँचने पर देशवासियों और वहाँ की सरकार ने इनका बहुत सम्मान किया तथा इन्हें बैरन की उपाधि मिली। सन् १८८३ में ये फिर ग्रीनलैंड पहुँचे और तीन सौ वर्षों से वहाँ के जिस हिमविस्तार को कोई पार नहीं कर सका था उसे इन्होंने पार किया। इनकी मृत्यु सन् १९०१ में हुई।(भगवानदास वर्मा)