नूरुद्दीन कुतुब आलम, बंगाली नाम शैख नूरुद्दीन था किंतु नूर कुतुब आलम के नाम से प्रसिद्ध थे। पिता का नाम शैख अलाउद्दीन अलाउल्हक था जो बंगाल के महान् सूफी थे। जन्म हि. ७२२ (१३२२ ई.) में हुआ था। वह हिंदुस्तान के एक महान् सूफी थे और भक्ति की संपूर्ण विशेषताओं से संपन्न थे।
वह अपने पिता की खानक़ाह के समस्त सूफी संतों की सेवा में व्यस्त रहते, उनके कपड़े धोते, पानी गर्म करते तथा शौचालय की सफाई भी करते थे। एक दिन एक सूफी ने उनके वस्त्रों पर पाखाना फिर दिया किंतु इससे उनके माथ पर बल तक न आया। यह देखकर उनके पिता अति प्रसन्न हुए तथा आर्शीवाद दिया। उनके बड़े भाई आजम खाँ बंगाल के प्रधान मंत्री थे। छोटे भाई की दीन-हीन दशा देखकर उन्होंने नूर कुतुब आलम से आग्रह किया कि वह कोई उच्च सरकारी पद स्वीकार कर लें किंतु उत्तर मिला, 'दास को आप' के उस धन, पद और पदवी की आवश्यकता नहीं, वह अस्थायी है। खानक़ाह के लिए बन से लकड़ी काट कर लाना प्रधान मंत्री के पद से कहीं अधिक बड़ा पद है'।
बंगाल की मध्यकालीन राजनीति पर आपने बहुत प्रभाव डाला था। जब दीनाजपुर के राजा गणेश नामक एक हिंदू जमींदार के षड्यंत्र के फलस्वरूप सुल्तान ग्यासुद्दीन की हत्या हो गई और राजा बंगाल के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ तथा उसने मुसलमानों के प्रति कठोर की नीति अपनाई तो नूर क़ुतुब आलम ने जौनपुर के बादशाह सुल्तान इब्राहिम शर्क़ी को सहायता के लिए पत्र द्वारा आमंत्रित किया। सेना आई। राजा भयभीत होकर उनकी सेवा में उपस्थित हुआ तथा क्षमायाचना के उपरांत उसने अपने पुत्र को इस्लाम धर्म में दीक्षित करा दिया जो उसकी मृत्यु के उपरांत बंगाल का राजा हुआ और उसके शासनकाल में इस्लाम धर्म की बहुत उन्नति हुई।
उनका आध्यात्मिक प्रभाव बंगाल तक ही सीमित न था अपितु उनके आध्यात्मिक प्रकाश से संपूर्ण भारतवर्ष-प्रकाशित था। उनके खलीफाओं में शैख हिसामुद्दीन ने कटरा मानिकपुर में, शैख शम्सुद्दीन ताहिर ने अजमेर और शाह काकू ने मुल्तान में खानक़ाहें स्थापित कर इस्लाम धर्म का खूब प्रचार किया।
नूर क़ुतुब आलम का स्वर्गवास ८१३ (१४१० ई.) में हुआ। भव्य समाधि पांडोह नामक ग्राम में है जो माल्दा जिले में है।
सं.ग्रं. - शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिम देहलवी: अख्बारुल अखियार (उर्दू अनुवाद) करांची, १९६३,२७१-२७६; मौलावी गुलाम सर्वर: खज़ीनतुल आस्फ़िया, नवल किशोर, भाग १,३९२-३९३; रियासजुस सुलातीन (अंग्रेजी अनुवाद) कलकत्ता, १९०२, ११३-११८; शैख़ हिसामुद्दीन मानिकपुरी: रुफ़ीक़ुल आरफ़ीन; शैख मुहम्मद इक्राम: आबे कौसर, लाहौर, १९५२,३४७-३५४; बंगाल-पास्ट ऐंड प्रेजेंट, १९४८; सरकार: हिस्ट्री आफ बंगाल, भाग २।(मोहम्मद उमरठ)