नीली छाप (Blue print) सर्वेक्षण से संबंधित मानचित्र मुद्रित प्रति को कहते हैं, जो हस्तरेखण से लिथो मुद्रण द्वारा हलके प्रूसियन या कोबाल्ट के नीले रंग में तैयार की जाती है। ऐसा मुद्रण सामान्यत: मोटे रेखण कागज पर विशेष शुद्ध रेखण क्रिया के लिए अनिवार्य रूप से नीले रंग में किया जाता है। नीले रंग की यह विशेषता होती है कि यदि नीली छाप की फोटोग्राफी की जाए तो वह चित्रित नहीं होता है। इसका लाभ नीचे के वितरण में स्पष्ट किया गया है।
उपर्युक्त विशेषशुद्ध रेखप्रक्रिया की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि सर्वेक्षक पृथ्वी की सतह पर आवश्यक माप लेकर पहले पहल हाथ से मानचित्र तैयार करता है। मानचित्र बनाने की दो विधियाँ हैं, एक पटलचित्रण (plane tabling) की और दूसरी हवाई सर्वेक्षण, अर्थात् सवेंक्षित क्षेत्र के वायुयान से लिए गए चित्रों से सर्वेक्षण की। दोनों ही विधियों से एक संपूर्ण मानचित्र बनाने में कुछ महीने लग जाना सहज बात है। इसमें शीघ्रता से न्यूनतम सहायक उपकरणों का प्रयोग करके, एक ही कागज पर लंबी अवधि तक हाथ से काम करना पड़ता है। फलत: सावधानी रखने पर भी कागज गंदा हो जाता है और रेखण में भद्दापन आ जाता है। बहुधा यह भी होता है कि साधारण स्थालकृति (topographical) सर्वेक्षण का एक मानचित्र, कार्य की निर्धारित अवधि में, एक सर्वेक्षक के लिए बना पाना संभव नहीं होता है। अत: एक मानचित्र को दो, या कभी कभी सर्वेक्षण क सुविधा की दृष्टि से दो से अधिक, भागों में बाँट कर प्रत्येक भाग भिन्न भिन्न सर्वेक्षक को अलग अलग सर्वेक्षण के लिए दे देते हैं। इन्हें जोड़कर पूर्ण मानचित्र का सही रूप देने की एक अलग समस्या पैदा हो जाती है। यदि किसी प्रकार से जोड़ हो भी जाए तो भी भिन्न भिनन सर्वेक्षक द्वारा किए गए कार्य में एकरूपता होना कठिन है। अत: सर्वेक्षक अपनी विवशता और मशीन की तुलना में हाथ की सीमित दक्षता के कारण अपने बनाए मानचित्र की स्वच्छता, सुलेख और एकरूपता से संतुष्ट नहीं होता। इस कारण वह सारे संकलित (mosaicked) मानचित्र को फिर से संतोष, धैर्य और विशेष तौर से शुद्ध रेखण के लिए बने कई सहायक उपकरणों की सहायता से बनाना चाहता है।
एक ही मानचित्र में विभिन्न प्रकार के विवरणों (details) को भिन्न भिनन रंगों में छापने की सुविधा और सरलता के लिए एक नीली छाप पर एक रंग के विवरण का रेखण होता है। इसके लिए वह सर्वेक्षक वास्तविक मानचित्र के वांछित पैमाने से सामान्यत: ५० प्रति शत बड़े, अर्थात् डेढ़ गुने, पैमाने पर हाथ द्वारा बनाए मानचित्र की कई नीली छापें मोटे कागज पर प्राप्त करता है। यह स्मरणीय है कि सभी नीली छापों पर संपूर्ण रेखण नीले रंग में होता है, जिसे मुद्रण विधियों से समुचित रंग दिया जाता है। शुद्ध रेखणप्रक्रिया से कार्यक्षेत्र (field) में किए रेखण की बुराइयों को जैसे, एक ही विवरण के रेखण में बनाई रेखाओं की मोटाई में भिन्नता, बिखरी झोपड़ियों के आकारों में असमानता, रेलमार्ग और मुख्य सड़कों आदि की वक्रता में कुरूपता आदि, को समान और सुघड़ रेखण से दूर करने में बहुधा जगह-जगह नीला रंग छूट जाता है। जब ऐसे शुद्ध रेखण से बने मानचित्र की फोटोग्राफी द्वारा प्रतियाँ बनाई जाती हैं तब छूटा हुआ नीला रंग उनपर नहीं उभड़ता है। शुद्ध नीले रंग की इसी विशेषता के कारण शुद्ध रेखण के लिए बनाई प्रतियों में इसका प्रयोग किया जाता है। अन्य सभी रंग फोटोग्राफी में चित्रित हो जाते हैं।
मानचित्र संकलन (mosaicking) और नीली छाप बनाना - बहुधा दो या दो से अधिक भागों से एक मानचित्र का संकलन करना होता है। इन संकलित प्रतियों से नीली छाप बनती है। ये दोनों क्रियाएँ साथ साथ हो जाती हैं, जिनका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जा रहा है।
जब किसी पुराने मानचित्र के कुछ ही भागों का संशोधन आवश्यक हो और ऐसा करने के बाद संपूर्ण मानचित्र छापने योग्य हो जाए, तब मूल मानचित्र की भूरी छाप तैयार की जाती है। संशोध्य भाग का संशोधन करके संशोधित मानचित्र का मुद्रण कर लिया जाता है। इसका लाभ यह होता है कि हलका भूरा रंग, जिससे छाप बनती है, ऐसा चित्ताकर्षी नहीं होता है। जिससे संशोधन लुप्त हो सके या सर्वेक्षक किसी प्रकार के भ्रम में पड़े। इसके साथ ही भूरा रंग फोटोग्राफी में चित्रित हो जाता है। अत: सर्वेक्षक आवश्यक भाग को खुरच कर, संशोधित सर्वेक्षण का ही रेखण करके मुद्रण के लिए दे देता है।
मानचित्र की काली छापें भी बनती हैं, जो संकलन और नीली छाप पर शुद्ध रेखण करते समय हलके नीले रंग के कारण विवरण को पहचानने की सहायता आदि में प्रयुक्त की जाती हैं।(गुरुनारायण दुबे)