नीलक अथवा अंग्रेजी में सुप्रसिद्ध लाइलक (lilac) नामक सर्वप्रिय, मनमोहक, रंगदार और सुगांधित फूलों के पतझड़ पौधे का वानस्पतिक नाम सिरिंगा वल्गेरिस (Syringa vulgaris) है। ओलिएसिई (Oleaceae) वंश का यह झाड़ी सदृश पौधा अपने नैसर्गिक वासस्थान, पूर्वी देशों और विशेषतया ईरान से, साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व टर्की और स्पेन होते हुए, यूरोप भर में फैल गया।
पश्चिमी देशों के उद्यानों में सिरिंगा वल्गेरिस के अतिरिक्त इस पौधे की दो अन्य जातियाँ भी साधारणतया पाई जाती हैं। इनके नाम हैं : चीनी नीलक (Syringa chinensis) और ईरानी नीलक (Syringa persica L.)। भारत के कश्मीर राज्य में भी 'ईरानी नीलक' के अतिरिक्त नीलक की एक अन्य जाति सिरिंगा एमोडी वाल्ल. (Syringa emodi Wall.) २,४०० से ३,६०० मीटर की ऊँचाई तक पाई जाती है। यूरोपीय देशों, और विशेषतया फ्रांस, में इस पौधे की विविध जातियों में से नाना प्रकार के आकर्षक रंगदार - सफेद, बैंगनी, नीले और लाल इत्यादि - सुवासित, एकदल और बहुदल फूल बहुत भारी संख्या में व्यापारिक स्तर पर उगाए जाते हैं। नीलक के पौधों को ठीक रूप में पनपने के लिए हल्की और खुली धूप, हवादार स्थान और बढ़िया उपजाऊ तथा नम मिट्टी आवश्यक है। फूलों के झड़ जाने के पश्चात् पौधों की भलीभाँति कटाई छँटाई हो जाने से और हड्डी तथा चूने की मिली जुली खाद देने से, आनेवाली फसल के फूल आकार में बहुत बड़े, घने और सुंदर हो जाते हैं।
इन पौधों के विस्तरण के लिए कलमों द्वारा, 'दाबा' द्वारा और 'चश्मों' का चढ़ा कर, सभी विधियों का प्रयोग किया जाता है। सफेद और रंगनी नीलकों के फूल गंध की दृष्टि से एक समान नहीं होते। अभी तक इससे सगंध, वाष्पशील तेल बनाने में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।
सं.ग्रं - बेली, एल. एच. : दि स्टैंडर्ड साइक्लोपीडिया ऑव हॉर्टिकल्चर, खंड ३, दि मैकमिलन कंपनी, न्यूयॉर्क, १९५८।(सद्गोपाल)