निष्क्रमण बाइबिल के दूसरे ग्रंथ (टेस्टामेंट) का नाम निष्क्रमण अथवा निर्गमन (एग्सोडस) है। इसका प्रधान विषय है मिस्र देश से यहूदियों का निष्क्रमण। मिस्र में यहूदियों का उत्पीड़न किया जाता था। मूस ा उनका नेता तथा उद्धारक बना और उनको ईश्वर के संरक्षण में मिस्र से निकालकर सिनाई की मरुभूमि में ले गया। वहाँ यहूदी जाति को एक संहिता अथवा विधिसंग्रह दिया गया जिसका सार है विश्वविख्यात दस नियम, जो मनुष्य मात्र के लिए धर्म तथा नैतिकता के दस मूलभूत सिद्धांत हैं (दे. एग्सोडम, अध्याय २०, २-२७)। इसके अतिरिक्त इसराएलियों की पूजापद्धति और उनके पुरोहितों के संगठन के विषय में बहुत से निर्देश दिए गए हं। इस ग्रंथ में उल्लिखित सभी स्थानों का पता लगाना और उसकी ऐतिहासिक घटनाओं का समय निश्चित करना असंभव है, फिर भी विशेषज्ञ ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा पुरातात्विक तर्कों के आधार पर आजकल प्राय: १३००-१२५० ई.पू. का समय स्वीकार करते हैं। निष्क्रमणग्रंथ में सामान्य इतिहास की समकालीन घटनाओं का उल्लेख नहीं है।
प्रस्तुत ग्रंथ के वर्तमान रूप का रचनाकाल ९०० ई.पू. से ६०० ई.पू. तक माना जाता है। इसमें प्रधानतया (जे., ई., और पी. नामक) तीन परंपरागत वृत्तांतों का सम्मिश्रण है। इस ग्रंथ की कुद सामग्री मूसा के समय की है। बहुत संभव है कि मूसा ने भी इसके कुछ अंश लिखें हों किंतु उन अंगों को अलग करना असंभव है। (दे. 'बाइबिल' तथा 'ईसाई साहित्य में बाइबिल')।
निष्क्रमण मूलत: एक धार्मिक ग्रंथ है। इसकी प्रधान शिक्षा यह है कि ईश्वर अद्वितीय, लोकातीत, निराकार तथा विश्व का सर्वशक्ति मान सृष्टिकर्ता होते हुए भी मनुष्यों के प्रति दयालु है। उसने इसराएली जाति के साथ यह समझौता किया है कि यदि वे ईश्वर की संहिता का पालन करेंगे तो सुरक्षित रहेंगे और यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उनपर बहुत सी विपत्तियाँ आ पड़ेंगी। इतिहास इसका साक्षी है कि यहूदी जाति बारंबार ईश्वर के बताए मार्ग से भटक गई किंतु फिर भी ईश्वर ने उसे अपनी चुनी हुई जाति मानकर उसमे ईसा को उत्पन्न किया और उनके द्वारा समस्त संसार को धार्मिक शिक्षा प्रदान की। निष्क्रमण की इस शिक्षा को ध्यान मे रखकर ही बाइबिल तथा ईसाई चर्च का वास्तविक अर्थ स्पष्ट हो सकता है। (आस्कर वैरेक्रसे)
सं.ग्रं.- विवल द येरुसालेम, १९५२।