निर्देशांक (Coordinates) सरल रेखा के बिंदुओं और वास्तविक संख्याओं में एक प्रकार का साहचर्य (association) है, अर्थात् (१) किसी भी सरल रेखा पर स्थित प्रत्येक विंदु की सहचारी केवल एक ही वास्तविक संख्या बनाई जा सकती है तथा (२) प्रत्येक वास्तविक संख्या किसी सरल रेखा पर स्थित केवल एक ही विंदु को निर्धारित कर सकती है, अथवा प्रत्येक वास्तविक संख्या का सहचारी विंदु केवल एक ही हो सकता है।

सरल रेखा के विंदुओं और वास्तविक संख्याओं के इस साहचर्य को सरल रेखा के अनुदिश निर्देशांक पद्धति कहते हैं और प्रत्येक विंदु की सहचारी संख्या को उस विंदु का निर्देशांक कहते हैं। मान लिया कि य य (X1 X) एक सरल रेखा है, जो दोनों ओर इच्छानुसार बढ़ाई जा सकती है। इस सरल रेखा पर दो विंदु मू (O) और क (A) इस प्रकार लिए गए हैं कि इनके बीच की दूरी एक एकक है। यदि मू की सहचारी संख्या ० है, तो क की सहचारी संख्या १ होगी।

चित्र १.

यदि ख (B), ग (C), ध (D) य य (X1 X) पर स्थित ऐसे विंदु हैं कि

मू क = क ख = ख ग = ग घ = ..........

[OA = A B = B C = C D =..............]

तब ख, ग, घ,... की सहचारी संख्याएँ क्रमश: २,३,४..... होंगी। इसी प्रकार -१, -२, -३, ..... आदि ऋणात्मक संख्याओं को य' य के उन विंदुओं का सहचारी बनाया जा सकता है जो मू के बाँई ओर स्थित हैं। य' य पर यदि च (E), छ (F), ज (G) तथा झ (H) ऐसे विंदु है कि

मू क = झ ज = ज छ = छ च = च मू

[OA = H G = GF =FE =EO]

और यदि य' य के अनुदिश मू, क, ख, ग तथा घ के निर्देशांक क्रमश: ०,१,२,३, और ४ हैं, तो च,छ,ज तथा झ के निर्देशांक क्रमश:-१, -२, -३, तथा -४ होंगे।

किसी समतल में स्थित विंदु के निर्देशांक - समतल भी विंदुओं का एक कुलक है। चूँकि समतल में दो आयाम (लंबाई और चौड़ाई) होते हैं। इसलिए समतल के प्रत्येक विंदु और वास्तविक संख्याओं के एक क्रमित जोड़े में साहचर्य स्थापित किया जा सकता है, अर्थात् समतल के प्रत्येक विंदु का सहचारी (associate) वास्तविक संख्याओं का केवल एक ही क्रमित जोड़ा बनाया जा सकता है और वास्तविक संख्याओं का प्रत्येक क्रमित जोड़ा समतल में केवल एक ही विंदु निर्धारित कर सकता है।

मानलिया कि किसी समतल में य य (X1 X) और र र (Y1Y) दो ऐसी सरल रेखाएँ हैं, जो एक दूसरे को विंदु मू (O) पर लंबवत्

चित्र २.

काटती हैं। य' य तथा र र के समतल में ब (P) कोई विंदु है। व से य' य पर व क (P A) लंब डाला गया है। माप से ज्ञात हुआ कि मूक (O A) = ४ एकक और क व (A P) = ३ एकक है। अत: य' य और र' र के सापेक्ष व (P) दो क्रमित संख्याएँ (ordered 4,3 numbers) निरूपित करता है। फिर मान लिया कि मूय (O X) पर कोई विंदु ख (B) स्थित है, जहाँ मू ख (O B) = ५ एकक और ख में होकर जाने वाली, मू र (O Y) के समांतर रेखा पर कोई विंदु व (P1) स्थित है, जहाँ ख व (B P1) = २ एकक है। तब क्रमित संख्याओं का जोड़ा (५, २) य' य और र' र के समतल में एक विंदु व (P1) निर्धारित करता है। इस प्रकार व और (4,3) में तथा व और (५,2) में एक प्रकार का साहचर्य है।

किसी समतल में स्थित विंदुओं और वास्तविक संख्याओं के क्रमित जोड़े (ordered pairs) के साहचर्य को उस समतल में निर्देशांक पद्धति (coordinate system) कहते हैं। वास्तविक संख्याओं के क्रमित जोड़े को उस विंदु के निर्द्रेशांक (coordinates) कहते हैं, जिसका सहचारी वह जोड़ा होता है।

किसी विंदु के सहचारी क्रमित जोड़े में से पहली संख्या को उस विंदु का भुज (abscissa) और दूसरी संख्या को उस विंदु की कोटि (ordinate) कहते हैं। उन सरल रेखाओं को, जिनके सापेक्ष उन्हीं के समतल में स्थित विंदुओं और वास्तविक संख्याओं के क्रमित जोड़ों में साहचर्य स्थापित किया जाता है, निर्देशांक अक्ष (coordinate axes) कहते हैं। य'य (X'X) को य-अक्ष (X-axis) और रर (Y'Y) को र-अक्ष (Y-axis) कहते हैं। यय और रर के प्रतिच्छेद विंदु मू (O) को मूलविंदु (origin) कहते हैं। मू (O) के निर्देशांक (o,o) हैं। किसी विंदु के व्यापक निर्देशांक (य,र) होते हैं।

यह आवश्यक नहीं है कि निर्देशांक अक्ष परस्पर लंब ही हों। इनके बीच का कोण न्यून कोण या अधिक कोण भी हो सकता हैं (देखें चित्र ३.)।

उन निर्देशांक अक्षों को, जो परस्पर लंब होते हैं, समकोणीय अक्ष (rectangular axes) कहते हैं और उन निर्देशांक अक्षों को जिनके

चित्र ३.

बीच का कोण समकोण नहीं होता, तिर्यक् अक्ष (oblique axes) कहते हैं। यदि क व (AP) समांतर है मू र (O Y) के और मु क (O A) = य (x) तथा क व (AP) = र (y), तो व (P) के निर्देशांक य,र (x,y) हैं।

य'य और रर द्वारा समतल चार भागों में बँट जाता है। इनमें से प्रत्येक भाग को चतुर्थांश (Quadrant) कहते हैं तथा य मू र (XOY), र मू य (YOX), य मू र (XOY) और र मू य (YOX) को क्रमश: पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा चतुर्थाश कहते हैं। पहले चतुर्थाश में प्रत्येक विंदु के भुज और कोटि, दोनों धनात्मक (Positive) होते हैं, दूसरे चतुर्थाश में प्रत्येक विंदु का भुज ऋणात्मक और कोटि धनात्मक होते है। तीसरे चतुर्थांश में प्रत्येक विंदु का भुज और कोटि दोनों ऋणात्मक होते हैं तथा चौथे चतुर्थांश में प्रत्येक विंदु का भुज धनात्मक और कोटि ऋणात्मक होता है।

किसी समतल में दो अचर और परस्पर लंब सरल रेखाओं के सापेक्ष बिंदुओं को निर्धारित करने की प्रथा बहुत ही प्राचीन है, परंतु इसको व्यवस्थित रूप देने का श्रेय दो फ्रांसीसी गणितज्ञों, फेर्मा (१६०१-१६६५) और देकार्ट (१६९६-१६१०) को है। इन गणितज्ञों द्वारा विंदुओं के स्थानों को निर्धारित करने की विधि का निरूपण (formulation of laws) करने में अचर रेखाओं से किसी विंदु की दूरियाँ केवल धनात्मक या शून्य हो सकती थीं। सर्वप्रथम सर आइजक न्यूटन (१६४३-१७२७) ने यह विचार दिया कि अचर रेखाओं से विंदु की दोनों दूरियाँ, अथवा इनमें से कोई एक दूरी, ऋणात्मक भी हो सकती है, परंतु लाइप्निट्ज़ (१६४६-१७१६) ही प्रथम गणितज्ञ थे, जिन्होंने इन दूरियों को निर्देशांक की संज्ञा दी। देकार्ट के नाम पर उपर्युक्त निर्देशांकों को कार्तीय निर्देशांक (Cartesian coordinates) कहते हैं।

किसी समतल में ध्रुवी निर्देशांक - मान लिया कि किसी समतल में मू य (O X) कोई एक सरल रेखा है (देखें चित्र ४.) और व (P) कोई विंदु है, जहाँ मू व = त्र (r) एकक और कोण य मू व =

चित्र ४.

रेडियन (q radian)। तब सरल रेखा मू व (O X) को आदिरेखा (initial line), मू (O) को ध्रुव (pole) और त्र, था (r, q ) को विंदु व (P) के ध्रुवी निर्देशांक (Polar Coordinates) कहते हैं।

किसी विंदु के कार्तीय निर्शेशांकों और ध्रुवी निर्देशांकों का संबंध - मान लिया कि चित्र ५, में किसी विंदु व (P) के कार्तीय निर्देशांक य, र (x y) और ध्रुवी निर्देशांक त्र, थ ( q )

चित्र ५.

हैं, अर्थात् (O A) = या (x), क व (A P) = र (y), Ð व मू क = थ (Ð P O A = q ) और मू व (O P) = त्र (r), तब त्रिभुज मू क व में

मूव कोज्या थ = मूक (OP cos q = OA)

या त्र कोज्या थ = य (r cos q = x) ... ....(१)

और मूव ज्या थ = क व (OP sin q = A P)

या त्रज्याथ = र (r sin q = y) ... ....(२)

(१) और (२) के वर्गों को जोड़ने से

त्र = + (r = x + y)

और (2) को (1) से भाग देने पर

स्प थ =

गुरुकेंद्रीय तथा क्षेत्रीय निर्देंशांक (Barycentric and areal coodinates) - मान लिया कि संख्या में स पिंड हैं, जिनके द्रव्यमान द, द,.....द (m m,....mn) हैं और ये पिंड किसी समतल में क्रमश: विंदु व (P1), व (P), व (P), ...., व (Pn) पर रखे गए हैं, जिनके निर्देंशांक क्रमश: य, र (x, y), य, र (x, y), ... य, र (xn,yn) हैं।

इन पिंडों के गुरुत्वकेंद्र (centroid) व (P) के निर्देंशांक

यदि स = २, तब इनका गुरुत्वकेंद्र सरल रेखा व (P1 P2) पर स्थिति है और यदि स = ३, तब इनका गुरत्वकेंद्र समतल व(P1 P2 P3) में स्थित है। एम. एफ. मोबियस, द्रव्यमानों (masses) द, द, द (m, m, m) को D (P1 P2 P3) के सापेक्ष गुरुत्वकेंद्र का गुरुकेंद्रीय (barycentric) निर्देशांक कहता था। तब से ये इसी नाम से व्यक्त किए जाते हैं। ये समाघात निर्देंशांक (homogeneous coordinates) होते हैं, क्योंकि यदि च ¹ o, तब च द, च द, और च द का गुरुत्वेंद्र वही होगा जो द, द, द (m1, m2, m3) का है। यदि द, द और द (m1, m2, और m3) का गुरुत्वकेंद्र व (P) है तब व के गुरुकेंद्रीय निर्देशांक द, द, द त्रिभुजों व व (PP2 P3), व व (PP2 P3), व व(P P3 P1), व द(P m1 m2) के क्षेत्रफलों के समानुपाती होते हैं। यदि द, द, द (m1, m2, m3) के मान इस प्रकार लिए गए हैं कि द++ (m1+m2+m3) = १ तब इनको क्षेत्रीय निर्देशांक (areal coordinates) कहते हैं।

अवकाश (space) में स्थित विंदुओं के निर्देंशांक - अवकाश में

चित्र ६.

तीन आयाम (लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई) होते हैं। इसलिए अवकाश में स्थित प्रत्येक विंदु और क्रमित तीन वास्तविक संख्याओं के क्रमिक कुलक में साहचर्य स्थापित किया जा सकता है, अर्थात् यह दिखाया जा सकता है कि अवकाश में स्थित कोई भी विंदु तीन वास्तविक संख्याओं का केवल एक ही क्रमित कुलक (set) निरूपित करता है और तीन वास्तविक संख्याओं का एक क्रमित कुलक अवकाश में केवल एक ही विंदु निर्धारित करता है।

मान लिया कि चित्र ६. में मू य (OX), मू र (OY) और मू ल (OZ) क्रमश: य-अक्ष (x-axis), र-अक्ष (y-axis) और ल-अक्ष (z-axis) हैं। इनमें से प्रत्येक अन्य दो रेखाओं पर लंब है तथा अवकाश में कोई विंदु ब (P) है। व से समतल य मू र (XOR) पर लंब वक (PA) और क (P) से मू य (OX) पर लंब क ख (AP) खींचा गया है। यदि मू ख (OB) = य (x), ख क (BA) = र (y) और कव (AP) = ल (z), तो व (P) के कार्तीयनिर्देशांक य, र, ल (x, y, z) हैं।

यदि मू व (OP) = त्र (r), Ð ख मू क = थ (q ) और Ð ब मू क = फ (f ), तो व (P) के ध्रुवी निर्देशांक (त्र, थ, फ) (r, q , f ,)

चित्र ६. से स्पष्ट है कि

= त्र कोज्या फ. कोज्या थ

}
(x = r cos f . cos q )
= त्र कोज्या फ. ज्या थ }
(y = r cos f . sin q )
और ल = त्र ज्या फ }
(z = r sin f )

श्

 

(तिलेश्वर राय)

 

श्