नियाज़ अहमद बरेलवी (शाह) बरेली के प्रख्यात रहस्यवादी कवि और विद्वान् थे। आपका जन्म १७४० ई. में सरहिंद में हुआ। अपनी शिक्षा दिल्ली में पूरी कर १७ वर्ष की अवस्था में आप बरेली आए और वहीं बस गए और युवावस्था में दिल्ली के शाह फखरुद्दीन शिष्यत्व स्वीकार कर आपके पंथ में सम्मिलित हो गए। आप सर्वेश्वरवाद के कट्टर समर्थक थे। आप की फारसी तथा उर्दू की कविताओं द्वारा १८वीं शताब्दी के मुसलमान रहस्यवादियों में सर्वेश्वरवाद का खूब प्रचार हुआ। आप प्रकांड विद्वान् और कई ग्रंथों के प्रणेता बताए जाते हैं। दिवान-ए-नियाज़ नामक आप का काव्यसंकलन रहस्यवादी मंडल में अत्यंत लोकप्रिय है। आप की गद्दी के वर्तमान उत्तराधिकारी शाह अजीज मियाँ ने 'राज़' उपनाग से कविताएँ लिखकर आप की काव्यपरंपरा को बनाए रखा है। विख्यात उर्दू कवि मुशफ़ी आपके शागिर्द थे और उस समय के कई अन्य विख्यात साहित्यकार आपसे संबंधित थे। शाह नियाज अहमद की मृत्यु १८३४ ई. में बरेली में हुई। रहस्यवादी धार्मिक मान्यताओंवाले लोग बहुत बड़ी संख्या में आपके मजार की जियारत करते हैं। आपके मत के अनुयायियों की संख्या बहुत बड़ी है और वे बहुधा अपने नाम के आगे 'नियाज़ी' शब्द भी जोड़ते हैं।(खालिक अहमद निजामी)
सं.ग्रं. - गुलाम सरवर : खजीनत-उल-असफिया, लखनऊ, खंड-१, पृ. ५१२-५१३; के. ए. निजामी : तारीख-ई-मशाइख-ईचिश्त (उर्दू), दिल्ली, पृ.-५६१-५७४; के. ए. निजामी का, जर्नल 'उर्दू', दिल्ली से अक्टूबर १९४५ में प्रकाशित 'शाह नियाज अहमद बरेलवी बा हैसियत उर्दू शायर' लेख।