निमि इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने वसिष्ठ को ऋत्विक बनाना चाहा पर वसिष्ठ खाली नहीं थे। अत: दूसरों के आचार्यत्व में यज्ञ कराना आरंभ किया। वसिष्ठ ने इससे क्रुद्ध होकर निमि के देह का पात होने का शाप दे दिया। इस देह के मंथन से जनक की उत्पत्ति हुई और निमि स्वयं विद्रोह होकर प्राणियों की पलकों में निवास करने लगे।

(रामचंद्र पांडेय)