नित्यानंद राढ़ देश के एकचक्रा या चाका ग्राम में माघ शुक्ला १३, सं. १५३० वि. को इनका जन्म हुआ। पिता का नाम हाड़ाई पंडित तथा माता का पद्मावती था। ये दोनों वसुदेव रोहिणी के तथा नित्यानंद बलराम के अवतार माने जाते हैं। बाल्यकाल में यह अन्य बालकों को लेकर कृष्णलीला तथा रामलीला किया करते थे और स्वयं सब बालकों को कुल भूमिका बतलाते थे। इससे सभा को आश्चर्य होता था कि इस बालक ने यह सारी कथा कैसे जानी। विद्याध्ययन में भी यह अति तीव्र थे और इन्हें 'न्यायचूड़ामणि' की पदवी मिली। यह जन्म से ही विरक्त थे। जब ये १२ वर्ष के ही थे माध्व संप्रदाय के एक आचार्य लक्ष्मीपति इनके गृह पर पधारे तथा इनके माता पिता से इस बालक का माँगकर अपने साथ लिवा गए। मार्ग में उक्त सन्यासी ने इन्हें दीक्षा मंत्र दिया और इन्हें सारे देश में यात्रा करने का आदेश देकर स्वयं अंतर्हित हो गए।

नित्यानंद ने कृष्णकीर्तन करते हुए २० वर्षों तक समग्र भारत की यात्राएँ कीं तथा वृंदावन पहुँचकर वहीं रहने लगे। जब श्रीगौरांग का नवद्वीप में प्रकाश हुआ, यह भी सं. १५६५ में नवद्वीप चले आए। यहाँ नित्यानंद तथा श्री गौरांग दोनों नृत्य कीर्तन कर भक्ति का प्रचार करने लगे। इनका नृत्य कीर्तन देखकर जनता मुग्ध हो जाती तथा जै निताई-गौर कहती। नित्यानंद के संन्थास ग्रहण करने का उल्लेख कहीं नहीं मिलता पर यह जो दंड कमंडलु यात्राओं में साथ रखते थे उसे यहीं यह कहकर तोड़ फेंका कि हम अब पूर्णकाम हो गए। यह वैष्णव सन्यासी थे। नवद्वीप में ही इन्होंने दो दुष्ट ब्राह्मणों जगाई-मधाई का उद्धार किया, जो वहाँ के अत्याचारी कोतवाल थे। जब श्री गौरांग ने सन्यास ले लिया वह उनके साथ शांतिपुर होते जगन्नाथ जी गए। कुछ दिनों बाद श्री गौरांग ने इन्हें गृहस्थ धर्म पालन करने तथा बंगाल में कृष्णभक्ति का प्रचार करने का आदेश दिया। यह गौड़ देश लौट आए। अंबिका नगर के सूर्यनाथ पंडित की दो पुत्रियों वसुधा देवी तथा ज्ह्रावी देवी से इन्होंने विवाह किया। इसके अनंतर खंडदह ग्राम में आकर बस गए और श्री श्यामसुंदर की सेवा स्थापित की। श्री गौरांग के अप्रकट होने के पश्चात् वसुधा देवी से एक पुत्र वीरचंद्र हुए जो बड़े प्रभावशाली हुए। सं. १५९९ में नित्यानंद का तिरोधान हुआ औैर उनकी पत्नी ज्ह्रावी देवी तथा वीरचंद्र प्रभु ने बंगाल के वैष्णवों का नेतृत्व ग्रहण किया।

सं.ग्रं. - वृंदावनदास कृत 'चैतन्य भागवत' तथा 'नित्यानंद चरितामृत' कर्णपूर रचित 'चैतन्य चरितामृत' तथा ईशान नागर कृत 'अद्वैत प्रकाश'।