निजामुल्मुल्क आसफ़जाह प्रथम वास्तविक नाम मीर कमरुद्दीन चिन कुलीच। मुगल सम्राट् शाहजहाँ के प्रधान मंत्री सादुल्ला खाँ का दौहित्र और समरकंद के एक बड़े सामंत आलमशेख का प्रपौत्र था। १६७२ ई. (१०८२ हिजरी) में उत्पन्न हुआ। औरंगजेब के दरबार में इसे चिन कुलीच खाँ की उपाधि तथा पाँच हजारी मंसब मिले थे।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के संघर्ष में यह तटस्थ सा रहा। बाद में- ११२४ हिजरी- शाहआलम (बहादुरशाह) ने इसे अवध प्रांत का सूबेदार और लखनऊ का फौजदार नियुक्त किया किंतु वह असंतुष्ट रहा। अगे चलकर फर्रुखसियर ने इसे निजा मुल्मुल्क बहादुर फतेहजंग की उपाधि और सात हजारी मंसब के साथ दक्षिण का शासक बनाया। इसके बाद वह क्रमश: मुरादाबाद और मालवा का सूबेदार रहा। बादशाह के मंत्रियों की नीति से असंतुष्ट होकर इसने असीरपुर और बुरहानपुर पर अपना अधिकार कर लिया, और सैयद बंधुओं के नियुक्त व्यक्तियों को परास्त कर दक्षिण का सूबेदार बन गया (११३२ हिजरी। मोहम्मदशाह ने उसे आमंत्रित कर साम्राज्य का वजीर नियुक्त किया। उसकी औरंगजेबवाली कठोर नीति तथा मालवा और गुजरात अपने कुटुंबियों के अधिकार में देने की नीति से उसके प्रति संदेह किया गया, और उसका विरोध अन्य मंत्रियों ने किया। असंतुष्ट होकर मंत्रिपद त्यागकर वह दक्षिण चला गया। ११५० हिजरी में बादशाह ने उसे फिर बुलाकर मंत्री नियुक्त किया। बादशाह से उसने युद्ध न करके संधि करने का प्रस्ताव किया। उसकी अकर्मण्यता तथा सम्राट्भक्ति पर भारी संदेह किया गया। दिल्ली लुटने से उसकी बड़ी किरकिरी हुई। अत: वह फिर दक्षिण चला गया। इस बार स्वयं उसके पुत्र ने उसे दक्षिण में घुसने से रोका। युद्ध हुआ। लड़का परास्त हुआ और निजामुल्मुल्क ने उपद्रवों का दमन करके अपना दृढ़ अधिकार स्थापित कर लिया।
सन् १७४३ ई. (११५६ हिजरी) में उसने त्रिचनापल्ली और अकटि को जीता। ११५९ हि. में हैदराबाद के निकट बालकुंडा भी जीत लिया। सन् १७४८ ई. (११६० हि.) में बुरहानपुर के निकट एक घातक रोग से इसकी मृत्यु हो गई।