निजामुद्दीन औलिया, शेख 'सुल्तानुल-मशाइख' या 'महबूबे इलाही' नामों से विख्यात हैं। आप भारत में चिश्ती संतों की सर्वप्रमुख कोटि में आते हैं। आपका जन्म बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में १२३८ ई. में हुआ। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो गई और लालन पालन आपकी माता ने किया जो सच्ची धार्मिक लगन और पवित्र विचारों की महिला थीं। १६ वर्ष की अवस्था में आप ख्वाजा शमसुद्दीन ख्वारिज़्मी तथा मौलाना कमालुद्दीन ज़ाहिद से शिक्षा प्राप्त करने के लिए दिल्ली पहुँचे। १२५८ ई. में आप अजोधन गए और शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर (११७५-१२६५) के शागिर्द हो गए। आप १२५४ से १३२४ ई. तक अपनी मृत्यु पर्यंत दिल्ली में रहे। समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के कथानुसार आप वहाँ इतने लोकप्रिय हो गए कि हर तबके के लोग (अमीर, गरीब, विद्वान् और निरक्षर, शहरी और देहाती) आपको घेरे रहते थे। दिल्ली में आपका मकबरा, बस्ती निजामुद्दीन, तीर्थस्थल बन गया है जहाँ देश भर से मुसलमान और हिंदू बड़ी संख्या में जियारत के लिए आते हैं।

शेख निजामुद्दीन औलिया ने 'चिश्ती सिलसिले' को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। आपने अपने अनुयायियों को देश के सूदूरवर्ती भागों में भेजा और स्वयं तो बंगाल, बिहार, मालवा तथा दक्षिण में चिश्ती रहस्यवादी परंपराओं के मूर्तिवान् प्रतिनिधि ही थे। आप सच्चे मानवतावादी विचारों के अत्यंत पवित्र तथा परम विद्वान् व्यक्ति थे और इन गुणों से आकर्षित होकर लोग बड़ी संख्या में आपके अनुयायी बने। सबेरे तड़के से लेकर रात देर तक आप लोगों की मुसीबतों और कठिनाइयों को सुनते और उनका समाधान करते रहते थे। आप कहा करते थे कि दुखी लोगों को सुखी करना सबाव (पुण्य) का काम है और कयामत के दिन इसका सबसे अधिक पुरस्कार मिलेगा। रहस्यवादी परंपरा को आपने अत्यंत सक्रिय और सजीव शक्ति बना दिया और यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि उपासना दो प्रकार की है- लाज़मी और मुताद्दी अर्थात् स्वार्थपरक और परमार्थपरक। लाज़मी उपासना का फल भक्त तक ही सीमित रहता है और इसके अंतर्गत प्रार्थना, नमाज, उपवास, मक्का ही हज, तस्वीह फिराकर जप करना आदि बातें हैं। इसके विपरीत मुताद्दी उपासना दूसरों की भलाई के उद्देश्य से की जाती है जिसमें दूसरों की जरूरतें पूरी करने लिए पैसा खर्च करना, दूसरों से प्रेम करना तथा इसी प्रकार के अन्य कार्यों द्वारा गैरों के प्रति व्यापक प्रेम व्यवहार रखना आता है। मुताद्दी उपासना का फल असमी और अनंत है। आपको गरीब की भलाई का इतना अधिक ध्यान रहता था कि जब आपको भोजन परोसा जाता तो आप उसमें से बहुत थोड़ा सा ही खाते थे और कहते थे कि जब मुझे इस बात का ध्यान आ जाता कि दिल्ली में शायद कितने ही लोग भोजन के अभाव में भूख पेट ही सो गए होंगे तो भोजन का ग्रास मेरे गले में अटक जाता है। शेख निजामुद्दीन सच्चे शांतिवादी और अहिंसावादी थ। आप बदला लेना इंसान का नहीं बल्कि हैवान का गुण मानते थे। आपका कहना था कि यदि कोई अपने रास्ते में बिछाए गए काँटों के बदले स्वयं भी दूसरों के लिए काँटे बिछाने लगे तो फिर हर तरफ काँटे ही काँटे दिखाई पड़ेंगे। आप आध्यात्मिक लोगों के लिए शासन के संपर्क में रहना अनुचित मानते थे। दिल्ली में लंबे अरसे तक रहते हुए भी आप हर प्रकार के राजनीतिक संपर्क से दूर रहे।

शेख निजामुद्दीन के उपदेशों का संग्रह उनके एक शागिर्द अमीर ने फ़वायिदुल फुवाद (चित्त को शुद्ध करनेवाली वस्तुएँ) के नाम से किया। आपके जीवनकाल में ही यह संग्रह ग्रंथ पथप्रदर्शक माना जाने लगा और बाद में जमाने में लोग इसे इतना पवित्र मानने लगे कि इस ग्रंथ की नकल करने मात्र से अपनी मुराद पूरी हो जाने का विश्वास लोगों में फैल गया।(खालिक अहमद निजामी)

सं.ग्रं. - अमीर खुर्द की सियार-उल-औलिया, चिरंजीलाल द्वारा दिल्ली से १८८४ में प्रकाशित। यह महात्मा की नवीनतम और विश्वसनीय आत्मकथा है। दूसरे ग्रंथ- जियाउद्दीन बरती : तारीखे फिरोज़शाही, एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल, पृ. सं. ३४३-३४७; जमाली : सियार-उल आरिफीन, दिल्ली, पृ. ५९-९१; शेख अब्दुल हक मुहद्दिस: अखबारुल अखयार, दिल्ली, प् ५४-५९; मुहम्मद बुलाक़ चिश्ती : मतलुबुत तालिबीन (व्यक्तिगत संकलन); दारा शुकोह : सफीनत-उल-औलिया, नवलकिशोर संस्करण, पृ. ९७-९८; अबुल फज्ल : आइने अकबरी, सर सैयद संस्करण, खंड-२, पृ. २०८-२०९; तारीख-ए-फरिश्ता, नवलकिशोर संस्करण, खंड २, पृ. ३९१-३९८; गुलाम सरवर : खजीनत-उल असफिया, लखनऊ खंड-१, पृ. ३२८-३३९; के. ए. निजामी: तारीखेमशाइखेचिश्त, (उर्दू) देहली, १९५४, पृ. १७१ और आगे; मोहम्मद हबीब : हजरत अमीर खुसरू आफ डेलही, (अंग्रेजी), बंबई, १९२७, पृ. २६-४३; वहीद मिर्जा : लाइफ ऐंड वर्क्स आफ अमीर खुसरो (अंग्रेजी), कलकत्ता, १९३५, पृ.-११२-११९; के. ए. निजामी : दि लाइफ ऐंड टाइम्स आफ फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर (अंग्रेजी), अलीगढ़, १९५५, पृ. ७२-७७; अबुल हसन अली नद्वी : तारीख-ए-दावत वा अजीमत (उर्दू), लखनऊ, १९६३, खंड-३, पृ. ५२-१०१; निसार अली श्व्रुाात: सवानिह निजामुद्दीन औलिया, (उर्दू) लाहौर, ख्वाजा हसन निजामी : निजामी बंसारी (उर्दू) देहली, पीर ज़ामिन निजामी : तारीखे निजामी (उर्दू), देहली।