निजामुद्दीन औरंगाबादी (शाह) आप चिश्ती संप्रदाय के विख्यात संत थे। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के काकोरी स्थान के निकट सिरका में १६५० ई. में हुआ। अपनी शिक्षा अपने गाँव में ही समाप्तकर आप दिल्ली पहुँचे और शाह कलीमुल्ला के अनुयायी हो गए। यह दिल्ली के विख्यात संत हो गए हैं। इनकी कब्र दिल्ली की जामा मस्जिद और लाल किले के बीच स्थित है। शाह कुलीमुल्ला ने आपको चिश्ती रहस्यवादी विचारों के प्रचार और प्रसार के लिए दक्षिण भेजा। दक्षिण के कई स्थानों में घूमते हुए आप औरंगाबाद में बस गए जिसे आपने चिश्त मत का केंद्र बनाया। नवाब गाजीउद्दीन खाँ और निजामुलमुल्क आसफशाह प्रथम को आपके प्रति बड़ी आस्था थी। आपकी मृत्यु १७२९ ई. में औरंगाबाद में हुई। आपने रहस्यवादी साधनाओं के विषय पर निज़ामुलक़ुलब नाम के एक ग्रंथ की रचना की जो दिल्ली से १३०९ हिजरी में प्रकाशित हुआ। आपके प्रवचनों का संकलन अहसानुल शमाईल नाम से हुआ है। इसकी पांडुलिपि अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में तथा सालारजंग म्यूजियम हैदराबाद में सुरक्षित है। मक्तूबाते कलीमी नाम से दिल्ली के शाह कलीमुल्ला के पत्रों का जो संकलन हैं उसमें शाह निजामुद्दीन के नाम लिखे गए कितने ही पत्र मौजूद हैं जिनसे दक्षिण में आपके कार्य-कलापों के संबंध में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
सं.ग्रं. - गाजीउद्दीनखाँ : मनक़ीबीफ़खरिया, दिल्ली; रहीमबख्श शजरत-उल-अनवर (पांडुलिपि व्यक्तिगत संग्रह में है); गुलाम सरबर : खज़ीनत-उल-असफिया, लखनऊ, खंड-१, पृ. ४९५-४९६, के. ए. निज़ामी : तारीखे चिश्त, देहली, पृ. ४२७-४५९(खालिक अहमद निजामी)