निजामी फारस के सुप्रसिद्ध कवि निजामी, निजामुद्दीन अबू मुहम्मद इलियास बिन यूसुफ का जन्म ११४०-४१ ई. में हुआ था। जब वे अभी छोटे बालक ही थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। उनका और उनके भाई दोनों का लालन पालन उनके चाचा ने किया और उन्हें शिक्षित भी कराया। बाद में उनके भाई भी कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए और 'क़िवामी मुतर्रिज़ी' उपनाम से लिखते थे। निज़ामी की तीन शादियाँ हुई किंतु हम लोगों को उनके केवल एक ही पुत्र मुहम्मद का नाम ज्ञात है। वह अधिकतर शांत, स्थिर एवं विरक्त जीवन व्यतीत करते थे और कभी भी नियमित रूप से जानेवाले दरबारी नहीं थे, यद्यपि उनकी लगभग सभी कृतियाँ समकालीन शाहजादों को ही समर्पित की गई थीं। ६३ वर्ष से अधिक अवस्था में १२०३-४ ई. में उनकी मृत्य हुई।

निज़ामी की प्रसिद्धि एकमात्र पाँच कविताओं के समुदाय, जो सामूहिक रूप से खम्सा (पंचक) के नाम से विख्यात है, पर आधारित है। उनमें से 'मखज़िनुल असरार' की रचना ११६५-६६ ई. में पूरी की गई और अज़रबैजान के अताबक इल्ताजिन को समर्पित की गई। उसमें अधिकतर नैतिक आचार और रहस्यवादी आदर्शों के सिद्धांत कहानियों द्वारा चित्रित किए गए हैं। शीरीन या खुसरू उसकी दूसरी रचना है जो एक प्रेमसाधन संबंधी कविता है। इसमें फरहाद और फारस के सम्राट् खुसरू परवेज़ का शाहज़ादी शीरीन के प्रति जो बहुत ही प्रभिशालिना थी, प्रेम का वर्णन किया गया है। इस कृति की रचना ११७५-७६ ई. में की गई थी। इसे इल्देजिज़ के दोनों पुत्रों मुहम्मद और किज़िल अरसतन को समर्पित किया गया था। तीसरी भी प्रेमसाधना की कविता है। इसका नाम लैला मजनूँ है। इसका आधार अमीरी की छोटी नावों की सविख्यात आरा की पौराणिक गाथाएँ हैं। यह कविता ११८८-८९ ई. में लिखी गई। इसकी रचना शेरवानशाह अखिस्तान मिनुचिहज के विशेष आदेश पर की गई और उनको ही सादर समर्पित कर दी गई। कदाचित् यह पाँचों कविताओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है, यद्यपि निज़ामी ने स्वयं इसके संबंध में इतना अधिक नहीं सोचा था। चौथी कविता इस्कंदरनामा दो भागों में विभाजित है। पहला गरक़नामा या इक़बालनामा, दूसरा खिज्रनामा। दोनों में, ग्रीक निवासी सिकंदर महान् के जीवन की अधिक महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है। वे मनोरम और अद्भत घटनाओं से भरी हुई हैं। उनमें बहुत अधिक संख्या में दार्शनिक उपदेशों का वर्णन किया गया है जिसमें अरस्तू का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी रचना ११९१ ई. में हुई और यह दो शाहज़ादों, इज्जुद्दीन मसूद अताबक जो मासूल के निवासी थे, और अजरबैजान के नुरुद्दीन अबूबक्र बिशकिन, को समर्पित की गई थी। पाँचवीं एवं अंतिम कविता की रचना, जिसका नाम हाकत पायकार था, ११९८-९९ई. में हुई थी। इस कविता का आधार पौराणिक फारस के राजा की प्रेमसाधना संबंधी कहानी है जिसमें बहराम ग़्राो और सात शाहजादियों की कहानी का वर्णन है। राजा ने सातों राजकुमारियों से जो सात भिन्न भिन्न देशों की रहनेवाली थीं, एक एक करके विवाह किया और प्रत्येक ने उसको एक मनोरंजक कहानी सुनाई।

निज़ामी की खम्सा को ईरान के प्रतिष्ठित साहित्य में उच्च ख्याति प्राप्त है। इससे उत्तरकालीन अनेक कवियों की स्पर्धा एवं श्लाघा प्रबुद्ध हुई है। जैसे दिल्ली के अमीर खुसरू और बगदाद के फुज़ूली ने इसका उत्तर लिखा है। उनमें से सर्वोत्तम, निस्संदेह रूप से खुसरू का है जिसे पंजगंज भी कहा जाता है। खम्सा पर अनेक भाष्य एवं टिप्पणियाँ लिखी गई हैं, और कविताएँ विशेष रूप से भिन्न भिन्न भाषाओं में, या तो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से अनूदित की गई हैं। यह सामान्य रूप से प्रचलित है कि निज़ामी फिरदौसी के पश्चात् फारसी का सबसे महान् मसनवी लेखक हुआ है। वह अपनी शैली की प्रांजलता, अपने काव्यमय लाक्षणिक चित्रण और अपनी अनेक साहित्यिक सूझों के कौशलमय प्रयोग में अद्वितीय है।

खम्सा का संपूर्ण मूलपाठ १८५४ ई. में बंबई में एवं १९२१ ई. में लाइडन में प्रकाशित हुआ था। अधोलिखित कविताएँ अलग अलग प्रकाशि हुईं।

(१) मखज़िनुक असरार, कानपुर १८६९ ई.; (२) खुसरू वा गिरीन वंबई १८३३ ई., लाहौर १८७१ ई. और १८९२; लखनऊ १८७१, कानपुर १८८१ ई. (३) लयला वा मजनूँ, लखनऊ लाहौर १८९०, सिकंदर (इसकंदर) नामा, कलकत्ता १८५२, जबोयर १८७८ ई. बंबई, १९६० ई., लखनऊ १८७९ ई. और १९०५ ई.; (५) हाल्ट पायकर, लखनऊ १८७३ ई.। सिकंदरनामा के अंग्रेजी अनुवादों में निम्नलिखित प्रसिद्ध हैं- सिकंदरनामा एच. डब्ल्यू क्लार्क का अनूदित (लंदन १८८१) लैला मजनुँ का अनुवाद जे. एटकिंसन द्वारा (लंदन १९०५), मुखजिन् अर्रार का अनुवाद ब्लैंग द्वारा (लंदन १८४४ ई.) हाल्ट पायकर का अनुवाद सी. ई. विल्सन द्वारा (लंदन १९२४ ई.)।

सं.ग्रं.- दी बेस्ट स्टडी इज़ एच. रिटर इज उबर बिल्डरस्प्रैचे निजामी : और देखिए (१) ई. एडवर्डस : ए कैटेलाग ऑव परशियन प्रिंटेड बुक्स इन ब्रिटिश म्यूजियम, १९२२, पृष्ठ सं. २८८ से २९२; (२) ई. ब्राउन : ए लिटरेरी हिस्ट्री आँव परशिया; ३, ३, ३९९ स्वक., (३) जे. आरबेरी : क्लैसिकल परशियन लिटरेचर (४) शिबली नुमानी; शीक्ल आजम (५) एंसाइक्लोफीडिया ऑव इस्लाम (लाइडन) ३,९४७-२८(मुहम्मद वहीद मिर्जा)