निकोलस प्रथम (१७९६-१८५५ : रूसी नाम, निकोलाई पावलोविश) रूस का जार (सम्राट)। सम्राट पाल की आठवीं संतान। माता : मारिय फीओडोरोवना (Maria Feodorovna) (राजकुमारी डोरोथिया, सोफिया बुरटनवर्ग) जारस्को ये सेलो (Tsarskoe-selo) (पुश्किन) में ६ जुलाई, १७९९ को जन्म। पाँच साल का था जब इसके पिता का देहांत हो गया। दो बड़े भाई होने से इसके राजा होने की संभवना नहीं थी, अत: इसको केवल सैनिक शिक्षा दी गई। राजा होने के योग्य शिक्षा इसको नहीं मिली। १८१४ में अपने बड़े भाई अलेक्जेंडर प्रथम के साथ पेरिस गया। १८१६ में यूरोपियन रूस की तीन मास यात्रा की। अक्टूबर १८१६ से मई १८१७ तक इंग्लैड में रहा। १८१७ में प्रशा के फ्रेडरिक विलियम तृतीय की पुत्री शारलोट (Charlotte) राजकुमारी लूईस (Louise) (सम्राज्ञी अलेकजेंड्रा फीयोडोसेवेना) से विवाह। इस विवाह से रूस और जर्मनी का संबंध बढ़ा।

कांस्टेंटाइन पावलोविश के राजसिंहासन त्याग के बाद २४ दि. १८२५ को राज्यकार्य सँभाला। इसके दो दिन बाद सेंट पीर्ट्स वर्ग (लेनिनग्राड) में विद्रोह हुआ। किंतु यह दबा दिया गया। मास्को में ३ सितंबर, १८२६ को विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। इसकी नीति दृढ़ एवं निरंकुश राजतंत्र की थी। आंतरिक शांति की रक्षा का भार इसने सेना की सौपा। अर्धदासता को दूर करने का कानून बनाया। रूस को लोकतंत्र की हवा तक स्पर्श न करे, इसका कड़ाई से प्रबंध किया। गुप्तचर पुलिस का आतंक बिठा दिया। शासन भ्रष्ट तथा असंगठित था और कर्मचारी अकुशल थे। विश्वविद्यालयों, कालेजों और छात्रों पर इसने कड़ी नजर रखी। नए विचार फैलने न पावें, इस और सतर्कता से ध्यान दिया।

इसका शरीर सुदृढ़ और प्रभावशाली था। इसकी कार्य करने शक्ति अपार थी। आठ, नौ घंटे प्रति दिन राजकाज देखता था। सब जगह से आई रिपोर्टों को स्वत: पढ़ता, क्या करना चाहिए इसका स्वत: निर्णय करता और दिन भर का काम हरेक विभाग को बताता। रूसी शासन को मंत्रालयों में इसने की विभक्त किया। इसके सामने सदा यही समस्या रही, सत्ता और अधिकार किसको दे? इसका किसी पर विश्वास नहीं था। अत: किसी को भी योग्य नही मानता था। इसी से शासन को अत्यधिक केंद्रिय किया। ऐतिहासिकों ने इसको बताया था कि रूस के लिए सर्वोत्तम शासनव्यवस्था निरंकुश एकाधिकारी राजतंत्र है। इसने फ्रेंच राज्यक्रांति से उत्पन्न विचार धारा का रूस में प्रवेश नहीं होने दिया।

इसकी परराष्ट्र नीति यह थी कि कालासागर को रूस की झील बनाया जाए, यूरोप के रोगी तुर्की का अंत किया जाए और यूरोपकी राजनीति में रूस की प्रधानता मानी जाए। तुर्कों के साथ इसने दो युद्ध किए। वहले का अंत (१८२८-२९) एड्रियानोपल की संधि से हुआ और ग्रीस की स्वाधीनता की नींव पड़ी। दूसरी लड़ाई क्रीमिया युद्ध (१८५३) के नाम से प्रसिद्ध है। तुर्की का साथ इंग्लैड और फ्रांस ने दिया। लड़ाई अभी चल रही थी, जब इसका १८५५ में देहांत हो गया। रूस का मनोरथ पूर्ण न हुआ, पर रूमानिया और सर्बिया की स्वाधीनता का उदय हुआ। तीन सम्राटों के संघ का एक सदस्य होने से इसने आस्ट्रिया की ओर से हंगरी में विद्रोह का दमन किया। १८३० में वारस में पोलों ने विद्रोह किया था। परंतु इसका इसने कुचल दिया और ४३ हजार पोल परिवारों को काकेशिया में बसाया, जिससे पोल पूर्णत: रूसी हो जाएँ और पोलिश स्वाधीनता की भावना का अंत हो जाए।

निकोलस द्वितीय (१८६८-१९१८) रूस का अंतिम रोमनेव वंशी सम्राट्-जार (रूसी नाम निकोलाई अलेक्जेंड्रोविश) अलेक्जेंडर तृतीय का ज्येष्ठ पुत्र; माँ - डेनिश राजकुमारी, मेरीसोफिया फ्रेडरिक डागमार मारिया फेडोरोवना (जारीना); १८ मई १८६८ को सेंट पीटर्सवर्ग (लेनिनग्राड) में जन्म। जनरल डेनी लेवस्की (डेवीलोविश) इसका १२ साल शिक्षक रहा। सैनिक शिक्षा ही पाई, राज्यप्रशासन की नहीं। पैदल, घुड़सवार और तोपखाना इन तीनों सेनाओं में सैनिक रहा और कर्नल के पद तक पहुँचा। सिंहासन पर बैठने के बाद भी यह पद इसने नहीं छोड़ा।

सुदूर पूर्व मिस्त्र, भारत, चीन, जापान की यात्रा की। जापान में प्रबल हमले से बाल-बाल बचा और रूस, फिनलैंड, डेनमार्क की यात्रा की। विलियम प्रथम की शवयात्रा में पिता का प्रतिनिधित्व किया। १८७७-७८ में रूस-तुर्क युद्ध के समय अपने पिता के साथ रणभूमि में था। सुदूरपूर्व की यात्रा से यह साइबेरिया की राह वापस लौटा। ट्रांस साइबेरियन रेलवे को ब्लाडीवोस्टक तक ले जाने का कार्य १८९२ में अपने हाथ में लिया। २ नवंबर, १८९४ को पिता की मृत्यु के बाद गददी पर बैठा। २६ नवम्बर को ईस्टो-डार्मस्टड्ट की राजकुमारी एलिस (विक्टोरिया की नतिनी और सम्राज्ञी अलेक्जेंड्रा फियोरोवना) से विवाह किया।

यह उदार विचारों का युवक माना जाता था। इसका व्यक्तित्व भी आकर्षक था। किंतु यह भी राजा के दैवीय अधिकारों में विश्वास करता था। यदि यह दूरदर्शिता दिखाता तो रोमनोव राजवंश का राज्य बचा सकता था। परंतु १९०४-५ में जापान से हारने पर भी इसने रूस में उठी जनक्रांति का क्रूरता से दमन किया। अनिच्छा से वैधानिक सुधार किया और ड्यूमा को दो बार भंग कर दिया पर क्रांति की आग बुझी नहीं। १९०७ में ४१३१ सरकारी कर्मचारियों पर हमले किए गए। १९०८ में १००९ सरकारी आदमी मारे गए। १९०७ में ८०० क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। १९०७-८ में १४००० साईबेरिया भेजे गए। प्रतिक्रिया की मूर्ति प्रधान मंत्री स्टोलिमिन की भी १९१५ में हत्या कर दी गई। 'ड्यूमा' निर्बल और जार की कठपुतली सिद्ध हुई।

रूस की उन्नति, उद्योग, व्यापार और व्यवसाय से होगी, इस विश्वास से अनेक उद्योगों को प्रोत्साहन दिया। १८९७ में व्यापक रूप से जनगणना करवाई। मुद्रासुधार किया और रुबल को स्वर्णमान कर आधारित किया। अंतरराष्ट्रीय नियमों के आधार पर विश्वशांति का समर्थक था। इसके प्रयत्न से पहली नि:शस्त्र कफ्रोंस हुई, जो प्रथम हेग शातिसंमेलन (फर्स्ट हेंग पीस कफ्रोंस) १८९९ के नाम से प्रसिद्ध है। शांति-संतुलन-सिद्धांत का समर्थक था और रूस फ्रेच मैत्री को दृढ़ किया और ब्रिटेन से मित्रता बढ़ाई।

प्रथम महायुद्ध में रूसी सेना जर्मनी से हारी और इस पराजय ने रूस से रोमनोव वंश का अंत कर दिया। निकोलस का सिहासनत्याग (३ मार्च, १९१७) भी ड्यूमा को संतुष्ट न कर सका। एकाटेरिनवर्ग की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी गुप्त बैठक में जार को मारने का निश्चय किया और योरकोवस्की को आदेश दिया गया कि वह जार को मार डाले। इस आदेश पर १६ व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किए। १६-१७ जुलाई १९१८ को योरकोवस्की ने कैदी जार को टार्च लाइट के साथ जगाया, जार ने कुछ शब्द कहे और योरकोवस्की ने रिवाल्वर निकाल कर आदेश का पालन किया। जार के साथ उसकी पत्नी और उसके परिवार को भी मार दिया।

निकोलस (१८५६-१९२९) - ग्रांड ड्यूक, निकोलाई निकोलिएविश : ६ नवंबर १८५६ को सेंट पिटर्सवर्ग (लेनिनग्राड) में जन्म निकोलस प्रथम जार का पोता, सम्राट् अलेकजेंडर तृतीय का चचेरा भाई : सैनिक और इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्तकर १८७२ में सेना में कमीशंड अफसर बना, १६ साल की आयु में १८७३ में मिलिटरी अकादमी में। अपने पिता और रूस के प्रधान मंत्री सेनापति ग्रांट ड्यूक निकोलस (१८३१-१८९१) के स्टाफ में काम किया। रूसी तुर्की युद्ध (१८७७-१८७८) में भाग लिया। १८८४ में गार्ड हूसार रेजीमेंट का १८८४ से साढ़े ६ साल कमांडर रहा। १८९५ में बिग्रेडियर बनाया गया। इस पद पर वह १० साल रहा और महत्वपूर्ण सुधार किए। 'नेशनल डिफ़ेस कौंसिल' का प्रेसिडेंट बनाया गया। जर्मन पद्धति के अनुसार रूसी सेना का पुनर्गठन किया। १९०८ से १९१४ तक इसने युद्ध की तैयारी में कोई भाग नहीं लिया।

१ अगस्त १९१४ की शाम को जर्मनी की युद्ध घोषणा के बाद इसको जर्मन मोर्चे पर रूसी सेना का प्रधान सेनापति बनाया गया। युद्ध की एक ऐसी योजना को पूरा करने का इसकी काम साँपा गया, जिसको बनाने में इसका कोई हाथ न था। प्रशा-आस्ट्रिया-गैलिशिया-वार्सा पोज़ेन (Posen) पांत पर जाना था। जर्मन वार्सा के द्वार पर पहुँचे हुए थे। गैलिशिया में आस्ट्रियन सेना को पीछे हटने को बाध्य किया। परंतु जर्मन सेना के साथ मुकाबला होने पर पीछे लौटना पड़ा। युद्धों के इतिहास में यह ऐतिहासिक प्रत्यावर्तन प्रसिद्ध है।

काकेशिया का वायसराय और प्रधान सेनापति बनाया गया। गैलीपोली सिनाई और मैसेपोटामिया में मित्रराष्ट्रों की मदद की और जर्मन सेना को तुर्की की मदद के लिए आने से रोक रखा। आर्मेनिया पर अधिकार किया।

१२ मार्च, १९१७ को रूसी राज्यक्रांति के दिन ग्रांड ड्यूक काकेशिया में तिफलिस से माँगीलेव की विजययात्रा पर था। राह में स्वागत अभिनंदन हुआ और मांगीलेव (ग्दृढ़त्थ्ड्ढध्) पहुँचने पर प्रिंस लोव (्ख्रध्दृध्) का तार मिला कि उसे प्रधान सेनापति के पद से हटाया गया। इसके बाद भी यह दो साल क्रीमिया में रहा। मार्च १९१९ में इटली होता हुआ फ्रांस पहुँचा। एंटी वे (फ्रांस) में रहा और 'सुप्रीम कौंसिल ऑव रशियन मानर्किस्ट पार्टी' नाम से एक पार्टी बनाई। १६ जनवरी, १९२९ को इसका एंटी बे में देहांत हुआ।(अवनींद्रकुकार विद्यालकार)