निकोलस, पोप काथलिक चर्च के इतिहास में इस नाम के पाँच पोपों का उल्लेख है। निकोलस प्रथम (शासनकाल, ८५८-५६७ ई.) का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, प्रतिभा असाधारण थी और आचरण इतना पवित्र था कि बाद में उन्हें संत की उपाधि मिल गई। उनका पर्व १३ नवंबर को मनाया जाता है। उन्होंने सम्राट् जोथारियस के तलाक का विरोध कर विवाह की प्रतिष्ठा को बनाए रखा तथा धार्मिक मामलों में पोप के परमाधिकार का प्रतिपादन किया। निकालस द्वितीय का शासनकाल (१०५८-१०६१ ई.) पर्याप्त महत्व का है। उन्होंने १०५९ में पोप के चुनाव में रोम के अभिजात वर्ग तथा जर्मन सम्राट का हस्तक्षेप दूर करने के लिए एक आदेश निकाला जिसके आधार पर बाद में यह नियम प्रचलित हुआ कि कार्डिनल ही पोप का चुनाव करेंगे। निकोलस तृतीय (१२७७-१२८०) ने जर्मन सम्राट तथा नेपल्स के शासकों से संघर्ष करके चर्च की स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रशंसनीय कार्य किया है। विश्वकवि दाँते ने अपनी 'डिवाइन कामेडी' नामक अमर रचना में उनको उनके भाई भतीजावाद के करण नरक में रख दिया है। निकोलस चतुर्थ (१२८८-१२९२ ई.) फ्रांसिस्की धर्मसंधी थे। वे सुयोग्य धार्मिक नेता सिद्ध हुए और उन्होंने सुदूर चीन में ईसाई मिशनरियें को भेजने का प्रबंध किया। निकोलस पंचम (१४४७-१४५५ ई.) विशेष रूप से अपने कलाप्रेम के लिए विख्यात हैं और नवजागरण (रिनेसाँ) के प्रथम पोप कहलाते हैं। उन्होंने कलाकारों तथा विद्वानों को अपने पास बुलाकर उन्हें प्रोत्साहन दिया, रोम में बहुत से भव्य मंदिर बनवाए और विश्वविख्यात वैटिकन लाइब्रेरी की स्थापना की। वह स्वयं चरित्रवान् और तपस्वी थे किंतु उन्होंने नवजागरण को जो प्रश्रय दिया उसके फलस्वरूप बाद में रोम के दरबर का वातावरण दूषित बना और यूरोप में रोम के प्रति श्रद्धा बहुत ही घट गई।(रेवरेंड कामिल)