निकोटिन तंबाकू में विद्यमान ऐल्कलॉयडों में से एक ऐल्कालॉयड है, जो तंबाकू में ४ से ५ प्रतिशत तक रहता है। औषधियों में इसका उपयोग अब भी थोड़ा बहुत होता है, पर खेती में कीड़ों के मारने में इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। यह बहुत विषैला द्रव है। इसके खाने से चक्क्र, मतली, साँस चलना, स्वेदन आदि होते हैं। आँखों की पुतलियाँ पहले संकुचित होती और फिर फैलती हैं तथा अंत में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। अत: इसके व्यवहार में बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।
तंबाकू के जलीय निष्कर्ष निकालकर, उसे छान तथा सांद्र कर चूना या सोडा डालने से ऐल्कालॉयड उन्मुक्त हा जाता है। उपयुक्त विलायक या वाष्प आसवन से इसे अन्य ऐल्कालॉयडों से पृथक् करते हैं। शुद्ध निकोटीन (का१० हा१४ ना२१, C10 H14 N21, क्वथनांक २४६� -२४७� सें.) वर्णरहित, अरुचिकर गंधवाला बहुत विषैला द्रव है। यह जल तथा अन्य विलायकों में घुल जाता है। इसका संश्लेषण १९०४ ई. में हुआ था। इसका पीला पिक्रेट (गलनांक २१८� सें.) होता है, जिससे यह पहचाना जाता है।(फूलदेवसहाय वर्मा)