नास्तिक भारतीय दर्शन में नास्तिक शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। (१) जो लोग वेद को परम प्रमाण नहीं मानते वे नास्तिक कहलाते हैं। इस परिभाषा के अनुसार बौद्ध, जैन, और लोकायत मतों के अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं और ये तीनों दर्शन नास्तिक दर्शन कहे जो हैं। (२) जो लाग परलोक और मृत्युपश्चात् जीवन में विश्वास नहीं करते; इस परिभाषा के अनुसार केवल चार्वाक दर्शन जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, भारत में नास्तिक दर्शन कहलाता है और उसके अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं। (३) जो लोग ईश्वर (खुदा, गॉड) के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। ईश्वर में विश्वास न करनेवाले नास्तिक कई प्रकार के हाते हैं। घोर नास्तिक वे हैं जो ईश्वर को किसी रूप में नहीं मानते। चार्वाक मतवाले भारत में और रैंक एथीस्ट लोग पाश्चात्य देशें में ईश्वर का अस्तित्व किसी रूप में स्वीकार नहीं करते; अर्धनास्ति उनका कह सकते हैं जो ईश्वर का सृष्टि, पालन और संहारकर्ता के रूप में नहीं मानते। इस परिभाषा के अनुसार भारत के बहुत से दर्शन नास्तिक की कोटि में आ जाते हैं। वास्तव में न्याय और वेदांत दर्शनों को छोड़कर भारत के अन्य दर्शन सांख्य, योग, वैशेषिक, मीमांसा, बौद्ध और जैन नास्तिक दर्शन कहे जा सकते हैं क्योंकि इनमें ईश्वर को सर्जक, पालक और विनाशक नहीं माना गया है। ऐसे नास्तिकों को ही अनीश्वरवादी कहते हैं।

नास्तिक अर्थात् अनीश्वरवादी लोग सभी देशो और कालों में पाए जाते हैं। इस वैज्ञानिक और बौद्धिक युग में तो नास्तिकों की कुछ कमी ही नहीं है। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि ऐसे लोग आजकल बहुत कम मिलेंगे जो नास्तिक (अनीश्वरवादी) नहीं है। नास्तिकों का कहना यह है कि ईश्वर में विश्वास करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सर्जक मानने की आवश्यकता तो तभी होगी जब कि यह प्रमाणित हो जाए कि कभी सृष्टि की उत्पत्ति हुई होगी। यह जगत् सदा से चला आ रहा जान पड़ता है। इसके किसी समय में उत्पन्न होने का कोई प्रमाण ही नहीं है। उत्पन्न भी हुआ तो इसका क्या प्रमाण है कि इसकी विशेष व्यक्ति ने बनाया हो, अपने कारणों से स्वत: ही यह बन गया हो। इसका चालक और पालक मानने की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि जगत् में इतनी मारकाट, इतना नाश और ध्वंस तथा इतना दु:ख और अन्याय दिखाई पड़ता है कि इसका संचालक और पालक कोई समझदार और सर्वशक्तिमान् भगवान् नहीं माना जा सकता। संसार में सर्जन और संहार दोनों साथ साथ चल रहे हैं। इसलिए यह कहना व्यर्थ है कि किसी दिन इसका पूरा संहार हो जाएगा और उसके करने के लिए ईश्वर को मानने की आवश्यकता है। नास्तिकों के विचार में आस्तिकों द्वारा दिए गए ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए सभी प्रमाण प्रमाणाभास हैं (देखिए अनीश्वरवादी)।(भीखनलाल आत्रेय)