नासिरुद्दीन महमूद (शेख) शेख निजामुद्दीन औलिया के प्रमुख शिष्य, जो 'चिरागे देहली' नाम से विख्यात थे। आपका जन्म १२७६ ई. के लगभग अवध में हुआ था। आपके पिता ऊन के संपन्न व्यापारी थे। ४३ वर्ष की अवस्था में आप दिल्ली आए और शेख निजामुद्दीन औलिया के शागिर्द हो गए। १३२३ में आपके आध्यात्मिक गुरु ने आपको अपना मुख्य उत्तराधिकारी घोषित किया और आपको दिल्ली में ही बसने तथा परंपरा के अनुयायिओं के आध्यात्मिक संरक्षण का भार सौंपा। जब मोहम्मद बिन तुगलक को अपनी राजधानी दिल्ली से सुदूर दक्षिण दौलताबाद ले जाने की सनक सवार हुई और उसने दिल्ली के उलमाओं तथा रहस्यवादी संतों को दिल्ली छोड़कर दौलताबाद जाने का आदेश दिया तो आपने यह कहकर उसकी आज्ञा की अवहेलना की कि यह उनके दिवंगत गुरु के आदेशों के प्रतिकूल ठहरती है। सुलतान ने आपको हर तरह से धमकाया परंतु आपने धैर्य और सहनशीलता से सभी प्रकार के दंड और कठिनाइयाँ झेल डालीं। आपने चिश्ती संप्रदाय के संगठन को विशृंखलित और प्रतिष्ठाहीन होने से बचाया। आपकी मृत्यु १३५९ ई. में दिल्ली में हुई। आपका समाधिस्थल चिरागे देहली क्षेत्र में अवस्थित है जहाँ बहुत से लाग दर्शनार्थ जाते हैं। आपके शिष्य हनीद कलंदर ने आपके प्रवचनों को खैरुल मजालिस नाम से संकलित किया है (खालिक अहमद निजामी, द्वारा संपादित, अलीगढ़, १९५९)।

सं.ग्रं. - अमीर खुर्द : सियार-उल-औलिया, दिल्ली, पृ. २३८ तथा आगे; जमाली : सियार उल आरिफिन, दिल्ली, पृ. ९२ तथा आगे; शेख अब्दुल हक मुहद्दिस : अखबार उल अख्यार, देहली पृ. ८०-८६; दारा शुकोह : सफीनत-उल-औलिया, नवलकिशोर संस्करण, पृ. १००-१०१; गुलाम सरवर : जीनत उल-असफिया, लखनऊ, खंड १, पृ. ३५३-३५९।