नासिक
१. जिला, स्थिति : 19�
35� से 20� 53�
उ.अं. तथा 73� 15�
से 74� 56� पू.दे.।
यह भारत के महाराष्ट्र
राज्य में प्रसिद्ध
जिला है। इसका
क्षेत्रफल ६,०२० वर्ग
मील तथा जनसंख्या
१८,५५,२४६ (१९६१) थी। इसके उत्तर
में दांग्स, धूलिया
एवं सूरत, दक्षिण्-पश्चिम
में ठाणें (थाना),
दक्षिण में अहमदनगर,
उत्तर-पूर्व में
जलगाँव एव दक्षिण-पूर्व
में औरंगाबाद
जिले स्थित हैं।
इसका जलनिकास
पश्चिमी घाट पर्वत
से निकलनेवाली
गोदावरी और
गिरना नदियों
से होता है। कुद
पश्चिमी भाग को
छोड़कर समस्त
जिला सागरतल
से १,३०० से लेकर
२,००० फुट तक ऊँचा
है।
यहाँ बाजरा, कोदो, गेहूँ, तिलहन, धान, दाल, चना, तुर एवं कपास की खेती की जाती है। दक्षिणी भाग में कपास तथा तरकारियों की उपज अधिक होती है। जंगलों से सागौन की लकड़ी प्राप्त होती है। यहाँ का जलवायु अति उत्तम हैं। यहाँ जाड़े में अधिक सर्दी एवं गरर्मी में अधिक गरमी पड़ती है। नासिक नगर में वार्षिक वर्षा २९�� तक होती है। यहाँ के उद्योगों में वस्त्र तथा कुटीर स्तर पर तेल पेरने के उद्योग प्रमुख हैं। यहाँ से बाहर जानेवाली वस्तुओं में अनाज, तिलहन, सूती कपड़ा, रेशमी वस्त्र, सन, ताँबा तथा पीतल का स्थान प्रमुख है। गेहूँ, कच्चा रेशम, सूत, ताँबा पीतल तथा नमक आदि बाहर से यह मँगाया जाता है।
नगर, स्थिति : २०� ०� उ.अ. तथा ७३� ४३� पू.दे.। यह नासिक जिले में बंबई से १०७ मील दूर उत्तर-पूर्व में प्रसिद्ध नगर है, जो गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर बसा है। यह नए एवं पुराने दो विभागों में बँटा है। नदी के बाएँ किनारे पर पंचवटी है, जो वस्तुत: इसी नगर का एक भाग है एवं विक्टोरिया पुल द्वारा नासिक के शेष भाग से जुड़ा है। यहाँ पर गोदावरी नदी के किनारे कई धार्मिक कुंड बने हैं जिनमें रामकुड अधिक प्रसिद्ध है। यह नगर हिंदुओं का बहुत बड़ा तीर्थस्थान है। ऐसा कहा जाता है कि श्री राम, लक्ष्मण, एवं सीता जी ने कुछ समय यहाँ पर निवास किया था। पंचवटी से एक मील पूर्व में स्थित तपोवन एवं इससे छह मील पश्चिम में स्थित एक अति सुंदर प्रपात है।
यहाँ की पांडु गुफा तथा प्रचीन बौद्ध गुफाएँ दर्शनीय है। यहाँ गौतम बुद्ध, बोधिसत्व, वज्रपाणि, पद्मपाणि एवं बौद्ध देवी तारा की मूर्तियाँ भी हैं। यहाँ पर हाथ करघे से कपड़ा बुना जाता है। शराब बनाना, साबुन, बीड़ी, सुँधनी, तंबाकू बनाना, चाँदी, पीतल एवं ताँबे के समान बनाना यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। नासिक का बरतन उद्योग बहुत प्रसिद्ध है। नगर के समीपवर्ती क्षेत्र में अमरूद, अंगूर तथा शाक की कृषि की जाती है। शिक्षा का यहाँ उत्तम प्रबंध है। इसके पास ही मिट्टी के रासायनिक विश्लेषण की प्रयोगशाला है। यहाँ प्रत्येक १२ वर्ष पर जब सिंह राशि के बृहस्पति होते हैं तब कुंभ का मेला लगता है। यहाँ की कुल जनसंख्या २,१५,५७६ (१९६१) थी। यहाँ ऐतिहासिक महत्व के शिलालेख भी मिलते हैं।
(भीखनलाल आत्रेय)