नार्थब्रुक, टामस जार्ज वेयरिंग लार्ड नार्थ ब्रुक का जन्म २२ जनवरी १८२६ ई. को हुआ। आपने आक्सफोर्ड के क्राइस्ट चर्च में शिक्षा पाई तथा सन् १८४६ ई. में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके अनंतर आपकी नियुक्ति कई पदों पर हुई। आप लार्ड टॉन्टन, सर जार्जग्रे तथा सर चार्ल्स वुड के निजी सचिव रहे। सन् १८५७ से १८६६ तक आप ब्रिटिश पार्लिमेंट के सदस्य रहे। सन् १८५५ से १८५८ तक आप एडमिरेल्टी के लार्ड रहे, तदनंतर १८६१ में आप युद्ध विभाग मे उपसचिव बने। सन् १८६१ से १८६४ तक भारत के उपसचिव, तथा सन् १८६४ से १८६६ तक गृह विभाग के उपसचिव रहे। सन् १८६६ में आप एडमिरेल्टी विभाग के सचिव बने तथा ग्लैडस्टन मंत्रिमंडल में १८६८ से १८७२ तक आप युद्धविभाग के सचिव रहे। सन् १८७२ से १८७६ तक आप भारत के गवर्नरजनरल एवं वायसराय नियुक्त हुए। सन् १८७६ में सेक्रेटरी आव स्टेट से मतभेद हो जन पर अपने त्यागपत्र दे दिया। सन् १८८५ ई. तक आप ग्लैडस्टन के दूसरे मंत्रिमंडल में फर्स्ट लार्ड आव एडमिरेल्टी के पद पर रहे। सन् १८८४ में आप ईजिप्ट भेजे गए तथा १५ नवबंर, १९०४ को आपका देहावसान हो गया।

अफगानिस्तान की उत्तर-पश्चिमी सीमा की ओर रूस की बढ़ती हुई शक्ति के सदर्भ में अमीर शेर अली ने यह आश्वासन चाहा कि यदि रूस ने उसपर आक्रमण किया तो उसे ब्रिटिश सहायता प्राप्त होगी। एतदर्थ शिमला में जुलाई, १८७३ में एक संमेलन भी हुआ किंतु लार्ड नार्थब्रुक ने इंग्लैड की सरकार के आदेशानुसार अमीर को यह उत्तर दिया कि यदि वह बिना किस शर्त के अपनी विदेशनीति में अंग्रेजों की सलाह मान तो वे उसे अस्त्रशस्त्र तथा सैन्य सहायता देंगे जिससे वह बाह्य आक्रमणकारी को रोक सके और वहाँ जैसी सहायता की आवश्यकता हागी अंग्रेज सरकार खुद ही उसका निर्णय करेगी। इस प्रकार लार्ड नार्थब्रुक मेयो के आश्वासनों से अधिक आगे नहीं बढ़ा। फलत: अफगानिस्तान का अंग्रेजी सहायता पर से विश्वास ही डगमगा गया। सन् १८७४ में ग्लैडस्टन मंत्रिमंडल की हार पर डिसरायली के साम्राज्यवादी भारतीय सचिव लार्ड सैलिसबरी ने लार्ड नार्थब्रुक को आदेश दिया कि वह अफगानिस्तान के अमीर से ब्रिटिश ऐजेंट को आमंत्रित करने को कहे। लार्ड नार्थब्रुक ने इस नीति का विरोध किया परंतु फिर भी जब लार्ड सैलिसबरी ने दुबारा अपनी बात पर जोर दिया तो नार्थब्रुक ने त्यागपत्र ही दे दिया।

लार्ड नार्थब्रुक के शासन की दूसरी महत्वपूर्ण घटना थी बड़ौदा के गायकवाड़ मल्हार राव को सिंहासन से च्युत करना। सन् १८७५ ई. में उसके ऊपर अंग्रेज राजदूत को विष देने का अपराध लगाया गया परंतु यह अपराध साबित न हो सका। थोड़े ही समय में लार्ड सैलिसबरी के आदेशपर लार्ड नार्थब्रुक ने उसे सिंहासन से च्युत कर दिया और उसकी जगह उसी परिवार के एक नाबालिग को गद्दी पर बिठा दिया।

लार्ड नार्थब्रुक ने सन् १८७३-१८७४ ई. के भीषण दुर्भिक्षों का सामना किया। उसने नागाओं का उत्पात भी शांत किया। आपके शासनकाल के अंतिम दिनों में प्रिंस आव वेल्स, जो आगे चलकर एडवर्ड सप्तम कहलाए, भारत आए।

लार्ड नार्थब्रुक को आर्थिक विषयों का बड़ा अच्छा ज्ञान था। आपने आयात कर घटाकर ५ प्रतिशत कर दिया तथा १८७५ में तेल, चावल, नील और लाख को छोड़कर अन्य चीजों से निर्यात कर हटा दिए। शासन के अंतिम दिनों में लार्ड डिसरायली की अनुदारदलीय सरकार ने लंकाशायर के कपड़ों से ५ प्रतिशत आयात कर हटा देने के लिए कहा परंतु आप इससे सहमत न हो सके। कुछ लोगों का मत है कि यह भी उनके त्यागपत्र का एक कारण था।

(जितेंद्रनाथ वाजपेयी )