नारायण भट्ट दक्षिण के मदुरा नगर के माध्व संप्रदायी भृगुवंशी ब्राह्मण भास्कर भट्ट के पुत्र थे। माता का नाम यशोमति था तथा जन्म वैशाख शु. १४, सं. १५८८ को हुआ था। यह संस्कृत के प्रकांड पंडित तथा प्रतिभाशाली थे। १२ वर्ष की अवस्था ही में यह गृहत्यागी हो गए और यात्रा करते सं. १६०२ में ब्रज पहुँच गए। श्री चैतन्य के पार्षद गदाधर पंडित के शिष्य कृष्णदास ब्रह्मचारी राधाकुंड पर मदनमोहन जी की सेवा करते थे, जिनसे इन्होंने दीक्षा ली और वहीं रहने लगे। १२ वर्ष के अनंतर यह ब्रज के ऊँचे गाँव में जाकर रहने लगे और गार्हस्थ्य जीवन आरंभ किया। यहाँ बल्देव जी को तथा बरसाने में लाडिली लालजी को प्रतिष्ठापित किया, जिनकी सेवा अभी तक इन्हीं के वंशज तथा शिष्य करते हैं। इनका देहावसान १७वीं शती के प्राय: अंत में वामन द्वादशी को हुआ। इन्होंने लगभग ६० रचनाएँ संस्कृत में प्रस्तुत कीं। ब्रजभक्तिविलास, ब्रजोत्सव चंद्रिका अनेक ग्रंथों में ब्रज के स्थानों, उत्सवों आदि का विस्तार से वर्णन है। लीला सबंधी एक प्रेमांकुर नाटक भी लिखा है। इन्होंने ब्रज के लुप्त तीर्थों के उद्धार, ब्रजयात्रा के प्रचार तथा भावुक भक्तों के लिए रासमंडलियों की स्थापना में बहुत प्रयास किया (द्रष्टव्य श्री नारायण भट्ट चरितामृतम्)।((स्वर्गीय) ब्रजरत्नदास)