नारायणप्रसाद 'बेताब' प्रसिद्ध नाटककार जो जाति के ब्रह्मभट्ट थे। बुलंदशहर के एक कस्बे में संवत् १९२९ में उनका जन्म हुआ। बाल्यकाल से ही उन्हें तुकबंदी का शौक था। औरंगाबाद के पंडित श्लेषचंद वैद्य से उन्होंने पिंगल शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया और ये 'भूलना' लिखकर दंगलों में सुनाने लगे।
वैद्य जी के अतिरिक्त बेताब ने जनाब हकीम मो. खाँ साहब तालिब को उस्ताद मानकर उनसे भी उर्दू की शिक्षा प्राप्त की। साथ ही उन्होंने निजामी तथा कैफ साहब से पद-विन्यास-पद्धति तथा उर्दू न्यायशास्त्र सीखा।
छंद:शास्त्र की पुस्तक 'पिंगलखार' तथा आलोचना की दिशा में उन्होंने 'पद्य परीक्षा' नामक पुस्तक की रचना की। नये कवियों के पथप्रदर्शन के लिए बेताब ने 'प्रासपुंज' नामक पुस्तक लिखी। 'मिश्र बंधु प्रलाप' नामक पुस्तक में हिंदी नवरत्न में मिश्रबंधुओं द्वारा ब्रह्म भट्ट जाति पर लगाए गए लांछनों का युक्तियुक्त खंडन किया। यह पुस्तक अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज की ओर से प्रकाशित हुई है।
१९०३ ई. में बेताब पारसी थियेट्रिकल कंपनी में कार्य करने के लिए बंबई चले गए। बंबई में एल्फ्रडे कंपनी ने इनके महाभारत, रामायण तथा जहरी साँप, गणेशजन्म, सीता वनवास नामक नाटकों को खेला। नाटकों के अतिरिक्त बेताब ने चलचित्रों में भी योग दिया है। १९३१ ई. में रणजीत फिल्म कंपनी के चित्र 'देवी देवयानी' के आपने संवाद तथा गीत लिखे। भारतीय फिल्म जगत् के सफल कलाकार पृथ्वीराज कपूर को पृथ्वी थियेटर्स के निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।, मार्च, १९४४ में आपने पृथ्वी थियेटर के लिए शकुंतला नामक नाटक लिखा। नाटकों की भाषा के संबंध में बेताब हिंदुस्तानी के पक्षपाती थे। इनकी हिंदुस्तानी एकदम उर्दू की ओर झुकी हुई नहीं होती थी परंतु उसमें यथास्थान संस्कृत हिंदी के भी काफी शब्द रहते थे। बेताब की भाषा मुहावरेदार तथा टकसाली थी। उन्होंने २४ नाटकों, ३७ फिल्मी कथाओं तथा ३८ अन्य पुस्तकों की रचना की है। १५ सितंबर, १९४५ ई. को उनकी मृत्यु हुई।
(गिरीशचंद्र त्रिपाठी)