नायडू,
सरोजिनी श्रीमती
सरोजिनी नायडू
की शिक्षादीक्षा
भारत तथा विदेश
में हुई। यह सुप्रसिद्ध
कवयित्री थीं तथा
'नाइटिंगेल ऑव
इंडिया' (भारत
की बुलबुल) के
नाम से जानी
जाती थीं। इन्होंने
अंग्रेजी में कई
पुस्तकें भी लिखी
थीं जैसे 'वर्ड ऑव
टाइम'। यह वह समय
था जब भारतीय
महिलाओं में अपनी
स्थिति सुधारने
का बड़ा उत्साह था।
उनमें राजनीतिक
जागरूकता भी
उत्पन्न हुई। सन्
१९१७ में एक महिला प्रतिनिधिमंडल
ने स्त्रियों के मताधिकार
के संबंध में वाइसरॉय
से भेंट की। इस संबंध
में सरोजिनी
ने बड़ा काम किया।
उन्होंने कुछ अन्य
स्त्रियों के साथ
सन् १९१९ के भारत
सरकार के बिल
पर ज्वाइंट सेलेक्ट
कमिटी के संमुख
गवाही दी। इसी
का परिणाम था
कि भारत सरकार
के १९३५ के ऐक्ट द्वारा
भारतीय स्त्रियों
को राजनीतिक
अधिकार मिले।
श्रीमती नायडू
पहली भारतीय
महिला थीं जो
दिसंबर, सन्
१९२५ में भारतीय
राष्ट्रीय काँग्रेस
की अध्यक्षा चुनी
गई।
सरोजिनी नायडू को राजनीतिक कार्यों के संबंध में कई बार जेल जाना पड़ा। भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के कुछ पूर्व नई दिल्ली में एशियाई राष्ट्रों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें भारत ने 'एक विश्व' के आदर्श के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ का समर्थन किया। सरोजिनी इस संमेलन की अध्यक्षा बनाई गई। स्वंतत्र भारत ने श्रीमती नायडू की सेवाओं के फलस्वरूप उन्हें उत्तर प्रदेश का गवर्नन पद प्रदान किया। इस पद पर काम करते हुए १९४७-४८ में उनकी मृत्यु हुई।
( मिथिलेश चंद्र पांडा)