नाभिकाणु नाभिक के प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन को संयुक्त रूप से कहते हैं। नाभिक की संरचना दो प्रकार के कणों से मिलकर होती है। इनमें से एक घनात्मक होता है, जिसे प्रोटॉन कहते हैं, और दूसरा अनावेशित होता है, जिसे न्यूट्रॉन कहा जाता है। इन दोनों कणों के द्रव्यमान लगभग बराबर हैं। विद्युतीय आवेश की भिन्नता के अतिरिक्त ये दोनों कण लगभग समान होते हैं। इसलिए दोनों ही कणों के लिए एक शब्द 'नाभिकाणु' का प्रयोग युक्तिसंगत लगता है।

नाभिकाणु अंग्रेजी के न्यूक्लिऑन (nucleon) शब्द का हिंदी पर्याय है। न्यूक्लिऑन शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में नाभिकीय विखंडन का सैनिक महत्व होने के कारण अमरीकी सरकार ने नाभिकीय भौतिकी में उन गवेषणात्मक लेखों को, जिनमें न्यूट्रॉन शब्द का एक निश्चित संख्या से अधिक बार उपयोग होता था, प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस कठिनाई के कारण वैज्ञानिकों ने न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन दोनों ही को व्यक्त करने के लिए नया शब्द न्यूक्लिऑन बना लिया।

प्रोटॉन - यह हाड्रोजन परमाणु को आयनित किया जाता है तो उसमें का अकेला इलेक्ट्रॉन निकल जाता है और धन आवेात नाभिक, अर्थात् प्रोटॉन, बच रहता है। प्रोटॉन के द्रव्यमान को नाभिकीय भौतिकी में र् माना जाता है। इसे परमाणु द्रव्यमान र् (atomic mass unit, or a m u) कहा जाता है। इसके अनुसार प्रोटॉन का द्रव्यमान १ a m u होता है। यह इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा लगभग १,८४५ गुना भारी होता है। प्रोटॉन अपने अक्ष पर घूमता है, जिसके कारण इसका कोणीय संवेग h/२p होता है। जहाँ h प्लांक का स्थिरांक है और इसका मान ६.६´१०-२२ अर्ग-सेकंड होता है। प्रोटॉन के इस कोणीय संवेग को चक्रण कोणीय संवेग (spin angular momentum) कहा जाता है। प्रोटॉन धन आवेात होता है और इसपर आवो की मात्रा एक इलेक्ट्रॉन पर के आवो के बराबर होती है। प्रोटॉन के चक्रण के कारण इसका धन आवो एक वृत्तीय विद्युद्धारा के तुल्य होता है। इस वृत्तीय विद्युद्धारा के कारण प्रोटॉन के अक्ष के समांतर एक चुँबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस चुंबकीय क्षेत्र की एक चुंबकीय आघूर्ण से व्यक्त किया जा सकता है, जिसे प्रोटॉन का चुंबकीय आघूर्ण कहते हैं। चुंबकीय आघूर्ण कोणीय संवेग का समानुपाती होता है : m=g1

इस समीकरण में m चुंबकीय आघूर्ण, I कोणीय संवेग तथा g एक स्थिरांक है। यदि प्रोटॉन एक समरूप आवेात गोला होता तो इसके लिए g=1 होता। डिरेक (Dirac) के सिद्धांत के अनुसार प्रोटॉन के लिए g=2 होना चाहिए। परंतु वास्तव में प्रोटॉन का चुंबकीय आघूर्ण +२.७९ र् है, अर्थात् प्रोटॉन का चुंबकीय आघूर्ण सैद्धांतिक मान से अधिक है। इसका कारण अभी तक समझा नहीं जा सका है। प्रोटॉन पर धन आवो है, इस कारण इसके चक्रण से जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है उसकी दााि और कोणीय संवेग की दााि एक ही होती है। इसलिए इसके चुंबकीय आघूर्ण को धनात्मक कहा जाता है।

न्यूट्रॉन - इसका आविष्कार चैडविक ने सन् १९३२ में किया था। जब बेरीलियम पर पोलोलियम से निकलनेवाले ऐल्फा (a) कणों की बौछार की जाती है, तब इसमें से अत्यधिक भेदन ाक्ति की किरणें निकलती हैं। उस समय तक केवल गामा (g) किरणें ही ज्ञात थीं, जिनकी भेदक्षममता बहुत अधिक थी। अत: अनुमान किया गया कि ये गामा किरणें हैं। बाद में यह पाया गया कि यदि ये किरणें मोम या ऐसे हल्के पदार्थ पर पड़ती हैं, जिसमें हान प्रोटॉनों की महत्तम ऊर्जा ५.३ MeV (मिलियम इल्केट्रान वोल्ट) थी। यदि ये प्रोटॉन गामा किरणों के कारण उत्पन्न होते हों, तो ऊर्जा और संवेग की गणना से र्जा ५२ MeV आती थी, जो बहुत ही अधिक थी। इस कठिनाई का दूर करने के लिए चैडविक ने यह सुझाव दिया कि वेरीलियम में जब ऐल्फा कण अवाोषित होते हैं, तो कार्बन का नाभिकाणु बनता है और प्रोटॉन के द्रव्यमान के बराबर एक कण उत्पन्न होता है। इसपर विद्युतीय आवो नहीं होता, अर्थात् यह उदासीन (neutral) होता है। इसका नाम चैडविक ने न्यूट्रॉन रखा। चैडविक के अनुसार उपर्युक्त अभिक्रिया इस प्रकार होती है : 4Be9+2He4®6C12+0n1

आजकल भी न्यूट्रॉन उत्पन्न करने के लिए यही अभिक्रिया काम में लाई जाती है। वेरीलियम के एक बेलन में कोई ऐल्फा उत्सर्जक रख दिया जाता है, जिसी अर्धआयु बहुत अधिक हो। इसमें से जब ऐल्फा कण निकलते हैं तब वे वेरीलीयम में अवशोषित हो जाते हैं और तब उपर्युक्त अभिक्रिया से न्यूट्रॉन प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त ड्यूटेरान का जब अधिक ऊर्जावाली गामा किरणों द्वारा विखंडन होता है तब उसमें से भी प्रोटॉन और न्यूट्रॉन अलग हो जाते हैं।

प्रोटॉन धन आवेशित होते हैं, अत: उनका पता तो आसानी से लगाया जा सकता है। परंतु न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं, इसलिए इनका संसूचन (detection) आसानी से नहीं होता। न्यूट्रॉन के संसूचन के लिए सदैव किसी ऐसी अभिक्रिया का सहारा लेना पड़ता है जिसमें अविशित कण उत्पन्न हों। एक विधि में न्यूट्रॉन जब किसी ऐसे पदार्थ से टकराते हैं जिसमें हाइड्रोजन हो, तब उसमें से वे प्रोटॉन स्वतंत्र कर देते हैं। इन प्रोटॉनों का फिर साधारण विधि से संसूचन किया जा सकता है। दूसरी विधि जिसमें ऊर्जा ज्ञात करना संभव नहीं है, बोरोन द्वारा ऐल्फा कण उत्पन्न करने की है। बोरॉन ट्राईक्लाराइड गैस में जब न्यूट्रॉन प्रवेश करते हैं तब वे बोरॉन के हलके समस्थानिक B१० से अभिक्रिया करते हैं। इसमें लीथियम और ऐल्फा कण उत्पन्न होते हैं: 5B10+0n1® 3Li7+2He4। इन ऐल्फा कणों का संसूचन फिर सरल हो जाता है। यह विधि अधिक प्रचलित है।

न्यूट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान से अधिक होता है। इसका द्रव्यमान १.००८९८ amu होता है। न्यूट्रॉन भी अपने अक्ष पर चक्रण करता है जिसके कारण इसका कोणीय संवेग h/२p होता है। यद्यपि न्यूट्रॉन अनावेशित है, तथापि इसके चक्रण के कारण चुंबकीय आघूर्ण होता है। इसके चुंबकीय आघूर्ण का मान -१.९१ इकाई है। इसका अर्थ यह होता है कि न्यूट्रॉन कुछ आवेशों से मिलकर बना है, तथापि यह संपूर्ण रूप से अनावेशित है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि न्यूट्रॉन और प्रोटॉन दोनों ही में एक केंद्रिय भाग होता है, जिसे न्यूक्लिओर (nucleor) कहते हैं। इसके चतुर्दिक आवेशित मध्याणु (mesons) चक्कर काटते हैं। इसके अनुसार न्यूट्रॉन के केंद्र में धनावेशित क्रोड़ (core) है, जिसके चारों ओर ऋण मध्याणु घूमते हैं। इन्हीं मध्याणुओं के कारण चुंबकीय आघूर्ण होता है। अतएव यह ऋणात्मक होता है। ऋणात्मक का अर्थ यह है कि चुंबकीय आघूर्ण की दिशा कोणीय संवेग की दिशा के विपरीत होती है।

न्यूट्रॉन का विघटन - प्रोट्रॉन की अपेक्षा न्यूट्रॉन का द्रव्यमान ०.००८९८ amu अधिक है, जब कि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान ०.००५५ amu है, अर्थात् न्यूट्रॉन और प्रोट्रॉन के द्रव्यमान का अंतर इलेक्ट्रान के द्रव्यमान का लगभग २.५ गुना है। अत: कोई न्यूट्रॉन यदि कहीं अवशोषित नहीं होता तो वह ए- विघटन द्वारा प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है :

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स्वतंत्र न्यूट्रॉन की अर्ध आयु १२.८ मिनट है, परंतु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि न्यूट्रॉन की रचना प्रोट्रॉन और इलेक्ट्रॉन को मिलाकर हुई है। वास्तव में न्यूट्रॉन भी एक मौलिक कण (fundamental particle) है, जो अस्थायी होता है। (धनवंतकाोिर गुप्त.)