नवीन नवीन नामधारी दो कवि हैं। एक नवीन भट्ट जो बिलग्राम (जिला हरदोई) के निवासी थे और दूसरे नवीन ब्रजवासी। 'मिश्रबंधु विनोद' में नवीन विलग्रामी का जन्मकाल सं. १८९८ वि. दिया है और उन्हें 'महिम्न भाषा' तथा 'शिवतांडव' संज्ञक ग्रंथों का कर्ता भी कहा गया है। किंतु महत्व और प्रसिद्धि दोनों दृष्टियों से दूसरे नवीन (ब्रजवासी) का उत्कृष्ट स्थान है। 'मिश्रबंधुविनोद', भा. ३ में उसकी चार कृतियों का उल्लेख हुआ है - (१) 'सुधासार', (२) 'सरसरस', (३) 'नेहनिदान' और (४) 'रंगतरंग'। 'सुधासार' को हिंदी-पुस्तक-साहित्य में जगन्नाथदास 'रत्नाकर' द्वारा संपादित और बनारस से प्रकाशित बताया गया है। 'सरस रस' किस प्रकार की कृति है, इस विषय में किस सूचना का अभाव होते हुए भी यह अनुमान से कहा जा सकता है कि इसका संबंध प्रेमवर्णन अथवा शृंगार से ही होगा। सन् १९०५ की खोजरिपोर्ट (संख्या ३९) से पता लगता है कि 'नेहनिदान' का प्रधान वर्ण्य विषय प्रेम है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति छतरपुर के जगन्नाथप्रसाद के यहाँ मिली है, जिसमें लिपिकाल सं. १९०७ वि. दिया हुआ है। इसमें कुल छंद १४५ हैं। इसी के अंतस्साक्ष्य से यह भी ज्ञात होता है कि इस कवि के आश्रयदाता मालवा के राजा जसवंतसिंह का शासनकाल १७वीं शताब्दी का उत्तरार्ध या शाहजहाँ का समय माना जाता है, इसलिए मोटे तौर पर कवि का भी वही समय मानना चाहिए। रस-वर्णन-प्रधान 'रंगतरंग' का निर्माणकाल, मिश्रबंधुओं के अनुसार सं. १८९९ वि. है और यही कवि की अंतिम कृति भी हैं।

इनके अतिरिक्त त्रयोदश त्रैवार्षिक खोज रिपोर्ट (संख्या ३३० ए, ३३० बी) से इस कवि की 'शृंगारशतक' और 'शृंगारसप्तक' रचनाओं का और पता चला हैं। दोनों के प्रधान वर्ण्य विषय शृंगार और नायिकाभेद हैं। 'शतक' वाली प्रति का लिपि काल सं. १८३५ वि. और 'सप्तक' का सं. १८५८ वि. है। प्रथम में कुल ३२० और द्वितीय में ४४० छंद हैं।

( रामफेर त्रिपाठी )