नवकांटवाद १९वीं शती ईसवी के मध्य में उदित एक दार्शनिक विचारधारा। यह एक ओर कांट के बाद फिख्ते, शेलिंग आदि द्वारा प्रतिपादित और हेगेल के परम निरपेक्षवाद में विकसित अध्यात्मवाद की प्रतिक्रिया के रूप में और दूसरी ओर प्राकृतिक विज्ञान की प्रगति द्वारा प्रतिष्ठाप्राप्त भौतिकवाद की प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुई। इस विचारधारा के दार्शनिक तत्वशास्त्र मात्र को संशय की दृष्टि से देखते रहे हैं और इमानुएल कांट द्वारा स्थापित आलोचनावाद के पुनरुद्धार का प्रयत्न करते रहे हैं। उन्होंने कांटकृत शुद्ध बुद्धि की आलोचना को आधार मानकर उसकी आलोचनात्मक, ज्ञानदर्शनात्मक एवं नीतिदर्शनात्मक मान्यताओ को आधुनिक दार्शनिक समस्याओं को सलझाने योग्य बनाने का प्रयास किया है। साथ ही उन्होंने कांट के दर्शन के कुछ दोषों की आलोचना करते हुए उसके संशोधन का प्रयत्न भी किया है। जैसे उन्होंने कांट द्वारा प्रतिपादित पदार्थ सूची की पूर्णता में संदेह प्रगट किया है और उसे केवल आकृतिक तर्कशास्त्र पर आधारित बताया है। उन्होंने यह भी आपत्ति की है कि कभी-कभी कांट पदार्थों को ही प्रागनुभव प्रत्यय कह देता है।

फिर भी नवकांटवादियों का कथन रहा है कि अति प्राचीन दार्शनिक अफलातून भी अपने प्रत्यय सिद्धांत तथा अपनी पूर्वास्तित्व एवं संस्मृति की धारणाओं द्वारा कांट प्रतिपादित प्रागनुभव प्रत्ययों पर पहुँचने का ही प्रयास कर रहा था। निरपेक्ष परमतत्ववाद उन्हें कांट के प्रति विश्वासघात प्रतीत हुआ है। साधारण प्रतीति तथा परमतत्व के बीच उन्हें एक बीहड़ खाई दिखी है। अत: उन्होंने कांट की ज्ञानसीमाओं की धारणा के अपनाकर अपने का तत्व दर्शन विरोधी घोषित किया है। उन्होंने प्रतीति मात्र को अंतिम तत्व नहीं कहा है, परंतु परमतत्व को मानव ज्ञान से परे अवश्य माना है।

उनकी भौतिकवाद की आलोचना वैज्ञानिक चिंतनकार्य एवं नीतिनियमों के स्वरूप मे विश्लेषण पर आधारित रही है। उन्होंने प्रकृति के नियंत्रण में यांत्रिक एवं जड़नियमवादी विधि द्वारा प्राप्त प्राकृत विज्ञान की सफलताओं को स्वीकार करते हुए, इस ओर विशेषतया ध्यान आकर्षित किया है कि प्राकृतिक विज्ञान का परिष्करण आत्मगत सक्रियता से ही संभव हुआ है। इस प्रकार नवकांटवादियों के हाथों में दर्शन प्राकृतिक विज्ञान पर केंद्रित ज्ञानसिद्धांत बन गया है।

नवकांटवाद बहुत सुसंगठित संप्रदाय नहीं रहा है। कांटवाद की ओर लौटने की आवाज सर्वप्रथम लीबमान्, बाइस, ज़ेलर, फोर्टलाग, हेम् तथा फिशर ने उठाई थी। लीवमान् ने अपने ग्रंथ 'फिर कांट की ओर' में ज्ञान की प्राप्ति तत्वदार्शनिक तर्क से नहीं, विज्ञान से संभव मानी, इसलिए कि विज्ञान में ज्ञान अनुभवात्मक प्रदत्तों तथा पदार्थों एवं अपरोक्षाकृतियों से बने हमारे मानसिक उपकरण का फल होता है। अत: उसका आग्रह था कि कांटदर्शन में तत्वदर्शन निकाल देना चाहिए और दर्शन के विषय केवल विज्ञान के पूर्वगृहीत विश्वास ही होने चाहिए।

नवकांटवादियों का मुख्य दल मार्बुर्ग विश्वविद्यालय में केंद्रित होने के कारण मार्बुर्ग दल कहलाया है। इसका प्रमुख नेता हर्मान् कोहेन् (१८४१-१९१८) था। उसने कांट के संशोधन में चिंतन को उपलब्ध प्रदत्तों का संगठित करनेवाला नहीं, स्वयं अपने संकल्प से उन का सर्जन करनेवाला कहा। उसका मत था कि ज्ञाता अथवा ज्ञेय काई भी उपलब्ध प्रदत्त हमें कहीं से तथ्य रूप में दिए हुए नहीं मिलते। उसने नीति के मूल सिद्धांतों पर बल दिया और यह मत स्थापित किया कि शुद्ध संकल्प सामाजिक नियमों में व्यक्त सामुदायिक संकल्प में मिलता है। व्यक्ति समुदाथ का अंग रहकर अपने जीवन में समुदाय के नियमों के वास्तविकीकरण का प्रयत्न करते हुए ही नैतिक हो सकता है।

मार्बुर्ग दल का ही हांस् फ़ाइहिंगर् (१८५२-१९३३) नवकांटवादी संप्रदाय में ज्ञानदर्शनात्मक खोजों का प्रमुख प्रवर्त्तक था। उसने स्वयं इस मत का प्रतिपादन किया कि ज्ञान से हमें एक 'जैसे कि' मात्र प्राप्त होता है। उसी दल में से आल्ब्रेख्त रिश्ल् (१८२२-१८८९) ने धार्मिक सिद्धांतों को प्रतीक मात्र घोषित करके उन्नीसवीं शती के उत्तरार्ध में ईसाई धर्मदर्शन की नवकांटवादी विचारधारा की स्थापना की। यह विचारधारा कांट के नीतिदार्शनिक विचारों को अधिक महत्व देती है।

नवकांटवादियों का एक अन्य दल हाइडलबर्ग दल कहलाया। इसमें विल्हेल्म विंडलबांड (१८४८-१९१५), हाइनरिख रिकर्ट (१८६३-१९३६), और अर्नेस्ट ट्रोएल्ट्श (१८६५-१९२३) प्रमुख थे। इन्होंने इतिहास के विशिष्टीकरणात्मक न्याय और प्राकृतिक विज्ञानों के सामान्यीकरणात्म्क न्याय और प्राकृतिक विज्ञानों के समान्यीकरणात्मक न्याय का विरोध दर्शाकर कांट के नीतिसिद्धातों को ऐसे विस्तृत मूल्य सिद्धांत का रूप दिया जिसने आध्यात्मवादियों द्वारा उपेक्षित विशिष्ट व्यक्तियों और ऐतिहासिक घटनाओं को मान्यता प्रदान की।

नवकांटवादियों के एक दल ने एक अंतरास्थतावाद नामक दार्शनिक सिद्धांत का निर्माण भी किया। इस दल में शुप्प, रेम्क तथा शूर्क्ट सल्डनं प्रमुख थे।

सं.ग्रं. - लीबमान : कांट उंड डी एपिगोनेन; कोहेन् : एथिक डेस राइनेन विलेंस; कोहेन् : सिस्टेम ढेर फ़िलोसोफ़ी; बिंडलवांड : आन्लाइटुंग इन डी फ़िलोसोफ़ी; रिकर्ट : डी ग्रेंज़ेन डेर नाटूर्विस्सेन्शाफ़्ट्लिख बेग्रिपस् बिल्डुंग; ट्रोएल्ट्श : डेर हिस्टोरस्मुस् उंड ज़ाइन उबेबिंड्डंग; फोर्टलाग : दि जेनेटिक हिस्टरी ऑव फ़िलोसोफी सिंस कांट; फ़ाइहिंगर : फ़िलोसोफ़ी डेस् आल्स ओव।

(राममूर्ति लूंबा)