नल ऐसी
गोल, लंबी रचना
को कहते हैं जिसका
भीतरी भाग खोखला
हो और जिसके
भीतर एक सिरे
से दूसरे सिरे
तक द्रव या गैस
द्रव्यों का निर्बाध
प्रवाह हो सके।
प्राचीन काल से
ही भारत में नलों
का प्रयोग होता
रहा है। मोहनजोदड़ो
की खुदाई में
भूमि के नीचे
पकाई मिट्टी
के बने नल पाए
गए हैं। उनका काल
लगभग आज से ५००० वर्ष
पहले का है। मुगलों
के जमाने में भी
नलों का प्रयोग
पानी को ले जाने
के लिए होता था,
जैसा बिहारी
सतसई के इस दोहे
से प्रकट होता
है : 'नल बल जल ऊँचो
चढ़त, अंत नीच को
नीच'। आजकल नल
विविध पदार्थों
के बनाए जाते हैं।
- ढलवें
लोहे के नल
- बड़े व्यास
के नलों के लिए
ढलवाँ लोहा
ही व्यवहार में
लाया जाता है,
क्योंकि यह मजबूत
और टिकाऊ
होता है, और
३० इंच व्यास तक के
नलों के निर्माण
में इन्हें काम में
लाया जाता है।
इन्हें नौ फुट और
१२ फुट की लंबाइयों
में ढाला जाता
है।
- भ्रमित
(स्पन, द्मद्रद्वद) लोहे के
नल - अब ढलवें
लोहे के स्थान
पर १७ इंच व्यास
तक के नलों में
इन्हें काम में लाया
जाता है, क्योंकि
इनका भार ढलवें
लोहे के भार
का तीन चौथाई
और तनाव सामर्थ्य
उससे अधिक होता
है। इनकी भीतरी
सतह भी ढलवे
लोहे से अधिक
चिकनी होती
है।
- इस्पात ओर
पिटवाँ लोहे
के नल - यह नल
चढ़ाई पर चढ़ती
हुई नालियों
के लिए प्रयोग
में लाए जाते हैं,
विशेषकर जो
हवा में खुली
हुई हों। इनका
व्यास ३, ४ फुट तक
होता है। पुलों
या ऐसी ही अन्य रचनाओं
को पार करने
के लिए भी इन्हें काम
में लाया जाता
है, क्योंकि इनका
भार कम होता
है।
- इस्पात या
पिटवाँ लोहे
के जस्ती नल -
ये नल अधिकतर
वितरण नालियों
के काम में आते
हैं। जहाँ जल मृदु
हो वहाँ ये नल
शीघ्र गल जाते
हैं। ये इंच से ३ इंच
व्यास तक के बनाए
जाते हैं। छोटा
होने के कारण
इन्हें 'नली' भी कहा
जाता है। इन्हें
मृदु जल के प्रभाव
से बचाने के
लिए इनके भीतर
सीमेंट के मसाले
(१ सीमेंट ३ रेत)
का अस्तर कर दिया
जाता है।
- सीसे
के नल - ये नल
मकानों के भीतर
नलकारी के काम
में वहाँ लगाए
जाते हैं जहाँ
नलों को मोड़ना
पड़ता है और
उनके लचीला होने
की आवश्यकता होती
है।
- ताँबे
के नल - इनमें
जंग नहीं लगता
और ये आसानी
से मोड़े जा सकते
हैं। गरम होने
पर झुकते भी
नहीं। इसलिए मकानों
के भीतर ठंडे
और गरम जल
के लिए इनका प्रयोग
होता है।
- सीमेंट
कंक्रीट के नल
- ये कारखानों
में बनाए जाते
हैं और 'ह्यूम
पाइप' के नाम
से मिलते हैं।
इनमें जंग और
फफूँदी नहीं
लगती, इसलिए ये
धातु के नलों
से अच्छे रहते हैं।
२४ इंच व्यास के बड़े
नलों में लोहे
की छड़ों के बदले
लोहे का सिलिंडर
(cylinder) ही सीमेंट
कंक्रीट के बीच
में लगा दिया
जाता है।
- ऐस्बेस्टस
सीमेंट के नल
- इस प्रकर
के नल थोड़े दिनों
से प्रयोग में
आए हैं। इनके बनाने
में सीमेंट के
साथ एस्बेस्टस भी
मिला दिया जाता
है। जंग आदि न
लगने के कारण
ये भीतर से भी
चिकने ही बने
रहते हैं, इसलिए
इनकी जलवहनक्षमता
अधिक होती है।
- पकाई
मिट्टी के नल
- विशेष
प्रकार की मिट्टी
को पकाकर इन्हें
बनाया जाता
है और इनमें
से पानी का रिसना
बंद करने के
लिए इन्हें नमक से
चिकना कर दिया
जाता है। विशेष
रूप से ये नल मलनालियों
के लिए प्रयुक्त होते
हैं।
विविध
सामग्री से निर्मित,
उपर्युक्त विभिन्न
प्रकार के नल आवश्यतानुसार
विविध मानक
लंबाइयों में
बनाए जाते हैं।
इन्हें आपस में जोड़ने
के लिए कई प्रकार
के जोड़ों का प्रयोग
किया जाता है।
कुछ में एक सिरे
पर चूड़ी भीतर
की ओर और
दूसरे सिरे
पर बाहर की
ओर रहती है,
जिससे एक नल दूसरे
के भीतर प्रवेश
कर सके। विविध
पंपयंत्रों के
द्वारा पानी ऊँचे
तल पर बनी टंकियों
में पहुँचाया
जाता है और
फिर वहाँ से
वितरणपद्धति
के अनुसार छोटे
व्यास के नलों
द्वारा नगर के
घरों में पहुँचाया
जाता है। नलों
को मलजल बहाने
के काम में भी
लाया जाता है।
इस कार्य के लिए
अधिकतर सीमेंट
कंक्रीट के, या
पकाई मिट्टी
के, चिकने नल काम
में लाए जाते हैं। (ब्रजमोहनलाल)