नरवानर गण नरवानर स्तनी वर्ग का एक गण है, जिसके अंतर्गत मानव, वानर, कपि, कूर्चमर्कट (tarsier) तथा निशाकपि या लीमर (lemur) आते हैं।
संरचना तथा स्वभाव - नरवानर अधिकांश वृक्षवासी प्राणी हैं, जिनके हाथ पैर वृक्षारोहण के उपयुक्त होते हैं। हाथ स्वतंत्रतापूर्वक घुमाए और ऊपर नीचे किए जा सकते हैं। हस्तांगुलियों और पादांगुलियों में नख होते हैं, किंतु कुछ नर वानरों में नखर भी पाए जाते हैं। पादांगुष्ठ कुछ कुछ अपसारी होते हैं और उनसे टहनियों का पकड़ने का काम लिया जाता है। वृक्षवासी प्राणियों में घ्राणशक्ति की अपेक्षा श्रवण शक्ति तथा दृष्टि अधिक प्रबल होती है। दंतरचना, मिश्रित भोजन और विशेषत: फल तथा वनस्पति सेवन के अनुकूल होती है। विद्यमान नर वानरों को दो बड़े उपगणों में विभाजित किया गया है : प्रॉसिमिई (Prosimiae) और ऐंथ्रोपोइडिया (Anthropoidea)।
प्रॉसिमिई - इस उपगण के सभी नरवानर इस अर्थ में 'आद्य' कहलाते हैं कि इनमें कीटभक्षियों की विशेषताएँ - लंबा मुख, पाश्ववर्ती आँखें तथा क्षुद्र मस्तिष्क - पाई जाती हैं। इस गण में निशाकपि और कूर्चमर्कट आते हैं।
ऐशोपोइडिया - यह उपगण निशाकपि की अपेक्षा अधिक चिकसिंतेद्रिय है। इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं : दाँत ३२ से ३६ तक, अक्षिकूप सर्वथा बंद और स्तन कंधे के समीप होते है। प्रमस्तिष्कगोलार्ध, अत्यधिक परिवलयित और अनुमस्तिष्क को ढके रहता है। इस उपगण को दो कुलों, चिपिटनासा (Platyrrhina), अर्थात् पाताल वानर, एवं अधोनासा अर्थात् पातालेतर वानर (लंगूर और मनुष्य), में विभाजित किया गया है।
चिपिटनासा कुल - पातालीय वानर की विशेषताएँ निम्नांकित हैं : इसकी नासापटी चौड़ी होती है और अंगुष्ठ अपरिसारी, अवशिष्ट मात्र रह गया है। पूँछ लंबी और परिग्राही (prehensile) होती है। न कपोलधान (Cheek pouch) होते हैं और न नितंब पर किण (callosity) ही। द्वितीय प्रचर्वण दंत अभी सुरक्षित हैं। इस कुल को भी दो उपकुलों में विभाजित किया गया है :
अधोनासा कुल (पातालेतर वानर, लंगूर और मानव) - इस वंश वालों की नासापटी सँकरी और नथुने नीचे की ओर का होते हैं। मानव के समान सबके ३२ दाँत और अपरिग्राही पूँछ होती है। शरीर पर अविरल वाल और मुख लोमरहित होता है। इनको तीन उपकुलों में विभाजित किया गया है। पुच्छकपि, गोरिल्ला और मानव।
गिब्बन (शाखा
वानर) - यह
दक्षिण-पूर्वी एशिया
में पाया जाता
है। यह ऐंथ्रोपोइडिया
वानरों में से
सबसे अधिक आद्य और
छोटा है। साधारण
गिब्बन खड़ी अवस्था
में तीन फुट से
अधिक ऊँचा नहीं
होता है। यह
सर्वथा वृक्षवासी
है, किंतु भूमि
पर भी सीधा
खड़ा होकर चल
सकता है। इसकी
बाहें बहुत लंबी
होती है और
सीधा खड़ा होने
पर भूमि का
स्पर्श कर सकता
हैं। यह फलभक्षी
है, यद्यपि इसके
भेदक दंत पर्याप्त
बड़े और आत्मरक्षा
के लिए खड्ग का
काम देते हैं।
इसकी आवाज बहुत
भारी होती
है।
वनमानुष (औरांग-ऊटान) - यह सुमात्रा और बोर्नियो द्वीपां का वासी है। यह नाटा किंतु स्थूलकाय और हलके लाल बालोंवाला होता है। यद्यपि यह चार फुट ही ऊँचा होता है, तथापि इसकी भुजा सात फुट की ऊँचाई तक पहुँच सकती हैं। सिर छोटा, चौड़ा और आँखें सन्निकट होती हैं। जबड़े गहरे, भारी और फलों को चबाने तथा शत्रु का सामना करने में सहायता पहुँचाते हैं। हाथ ही प्रति रक्षाशस्त्र है और वनमानुष शत्रु से लड़ते समय दाँतों की अपेक्षा उनपर अधिक निर्भर रहता है। इसके आरोहण का ढंग मनुष्य के ही समान है। यह अपना घर वृक्षों पर शाखाओं के बीच में बनाता है। यह सर्वथा फलभक्षी प्राणी है (देखें औरांग-ऊटान)।
मध्यवानर-चिंपैजी (Chimpanzee) - यह अफ्रीका निवासी वनमानुष की अपेक्षा हलके शरीर का होने के कारण आरोहण में अधिक पटु होता है। इसका सिर भी वनमानुष की अपेक्षा बड़ा और भ्रूरेखाएँ स्पष्ट होती हैं। यह अपने रहने का स्थान बहुत कुछ वनमानुष के समान ही बनाता है। यह विशेषत: फलभक्षी है किंतु पूर्णत: नहीं (देखें चिंपैंजी)।
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गोरिल्ला
(Gorilla) भीमवानर
- यह अफ्रीका के
विषुवत् प्रदेशों
के वनों का निवासी
है। यह ऐंथ्रोपोडिया
वानरों में सबसे
बड़ा और सबसे
अधिक भयंकर भी
होता है। यह
सामान्यत: पाँच
फुट ऊँचा और
भारी शरीरवाला
है। शरीर का
भार डेढ़ सौ से
लेकर दो सौ
किलोग्राम तक
होता है। इसके
जबड़े अत्यंत शक्तिशाली
और भेदक दंत
बड़े होते हैं। इसका
चमड़ा काला होता
है जिसपर मोटे
काले बाल होते
हैं। यह यूथ में
रहनेवाला प्राणी
है और बड़े झुँड
बनाकर रहता
है। प्रत्येक झुंड
का मुखिया एक
वृद्ध नर भीमवानर
होता है। यह
झुंड मानव या
अन्य किसी प्राणी
से भयभीत नहीं
होता, प्रत्युत
डटकर सामना
करता है। भीमवानर
हाथों और दाँतों
से भयंकरता
से लड़ता है (देखें
गोरिल्ला)।
३. मानव वंश - मानव सर्वभक्षी, स्थलवासी, द्विपदगामी प्राणी है। यह दो पैरों पर सीधा खड़ा होकर चलता तथा दौड़ता है और प्रधानत: खुले स्थान पर रहता है।
(मदनमोहन मनोहरलाल गोयल)