नफ़ी (नफ़अी) तुर्की का एक प्रसिद्ध कवि (ई. १५७२-१६३६)। उसका वास्तविक नाम 'उमर' था, और उसका जन्म हसन किला नामक स्थान में हुआ, जो तुर्की गणराज्य के प्रसिद्ध नगर अरजरोम के निकट स्थित है। इसके बचपन और युवावस्था के संबंध में साहित्य समीक्षकों में बहुत अधिक मतभेद पाया जाता है। फिर भी यह प्राय: सभी मानते हैं कि उस्मानी सुलतान अहमद प्रथम (ई. १५९०-१६७०) के शासनकाल में वह साम्राज्य की राजधानी इंस्तंबोल (कुर्स्तुतुनिया) चला गया था और उस्मानी सुलतान मुराद राब के काल में उसकी प्रसिद्धि शिखर तक पहुँच चुकी थी।

नफ़ी स्वतंत्र विचारों का, गंभीर, भावुक और स्वाभिमानी व्यक्ति था। उसकी अपने समकालीन कवियों और राज्यकर्मचारियों से कभी नहीं बनी, और उनपर उसने सदैव व्यंग्यबाण चलाए। यही कारण है कि इसके व्यंग्यों का लक्ष्य बननेवाले इससे बदला लेने पर तुल गए और उन्होंने सुल्तान को अप्रसन्न कराके इसे मृत्युदंड दिलवा दिया। फिर भी वह तुर्की में उरफ़ी (फारसी कवि) की भाँति प्रसिद्ध है। इसने तुर्की और फारसी दोनों भाषाओं में कविता लिखी है, और इन दोनों भाषाओं के इसके अलग-अलग संग्रह भी प्राप्त हैं, जो अधिकतर नआत, कसीदा, गज़ल, तरक़ीबबन्द, कतअ, रुबाई, इत्यादि के रूप में हैं। इन दोनों संग्रहों के अतिरिक्त इसके व्यंग्यकाव्य का एक अलग संग्रह भी है, जो 'सहाम-ए-कज़ा' के नाम से विख्यात है।

नफ़ी ईरानी भाषा और साहित्य का भी विद्वान् था। इसलिए इसके काव्य पर उसका प्रभाव है। अपनी कविताओं में उसने इस बात का प्रयत्न किया है कि गीतों और विषयवस्तु में तादात्म्य स्थापित हो। अतएव इसकी गजलों का रूप चित्ताकर्षक हो गया है। किंतु इसकी प्रतिभा का सच्चा रूप कसीदों में दिखाई देता है जिसकी संगीतात्मकता, अभिव्यक्तिकौशल, भावोत्कृष्टता और काव्यसौष्ठव पर सभी तुर्की आलोचक एकमत हैं और इस आधार पर वह तुर्की का श्रेष्ठ 'कसीदागो' माना जाता है। नफ़ती को भारत आने का कभी अवसर नहीं मिला, किंतु इसने अपने काव्य में भारत आने का कभी अवसर नहीं मिला, किंतु इसने अपने काव्य में भारत की बहुत प्रशंसा की है और भारत के प्रसिद्ध सम्राट जहाँगीर (शाह सलीम) की प्रशस्ति में फारसी में एक कसीदा भी लिखा है, जो उसकी श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।

सं. ग्रं. - ए. जे. डब्ल्यू. ई. गिब : हिस्ट्री ऑव आटोमन पोएट्री (भाग ३) :

टर्की : स्टेन्ली लेन-पूल : नफी (इस्तांबूल, १९५४) डॉ. ए. के. करहन।