नज्मुद्दीन कुब्रा कुवराबिया अथवा ज़हाबिया संप्रदाय के संस्थापक १२वीं-१३वीं शताब्दी के फारसी सूफियों में ऊँचे दर्जे के संत थे। अध्यात्मवाद के विकास में उनका बड़ा महत्व है।
उनका पूरा नाम अहमद बिन उमर अबुल जनाब नज्मुद्दीन कुब्रा अल ख़िवाकी अल ख्वारिज्मी था तथा इनकी उपाधि अल तंमात अल कुब्रा और शैखे वली तराश थी। ख्वारिज़्म देश में स्थित खिवक नामक स्थान में ५४०/११४५ में उनका जन्म हुआ। युवावस्था भ्रमण करते व्यतीत हुई। मिस्र में प्रसिद्ध शैख रूज्विहान-अल-वज़्ज़ान अल मिस्री से दीक्षा ली और आध्यात्मिक ढंग की शिक्षा ग्रहण की। गुरु ने शिष्य पर कृपादृष्टि करते हुए अपनी पुत्री का विवाह इनसे कर दिया। तत्पश्चात् वह तबरेज़ गए और इमाम अबु नस्र हफ़्दा से हदीस का ज्ञान प्राप्त किया तथा उन्हीं दिनों अपनी प्रसिद्ध पुसतक 'शरहअल - सुन्ना वा इल मसालेह' लिखी। अंत मे वह अपनी जन्मभूमि ख्वारिज़्म चले आए और वहाँ एक खानक़ाह स्थापित की तथा कुबराविया सूफी संप्रदाय का प्रसार किया। दूर-दूर से लोग उनकी खानकाह में आध्यात्मिक शिक्षा लेने और दीक्षित होने आते थे।
ख्वारिज़्म पर मंगोलों के आक्रमण के समय १० जमादी-उल औवल ६१४/१३ जुलाई, १२२६ को वीरगति प्राप्ति की।
वे महान् लेखक भी थे। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ये हैं - अल उसूल अल शरह, रिसाला फ़ी अल सुलूक, रिसाला अल तुरूक, तवली अल तनवीर, तफ़्सीर, लुम्मआत-अल सुलूक, रिसाला अल तुरूक, तवली अल तनवीर, तफ़्सीर, लुम्मआत-अल-लईम, हिदायत अल तालिबीन इत्यादि।
�ां. ग्रं. - दारा शिकोह : सफ़ीनतुल औलिया (उर्दू अनुवाद) कराँची, १९६१,१४०-१४२; गुलाम सर्वर : खज़ीनतुल आस्फ़िया, भाग २, २५८ - २६१; सुल्तान हुसेन : मिर्जा, मजालिस - उल - उश्शाक़, बंबई, ८४; रेवर्टी : तब्काते नासरी (अंग्रेज़ी अनुवाद) ११००, बराऊन : फ्रारस का साहित्यिक इतिहास, भाग २,४३८; जामी : नफ़्हातुल उंस, नवल किशोर, ३५७ - ३५९;(मोहम्मद उमर)