नचिकेता वैदिक युग का एक तेजस्वी ऋषिबालक। इनकी कथा तैत्तिरीय ब्राह्मण (३।११।८) तथा कठोपनिषद् में उपलब्ध होती है। ये वाजश्रवा ऋषि के पुत्र थे जिन्होंने सर्वस्व दक्षिणावाला 'विश्वजित्' यज्ञ किया था। कारणवश रुष्ट होकर पिता ने पुत्र को यमलोक में जाने का शाप दिया। नचिकेता ने यम से तीन वर प्राप्त किए जिनमें सें सबसे महत्वपूर्ण वर अध्यात्मविद्या का उपदेश था। नचिकेता का यह आख्यान महाभरत के अनुशासन पर्व में (७१ अध्याय) तथा वराह पुराण में भी (१९३ अ.- २१२ अ.) तात्पर्य भेद से उपलब्ध होता है। किसी अवांतर काल में इस आख्यान का विकास नासिकेतोपाख्यान के रूप में हुआ जिसमें मूल वैदिक कथा का विशेष परिवर्तन लक्षित होता है, इसके लघुपाठवाले आख्यान का सदल मिश्र ने हिंदी गद्य में अनुवाद किया था।
सं.ग्रं. - बलदेव उपाध्याय : पुराण विमर्श (चौखंभा, काशी, १९६५) पृष्ठ २६२- २७३।(बलदेव उपाध्याय)