नंबियार कुंचन मलयालम कवि (लगभग १७०५- १७७० ई.) इनका जन्म मध्य केरल के कोच्चिस्थान में हुआ था। अंपलप्पुष के देवनारायण नामक शासक के संरक्षण में वहीं बस गए और बाद में ट्रावनकोर के शासक मार्तंड वर्मा के दरबार में प्रविष्ट हुए। अपने यौवनकाल के प्रारंभिक दिनों में कुंचन नंबियार ने भिन्न शैलियों में काव्यरचना की। उनकी प्रारंभिक कविताओं में भगवत्द्दूत, भागवतम्, नलचरितम् और चाणक्यसूत्रम् के नाम गिनाए जा सकते हैं। वह नवीन एवं अद्भत मलयालम काव्यशैली 'तुक्कलप्पाट्ट' के प्रवर्त्तक हैं। तुक्कल द्रुत गति से प्रचालित करनेवाला नृत्य है जिसमें नर्तक स्वयं पद्यबद्ध कहानियों का गायन करत है। नंबियार ने लगभग साठ तुक्कल कविताएँ लिखी हैं जिनमें कल्याणसौंगधिकम्, कार्त्तवीरार्जुनविजयम्, किरातम् सभाप्रवेशम्, त्रिपुरदहनम्, हरिणीस्वयम्वरम्, रूग्मिणीस्वयम्वरम्, प्रदोषमाहात्म्यम्, स्यमन्तकम् एवं घोषयात्रा सम्मिलित हैं। नंबियार ने अपनी तुक्कल कविताओं में नम्र काव्य-शैली का विकास किया है जिसने समाज के सभी वर्गों को आकृष्ट किया है और जिसके द्वारा उन्होंने समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने का प्रयत्न किया है। यद्यपि उन्होंने इतिहास एवं पुराण से ही अपनी कविताओं के लिए कहानियों का चुनाव किया है तथापि समकालीन सामाजिक जीवन के प्रसग में ही उन्हें चित्रित किया है। हास्य एवं व्यंग के भी वे महान् कवि माने जा सकते हैं। उन्होंने मलयालम में अहंकारी सामंतों, भ्रष्ट कर्मचारियों, लोभी और स्त्रीपरायण ब्राह्मणों ओर तुच्छ नायरों इत्यादि समस्त श्रेणी के लोगों पर व्यंग किया है। उनकी अनेक पदोक्तियाँ सर्वसाधारण में यथेष्ट प्रचलित हैं और उन्होंने लोकोक्तियों का स्थान ग्रहण कर लिया है।(जी. बालमोहन तंपी)