नंददास के जन्मसंवत्, वंशपरिचय आदि पर अभी तक यथेष्ट प्रकाश नहीं डाला जा सका है। इनके विषय में जो कुछ आजतक लिखा गया, उसे असंदिग्ध नहीं कहा जा सकता। नाभा जी ने भक्तमाल में केवल इतना कहा है कि नंददास 'रामपुर ग्रामनिवासी' और 'चंद्रहास-अग्रज सुहृद' थे।
'सुकवि-सरोज' (संवत् १९९० में प्रकाशित,) के अनुसार एटा जिले के अंतर्गत सोरों के पास रामपुर ग्राम में नंददास का जन्म हुआ था। गोसाईं तुलसीदास के यह छोटे भाई थे, इस प्रचलित आख्यायिका को भी इसके द्वारा समर्थित किया गया है, क्योंकि इधर सोरों को भी एक पक्ष ने तुलसीदास जी का जन्मस्थान मान लिया है। परंतु यह मत विवादास्पद बना हुआ है।
चंद्रहास इनके बड़े भाई थे, या नंददास चंद्रहास से बड़े थे, अथवा उनके भाई के सुहृद अर्थात् मित्र थे और फिर यह चंद्रहास कौन थे यह निश्चित नहीं हो सका है। नंददास की कथा जिस '२५२ वैष्णवों की वार्ता' में आई है, वह भी इसपर सम्यक् प्रकाश नहीं डाल सकी है। 'भक्तमाल' के आधार पर केवल इतना ही निष्कर्ष निकलता है कि नंददास जी रामपुर के रहनेवाले थे, और चंद्रहास के बड़े भाई थे, या छोटे भाई के मित्र थे, तथा गोसाईं बिट्ठलनाथ जी के शिष्य थे। वेणीमाधोवदास कृत 'मूल गोसाई चरित' में नंददास को तुलसीदास जी का अनुज लिखा गया है। किंतु शोध करने पर विश्वास नहीं होता कि इसमें कहाँ तक तथ्य है। अत: नंददास का तुलसीदास जी का अनुज होना पुष्ट प्रमाणों के अभाव में सिद्ध नहीं होता।
नंददास जी १६वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विद्यमान थे इतना ही इनके जीवनकाल के संबंध में कहा जा सकता है।
काव्य की दृष्टि से अष्टछाप में सूरदास के बाद नंददास का ही स्थान माना जा सकता है। परिमार्जित भाषा और कोमलकांत पदावली इनकी रचनाओं में देखते ही बनती है। माधुर्य और प्रसाद पद पद पर है। वस्तुत: कृष्णभक्ति साहित्य में इनका बहुत ऊँचा स्थान है। नंददास को ब्रजकोकिल' या ब्रजभाषा का 'जयदेव' कहने में कोई अत्युक्ति न होगी।
नंददास जी की रचनाओं में अत्यंत प्रसिद्ध और उत्कृष्ट हैं 'रासपंचाध्यायी' और 'भ्रमरगीत'। यद्यपि भागवत की छाया लेकर ये लिखी गई हैं, इन दोनों की अपनी मौलिकता स्पष्टत: दीखती है। 'भ्रमरगीत' अन्य कवियों ने भी लिखे हैं, परंतु नंददास का 'भ्रमरगीत' सबसे अनूठा है। इन दोनों रचनाओं में शृंगार और करुणरस का पूर्णपरिपाक हुआ है।
'रासपंचाध्यायी' और 'भ्रमरगीत' के अतिरिक्त काशी नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित खोज की रिपोर्ट से नंददास के रचे इन १३ ग्रंथों का और पता लगा है -
इनमें से नाममाला, नाम-चिंतामणि-माला और मानमंजरी ये तीन भिन्न-भिन्न पुस्तकें नहीं हैं, अपितु एक ही पुस्तक के ये तीन अलग-अलग नाम हैं
सुदामाचरित्र, प्रबोधचंद्रोदय नाटक, गोवर्धनलीला, रासमंजरी, ज्ञानमंजरी, विज्ञानार्थप्रकाशिका और हितोपदेश ये सात पुस्तकें भी नंददास जी की रची कही जाती हैं। नासिकेतपुराण भाषा, प्रबोधचंद्रोदय नाटक, विज्ञानार्थ प्रकाशिका और हितोपदेश ये इनकी रचनाएँ कदाचित् ही हो सकती हैं। भाषा और शैली भिन्न हैं ही, यह बात भी है कि अष्टछाप के किसी भी भक्तकवि ने इस प्रकार के अन्य विषय पर काव्यरचना नहीं की है। संभव है, रचनाएँ किसी अन्य नंददास या नंददासों की हों।
(वियोगीहरि)