धौंकनी मशीनें धौकनी मशीनों का उपयोग भट्ठियों में अग्नि को निरंतर प्रज्वलित तथा तीव्र बनाए रखने के लिए होता है। इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : (१) जो किसी स्वयचालंक यंत्र (इंजन) के साथ एकांगी होती हैं, जैसे लोहपरिष्करणशालाओं की भट्ठियों के धमन इंजन तथ धमन टरबाइनें; (२) जो किसी स्वतंत्र इंजन अथवा बिजली की मोटर द्वारा पट्टों अथवा किरों के माध्यम से चलाई जाती हैं, जैसे रूट ब्लोअर (root blower) और पंखे। इनका उपयोग क्रमश: ढलाई के कारखाने में लोहा गलाने की कोयला भट्ठियों तथा लोहारखानों की भट्ठियों और अँगीठियों में होता है।
चित्र १. वाष्पचालित धौंकनी इंजन
क. वाष्प प्रवेश तथा ख. वाष्प प्रदाय मार्ग
लोहपरिष्करणशालाओं (iron refineries) में काम करनेवाले धमन इंजन बहुधा प्रत्यक्ष क्रियात्मक सिद्धांत पर ऊर्ध्वाधर प्रकार के ही होते हैं। इनके हवा देनेवाले सिलिंडर का व्यास ८० से १०० इंच (२ से २.५ मीटर) तक और वाष्पसिलिंडर का व्यास प्राय: ३६ से ४४ इंच (०.९ से १.१ मीटर) तक हुआ करता है तथा दोनों सिलिंडरों के पिस्टन एक ही दंड पर लगे होते हैं, जिनका स्ट्रोक लगभग ५ फुट (१.५ मीटर) हुआ करता है। इनकी इतस्ततोगामी गति को धुरे की परिभ्रामी गति में परिणत करने के लिए क्रॉसहेड (crosshead), योजी दंड (connective rod) और क्रैकों (cranks) का उपयोग होता है और धुरे के दोनों तरफ बहुत बड़े तथा भारी गतिपाल चक्र भी लगाए जाते हैं। हवा सिलिंडर में दोनों तरफ के ढक्कनों पर चमड़ेयुक्त पल्लव वाल्व (flap valve), अथवा रबरयुक्त चकती वाल्व (disc valve) लगे होते हैं, जिनका एक जोड़ा तो वायुमंडल से हवा खींचता है और दूसरा जोड़ा सिलिंडर में संपीड़ित हवा को प्रदाय भाग की तरफ भेजता है। कई इंजनों में तो पंजरसंयुक्त चपटे वाल्वों का भी उपयोग किया जाता है, जिन्हें गति देनेवाली यंत्रावली मुख्य धुरे से संचालित की जाती है।
कई परिष्करणशालाओं में संयुक्त इंजन (compound engine) का भी उपयोग किया जाता है, लेकिन अधिक तथा विश्वसनीयता के नाते इकहरे सिलिंडरयुक्त इंजनों का उपयोग ही सर्वप्रिय हो रहा है। धमन इंजनों को लोहपरिष्करणशालाओं की वात्याभट्ठियाँ (blast furnaces) लगातार बहुत लंबे समय तक निरंतर चलानी पड़ती हैं, अत: इसी कारण उनमें सरलता तथा विश्वसनीयता का गुण होना अत्यंत आवश्यक है।
कई लोह परिष्करणशालाओं में वाष्प के स्थान पर, वात्याभट्ठियों द्वारा उत्पादित गैसों से अंतर्दहन इंजनों को चलाकर भी कार्य किया जाता है, लेकिन इन गैसों को भली भाँति छान तथा शुद्ध कर के ही इंजनों में प्रयोग करना चाहिए। आजकल तो ये गैस इंजन भी विश्वसनीयता में वाष्प इंजनों से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं, साथ ही भट्ठी की उपोत्पादित (byproduct) गैसों का उपयोग हो जाने के कारण इनका संचालनव्यय वाष्प इंजनों से भी कम पड़ता है।
आजकल प्रत्येक वात्याभट्ठी में हवा देने के लिए अलग अलग इंजन लगाने का प्रचलन है, लेकिन इन सबके वायुवाहक (air delivery) नलों को प्रधान-वायु-नल प्रणाली से इस प्रकार संबंधित कर देते हैं कि किसी भी इंजन से किसी भी वात भट्ठी को संपीड़ित हवा पहुँचाई जा सकती है, जिसकी दाब प्राय: से ७ पाउंड प्रति वर्ग इंच हुआ करती है। यह भट्ठी की ऊँचाई तथा उसके लोह परिष्करण के कार्य की दर पर निर्भर करता है। कई अमरीकी परिष्कणशालाओं में यह दाब १२ पाउंड प्रति वर्ग इंच रहती है और कहीं कहीं तो २० पाउंड प्रति वर्ग इंच तक भी रखते हैं। धमन इंजनों की वायु-प्रदाय-क्षमता प्राय: २०,००० से ३०,००० घन फुट प्रति मिनट तक होती है। चित्र १. में लिलीशेल कं.लि. ऑव ओकेगेट्स, श्रॉप्शिर (Lilleshall Co. Ltd. of Oakengates, Shropshire), के बने वाष्पचालित धमन इंजन की बनावट दिखाई है।
चित्र २. टरबाइननुमा धौंकनी यंत्र
क. वायु प्रवेश तथा ख. वायु प्रदाय मार्ग
टरबाइननुमा धौंकनी - इसका सृजन, द्रुत गति से परिभ्रमण करनेवाले यंत्रों के स्वाभाविक गुणों से आकर्षित होकर ही, भट्ठियों में हवा देने के काम के लिए, विशेषज्ञों ने किया। इस प्रकार के यंत्रों का अपेक्षाकृत कम संचालन खर्च, थोड़ी जगह घेरना, हलकी बुनियाद पर्याप्त होना, उच्च कार्यक्षमता तथा विश्वसनीयता आदि महत्वपूर्ण गुणों के कारण लोहनिर्माण तथा धातु-कर्म-उद्योगों में प्रचार बढ़ता जा रहा है। रचना की दृष्टि से इसकी बनावट बहुपद-अपकेंद्री वायुसंपीडक (multistage centrifugal air compressor) से बहुत कुछ मिलती जुलत है। यदि इस धौकनी यंत्र से प्राप्त की जानेवाली वायु की दाब २५ पाउंड प्रति वर्ग इंच से अधिक बढ़ाना अभीष्ट न हो, तो इस यंत्र को जल द्वारा शीतलीकृत करने के उपयंत्र की भी आवश्यकता नहीं रहती, जैसा वायुसंपीडक यंत्रों में उक्त दाब से नीचे ही आवश्यक हो जाता है। अत: इस प्रकार इस यंत्र की अभिकल्पना बहुत ही सरल तथा सस्ती हो जाती है। इन्हें भाप टरबाइन अथवा बिजली की मोटर की धुरी से सीधा ही जोड़ दिया जाता है, जिससे इनकी परिभ्रमण गति २,००० से ३,५०० चक्कर प्रति मिनट तक सरलता से रखी जा सकती है। इस सीमा में २०,००० से ६०,००० घन फुट हवा ३ से ३० पाउंड प्रति वर्ग इंच की दाब पर भट्ठियों के वायुवाहक मार्ग में प्रविष्ट करवाई जा सकती है।
ऊष्मा-गतिक-दक्षता के दृष्टिकोण से वातभट्ठियों से निकलने वाली गैसों से चालित धौंकनी इंजन ही सर्वश्रेष्ठ समझे जा सकते हैं, लेकिन इस गैसों को उपयोग के पहिले साफ करने तथा इंजनों के इतस्ततोगामी पुर्जों की सार सँभाल में जो अधिक खर्च करना पड़ता है उसके कारण गैसचालित इंजनों की दक्षता, आर्थिक दृष्टि से गिर जाती है।
टरबाइननुमा धौंकनियों से वायु के प्रदाय की मात्रा तथा इन्हें चलानेवाली भाप टरबाइन, अथवा मोटर की चाल, पर नियंत्रण रखना भी एक विशेष समस्या हो जाती है। इस प्रकार के यंत्रों की एक विशेषता यह होती है कि जब तक वे एक समान गति से चलते रहते हैं तब तक उनके द्वारा वायु का अंत:श्वसन तथा उसी के अनुसार प्रदाय की मात्रा भी एक समान रहती है, पर ज्योंही वात्याभट्ठी की क्रिया के किसी कारण से प्रदायमार्ग में रुकावट पैदा होकर वायु की दाब बढ़ती है, धौंकनी के अंत:श्वासित वायु की मात्रा भी घट जाती है, जिसका प्रभाव यंत्र की चाल पर भी पड़ने लगता है। अंत:श्वासित और प्रदायित वायु की मात्रा तभी तक एक समान रह सकती है जब तक वात्याभट्ठी को एक समान ही प्रभारित रखा जाए, जो संभव नहीं होता। अत: हवा की दाब एक समान न रहने के कारण वात्या भट्ठी के क्रियाकलाप में भी अनेक दोष पैदा हो जाते हैं। इनसे बचने के लिए टरबाइननुमा धौंकनियों के चालक यंत्रों के साथ एक पिटोनली लगा दी जाती है, जिसका एक तेलयुक्त रिले के द्वारा आवश्यकतानुसार नियंत्रण होता रहता है। इसके द्वारा प्रदायित वायु की मात्रा पर २ से ३ प्रति शत तक ही नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एक दूसरी समस्या यह भी बड़ी होती है कि जब प्रदाय प्रणाली की दाब किसी सीमा तक बढ़ जाती है तब वायु के अंत:श्वसन की मात्रा भी एक निश्चित क्रांतिक सीमा से भी कम हो जाती है, जिससे यंत्र की चाल में अस्थिरता आ जाती है तथा वायु के संकुचन का क्रम टूटने लगता है। अत: धौंकनी यंत्र में ऐसा प्रबंध किया जाता है कि जिस दाब पर वायु प्रदायित की जाती है उसी के अनुपात से अंत:श्वसन भी होता रहे, जिससे धौंकनी यंत्र एक समान शक्ति से स्थिरतापूर्वक चलता रहता है, चाहे इसके द्वारा प्रदायित सब की सब वायु भट्ठी में खर्च हो या वायुमंडल में विसर्जित कर दी जाए। इसके लिए प्रदाय भाग में एक एकतरफा वाल्व (nonreturn valve) लगा दिया जाता है, जिससे धौंकनी में से एक बार आई हुई संपीडित वायु उसी मार्ग से वापस न लौट सके। इस वाल्व के पूर्व ही एक मोचन वाल्व (release valve) भी लगा दिया जाता है, जो एक कमानी तथा तेल के रिले से संबंधित होने के कारण, तेल के रिले द्वारा स्वयं खुलकर हवा भी आवश्यक मात्रा को वायुमंडल में विसर्जित कर देता है, जिससे धौंकनी यंत्र स्थिरतापूर्वक चलता रहता है।
चित्र २. में पार्सन का दोहरा प्रवाहयुक्त टरबाइननुमा धौंकनी यंत्र दिखाया है, जिसमें वायु का अंत:श्वसन दोनों सिरों से और प्रदाय मध्य भाग से होता है। टरबाइन द्वारा इसे चलाने पर ६०,००० घन फुट हवा प्रति मिनट खींचकर २३ पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब पर प्रदायित कर सकता है। यदि चाहें तो यहीं यंत्र ३० पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब पर ४३,००० घन फुट हवा प्रति मिनट खींच सकता है।
धौंकनी यंत्रों से संबंधित वायु तथा गैस की नलियों का व्यास- यदि धौंकनी यंत्रों में ठंड़ी हवा पहुँचना अभीष्ट हो तो नलियों का व्यास लगभग १८ इंच रखा जाता है। इसी हवा को यदि गरम कर पहुँचना हो तो नलियों के अंदर चारों तरफ अग्निसह ईटों की एक परत लगानी होती है, जिससे यह व्यास दुगना या ढाई गुना बढ़ जाता है। यदि धौंकनी इंजन गैस द्वारा चलाया जाए तो नलियों का व्यास लगभग दो मीटर रखना होता है, जिसमें अग्निसह ईटों की तह भी सम्मिलित है। इन नलों के साथ उचित अंतर पर उनके प्रसार तथा धूलसंग्रहण का प्रबंध भी करता होता है।(ओकारनाथ शर्मा)