धूलि फुफ्फुसार्ति (Pneumoconiosis) भिन्न भिन्न पदार्थों की धूल के कण, जैसे रेत, ऐस्बेस्टस, पत्थर या फ्लिंट के कण या साधारण धूल, जिसमें अनेक प्रकार के कण मिले रहते हैं, जब श्वास द्वारा फुफ्फुसों में बहुत समय तक पहुँचते रहते हैं तो फुफ्फुसों के तंतुओं में कुछ प्रतिक्रियाएँ हो जाती हैं। इनका नाम धूलिफुफ्फुसार्ति है। यह रोग व्यवसायजन्य है और उन्हीं व्यक्तियों को होता है जिनको धातुओं की ऐसी फैक्टरियों में काम करना पड़ता है जहाँ धातुओं के कण वायु के साथ फुफ्फुसों में जाते रहते हैं। सब प्रकार के कण हानिकारक नहीं होते। बहुत सी वस्तुओं के कणों से कोई हानि नहीं होती। काम करने के स्थान में वायु के आवागमन में त्रुटि, स्वच्छता की कमी तथा मद्य का प्रयोग रोगोत्पत्ति के सहायक कारण होते हैं। यह रोग विशेषकर पुरुषों को होता है और २२ से ४० वर्ष की आयु में प्रकट होता है। श्वास द्वारा फुफ्फुस में गए हुए कणों के रूप और आकार पर इसकी उत्पत्ति बहुत निर्भर करती है। कण जितना बड़ा होगा तथा असम या खुरदरा होगा उतनी ही तीव्र उसकी प्रतिक्रिया होग और फुफ्फुस में परिवर्तन अधिक होंगे।
रोग के निम्नलिखित रूप माने जाते हैं :
धूलिफुफ्फुसार्ति के विशेष लक्षण जीर्ण खाँसी, श्वासकष्ट और श्लेष्मा का स्राव (बलगम का निकलना) हैं।(शिवारण मिश्र)