धर्मसंसद् 'ऐंग्लिकन समुदाय' शीर्षक लेख में इसका उल्लेख हुआ है कि चर्च ऑव इंग्लैंड में दो प्रांत हैं- कैंटरबरी और यार्क। दोनों प्रांतों के पुरोहितों की अपनी अपनी सभा होती है जो धर्मसंसद् (कॉनवोकेशन) कहलाती है। प्रत्येक धर्मसंसद् में एक प्रवर सदन (अपर हाउस) और अवर सदन (लोअर हाउस) है। बिशप ही प्रवर सदन के सदस्य होते हैं। अवर सदन में साधारण पुरोहितों के प्रतिनिधि सम्मिलित हैं। कैंटरबरी और यार्क के आर्चबिशप राजा की अनुमति पाकर धर्मसंसद् का सम्मेलन बुलाते हैं और उन्हीं विषयों के संबंध में परामर्श किया जाता है जिनके विषय में राजा की अनुमति मिल चुकी होती है। रोम से अलग हो जाने के बाद चर्च ऑव इंग्लैंड के संगठन में उन धर्मसंसदों ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। १६वीं तथा १७वीं शती में उनका विशेष महत्व रहा है। सन् १६६१ ई. में उनके द्वारा 'बुक ऑव कामन प्रेयर' का संशोधन संपन्न हुआ। आजकल ये धर्मसंसद् समय समय पर मिलकर धर्म संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करती हैं। सन् १९२० ई. में इंग्लैंड की लोकसभा ने चर्च आव इंग्लैंड (असेंबली) पावर्स ऐक्ट, नामक अधिनियम पारित किया है। इस अधिनियम द्वार चर्च ऑव इंग्लैंड की असेंबली का संगठन हुआ है। इस असेंबली में तीन सदन हैं- (१) हाउस ऑव विशप्स (इसमें कैंटरबरी और यार्क के उपर्युक्त प्रवर सदन सम्मिलित हैं)। (२) हाउस ऑव क्लेर्जी (कैंटरबरी और यार्क के अवर सदन)। (३) हाउस आव लेरी (कैंटरबरी तथा यार्क धर्मप्रांतों के जनसाधारण के प्रतिनिधि इसके सदस्य हैं।)