धर्म महामात्र कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 'धर्म महामात्र' जैसे कर्मचारियों का उल्लेख न होना इस बात का सूचक है कि ये कर्मचारी चंद्रगुप्त मौर्य के बाद ही धर्म की अभिवृद्धि के लिए नियुक्त किए गए होंगे। अशोक के पंचम शिला लेख ने इसकी पुष्टि भी हो जाती है जिसमें कहा गया है कि उसने धर्मानुशासन के निमित्त अपने शासन के १४वें वर्ष (ल. २६० ई. पू.) में 'धम्म महामात्र' (सं. धर्म महामात्र) नामक राजकर्मचारी नियुक्त किए। ये कर्मचारी पहले कभी राज्य में नियुक्त नहीं किए गए थे।

पंचम अभिलेख में धर्म महामात्रों का कर्तव्य भी निर्दिष्ट किया गया है, जो इस प्रकार है- क. धर्म का संस्थापन; ख. धर्म का प्रचार; ग. धर्म में श्रद्धा रखनेवाले व्यक्तियों की रक्षा करना; घ. श्रमण अथवा ब्राह्मण सभी वर्गों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना; ङ. पीड़ित लोगों की विशेष देखरेख करना और उन्हें सामयिक सहायता देना। (ई. हूल्श, E. Hultzsch : 'कॉर्पस इंस्क्रिप्शनम् इंडिकेरम्, वाल्यूम फर्स्ट)

शासकीय व्यवहार में धर्म महामात्रों का कार्य अत्यंत सराहनीय था; क्योंकि वह केवल समाज के अवांछनीय तत्वों का निरोध ही नहीं करते थे, बल्कि अपने मृदु व्यवहार और ज्ञान से धर्म की मर्यादा स्थापित करने में शासन की शक्ति सुदृढ़ करते थे। इससे यह स्पष्ट है कि धर्म महामात्र की कोई अन्य व्याख्या- जैसा डॉ. विंसेट स्मिथ आदि विद्वानों ने की है- स्मिथ ने धर्म महामात्र से 'धर्मनिरीक्षक' (सेंसर) का अभिप्राय लिया है- उचित नहीं है।(चंद्रचूड मणि)