धन्वंतरि १. देवताओं के वैद्य तथा आयुर्वेदशास्त्र के प्रवर्तक देवता हैं। इनकी उत्पत्ति महाभारत तथा पुराणों में समुद्रमंथन के समय निकले हुए १४ रत्नों के अंतर्गत कही गई है। समुद्र में से प्रकट होते समय इनके हाथ में अमृतकलश था। वेदों में धन्वंतरि नाम नहीं आता है। उपलब्ध सुश्रुत संहिता के अनुसार धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं। शल्यचिकित्सा आदि इन्होंने इंद्र से सीखी।
२. हरिवंश पुराण के अनुसार, अष्टांग आयुर्वेदशास्त्र के प्रवर्तक काशेय राजा के वंश में उत्पन्न होने के कारण काशिराज एवं धन्वराजा के पुत्र होने के कारण धन्वंतरि कहे जाते हैं। हरिवंश के अनुसार काशेय से इनकी परंपरा इस प्रकार है : काशेय का पुत्र दीर्घतप, दीर्घतप का पुत्र धन्व, धन्व का पुत्र धन्वंतरि, धन्वंतरि का पुत्र, केतुमान, केतुमान का पुत्र भीमरथ (भीमसेन), भीमरथ का पुत्र दिवोदास, दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन; प्रतर्दन का पुत्र वत्स, तथा वत्स का पुत्र अलर्क। काशेय के पौत्र धन्व ने समुद्रमंथन से उत्पन्न अब्ज देवता की आराधना से अब्ज के अवतार धन्वंतरि को पुत्र रूप में पाया।
३. उपलब्ध सुश्रुतसंहिता में काशीपति दिवोदास के लिए धन्वंतरि नाम आता है। आयुर्वेद के विद्वान् होने के कारण इनको धन्वंतरि दिवोदास कहते हैं। अग्निपुराण और गरुड़ पुराण में भी काशी के राजा धन्वंतरि की चौथी पीढ़ी में दिवोदास का नाम आता है। अग्निपुराण (२७९, २९२ अ.) में नर, अश्व तथा गोवंश संबंधित आयुर्वेद का ज्ञान भी सुश्रुत और धन्वंतरि दिवोदास के बीच गुरु शिष्य की वार्ता के रूप में वर्णित है। धन्वंतरि दिवोदास ने आयुर्वेद का उपदेश सुश्रुत को दिया। उपदेष्टा काशीपति दिवोदास को राजा कहा गया है। इसी से वार्ता में राजाओं से संबद्ध बातों का उल्लेख है, जैसे राजाओं को विष देने के संबंध में, पानी, वायु आदि की विष से रक्षा, सैनिक चिकित्सा आदि।
चरकसंहिता में धन्वंतरि शब्द बहुवचन में आता है (चि. अ. ५।६४)। चरकसंहिता में गर्भनिर्माण के संबंध में धन्वंतरि के मत का उल्लेख मिलता है, परंतु यह मत उपलब्ध सुश्रुत संहिता में नहीं है। काश्यपसंहिता में 'धन्वंतरये स्वाहा' कहकर आहुति देने का उल्लेख है। चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के नवरत्नों में धन्वंतरि नाम का एक भिषग्वर था।
धन्वंतरि शब्द का अर्थ है वह व्यक्ति जो शल्यशास्त्र में पारंगत हो जाता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जो चिकित्सक शल्यशास्त्र में निपुण होते थे उनको धन्वंतरि कहा जाता था। सुश्रुतसंहिता के अनुसार आयुर्वेद के आठों अंगों में शल्य अंग ही प्रधान है। इसलिए शल्य अंग में निपुण वैद्य को प्रारंभ में धन्वंतरि कहते थे। पीछे से यह धन्वंतरि वैद्य के अर्थ में चल पड़ा। जो भी चिकित्साकार्य में निपुण हुआ उसे धन्वंतरि कहने लगे। इसी से शल्यचिकित्सों के संप्रदाय या शाखा को भी धन्वंतरि नाम दिया गया। संक्षेपत: धन्वंतरि शब्द पहले एक व्यक्ति के लिए था, पीछे से योग्य चिकित्सक के लिए प्रचलित हुआ और अब वैद्य के अर्थ में प्रचलित है, ऐसा प्रतीत होता है।(अत्रिदेव विद्यालंकार)