धनीराम (स्वामी; सन् १८८०-१९६२) का कीर्तिस्थल जैनेंद्र गुरुकुल, पंचकूला है। समय की माँग की पूर्ति हेतु आपने अपने परम शिष्य श्री कृष्णचंद्र जी के साथ, जैन मुनि वेश के परिवर्तन उपरांत, इसकी स्थापना की थी। यह शिक्षाकेंद्र पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से सात मील दूर (अंबाला-कालका-मार्ग पर) स्थित है।

स्वामी जी आजीवन ब्रह्मचारी रहे। आपका जन्म पट्टी (पंजाब) में ओसवाल वंश में हुआ था। आपके दीक्षागुरु थे महास्थविर स्वामी शिवदयाल जी। गुरु के स्थिर वास में आप १६ वर्ष तक रावलपिंडी में रहे। वहीं पर आपने 'जैन सुमति मित्रमंडल' की स्थापना की, जिसके अंतर्गत देशविभाजन से पूर्व जैन शिक्षण, साहित्यिकशोध और प्रकाशन विषयक अनेक संस्थाएँ कार्य करती रही। १९४७ के शरणार्थियों और अनाथ बालक बालिकाओं का आश्रयस्थान भी गुरुकुल पंचकूला था। 'जैन पाणिग्रहण विधि' शीर्षक हस्तलिखित ग्रंथ स्वामी जी की उच्चकोटि की सर्जन-प्रतिभा का परिचायक है।

सं.ग्रं. - पं. कृष्णचंद्राचार्य (संपादित): श्रमण, वर्ष १३, अंक ९- १०; श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस।(नवरत्न कपूर)