धन किरणें (Positive Rays) अत्यल्प दाब पर किसी गैस नलिका में विद्युद्विसर्जन करने पर कैथोड किरणों की उत्पत्ति होती है। ये किरणें इलेक्ट्रॉनों की धाराएँ मात्र हैं, यह तथ्य फैराडे और क्रुक्स ने १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही ज्ञात कर लिया था और इसकी भली प्रकार पुष्टि कर ली थी। अत्यंत तीव्र विद्युत्क्षेत्र के प्रभाव में इलेक्ट्रॉन गैसीय परमाणुओं से विलग हो जाते हैं और तत्काल प्रबल वेग से धनाग्र की ओर भागते हैं। द्रुत पलायन के क्रम में वे गैस के उदासीन परमाणुओं से टकराते हैं और उनके एक एक इलेक्ट्रॉन को भी मुक्त कर देते हैं। इस प्रकार मुक्त होनेवाले इलेक्ट्रॉन भी अपने मुक्तिदाता इलेक्ट्रॉनों की भाँति बड़े वेग से धनाग्र की ओर भागते हैं और इन्हीं के प्रवाह से कैथोड किरणों की सृष्टि होती है।

गैसीय परमाणुओं में से इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से यह अनुमान करना सर्वथा स्वाभाविक ही है कि अवशिष्ट परमाणु धनावेशिक होंगे, धनायनों (positive ions) की भाँति व्यवहार करेंगे और ये इलेक्ट्रानों की विपरीत दिशा में अर्थात् ऋणाग्र (cathode) की ओर चलेंगे, किंतु इनका वेग, इनकी अपेक्षाकृत बृहत् संहति के कारण, इलेक्ट्रानों की अपेक्षा पर्याप्त कम होगा। ऋणाग्र के सन्निकटवर्ती गैसीय परिवेश में उत्पन्न होनेवाली मंद उदीप्ति (faint glow) संभवत: इन्हीं धनायनों के कारण उत्पन्न होती होगी।

उपर्युक्त तार्किक अनुमानों की सत्यता सर्वप्रथम गोल्डस्टीन (Goldstein) ने १८९५ ई. में प्रयोग द्वारा प्रमाणित की। विसर्जन नलिका के बाहर निकल जाएँ और एक विद्युर्शी, या फोटो प्लेट, पर पड़ें। परिणाम संतोषजनक रहा और अनुमान यथार्थ सिद्ध हुए। फोटो प्लेट और विद्युद्दर्शी ने अपने ऊपर पड़नेवाले आयन प्रवाह का धनायनों की धारा ही उद्घोषित किया। गोल्डस्टीन ने इन किरणों को कैनाल किरण (Kanalstrahlen या Canal rays) की संज्ञा दी। १८९८ ई. में डब्ल्यू. वीन (W. Wien) ने इन आयनों के वेग व (v) और संहति म (m) एवं विद्युत् आवेश आ (e) के अनुपात म/आ (m/e) का मान ज्ञात किया। उनके प्रयोग के परिणाम निम्नलिखित थे :

वेग व (v) = ३.६ १० सेंमी. प्रति सेकंड

उपर्युक्त मानों का ज्ञात करने के लिए वीन ने संयुक्त चुंबकीय एवं विद्युत् क्षेत्रों की विधि का ही अवलंबन किया था, जो इलेक्ट्रॉनों के लिए प्रयुक्त हुई थी, यद्यपि कैनाल किरणों के लिए चुंबकीय क्षेत्र का प्रयोग कर सकना अपेक्षाकृत अधिक कठिन था। कैथोड किरणों से कैनाल किरणों की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इनका वेग उनके वेग का केवल गुना होता है।

कालांतर में रेडियो सक्रिय पदार्थों से ऐल्फा किरणों के उत्सर्जन का ज्ञान हुआ और यह पता चला कि ये किरणें भी ऋणाग्रों की ही ओर आकृष्ट होती हैं। अत: ये भी कैनाल किरणों की ही सदृश गुणसंपन्न प्रतीत हुई। अतएव कैनाल किरणों और ऐल्फा किरणों को एक ही वर्ग में रखा गया और इस वर्ग की किरणों को धन किरण कहा गया।

आ/म (e/m) तथा व (v) ज्ञात करने की तीन विधियाँ - वीन ने बहुछिद्रित ऋणाग्र ऋ से होकर आनेवाली धन किरणों को एक अत्यंत संकीर्ण पथ से गुजारा, जिससे इनका पतला किरणपुंज प्राप्त हुआ। यह किरणपुंज स्थिर विद्युत् क्षेत्र में प्रविष्ट किया गया, जो अ (+ विद्युत् आवेशित) और ब (- विद्युत् से आवेशित) पट्टिका अ द्वारा चित्र में प्रदर्शित दिशा में प्रतिकर्षित (repel) होकर यह किरणपुंज एक विद्युच्चुंबकीय क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ, जो कागज के तल के लंबवत् रखे हुए चुंबकीय ध्रुवों उ (N) और द (S) के बीच स्थित था। इस प्रकार सामने रखे हुए प्रतिदीप्तिशील पर्दे (fluoerscent screen) प पर परिलक्षित होनेवाले प्रकाश के पैच (patch of light) में दो प्रकार के विस्थापन होते थे - एक तो चुंबकीय क्षेत्र के द्वारा और दूसरा उसके लंबवत्, विद्युत् क्षेत्र के द्वारा।

मान लिया विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता (intensity of electric field) वि (E) तथा आवेशित कण का आवेश आ (e) है, तो

चित्र १.

आवेशित कण पर कार्यरत विद्युद्वल आ वि (e E) होगा। यदि कण की संहति म (m) हो तो क्योंकि बल = संहति त्वरण, इसलिए आवेशित कण का त्वरण (acceleration) त = आ वि/म (a = e E/m)। यदि विद्युत् क्षेत्र में ल (१) दूरी पार करने में स (f) सेकंड में स्थानांतरण क (x) हो तो क = (x = a t2), जहाँ स स्थानांतरण में लगा हुआ समय है।

यदि आवेशित कण का वेग व (v) हो, तो स = । अत:

... ... ... (१)

इसी प्रकार चुंबकीय क्षेत्र च (H) द्वारा आवेशित कण पर लगनेवाला बल, च आ व (H e v) तथ तज्जनित त्वरण

चित्र २.

च आ व/म (H e v/m) होगा। अत: कारण कण के स्थानांतरण ख (y) के लिए।

... ... ... (२)

... ... ... (३)

यह एक सरल रेखा का समीकरण है, जिसपर वे सभी विंदु स्थित होंगे जिनके वेग, व (v), समान हैं। यह रेखा चित्र २ में उ प द्वारा प्रदर्शित की गई है। यदि विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्रों की तीव्रताएँ इस प्रकार समंजित कि जाएँ की उनसे उत्पन्न होनेवाले स्थानांतरण या विच्छेद समान हों, अर्थात् क = ख (x = y), तो

... ... ... (४)

पुन: समीकरण (२) और (१) से,

... ... ... (५)

या ख = घ क [Y2 = k x] ... ... ... (६)

जहाँ घ = एक स्थिरांक है।

समीकरण (६) एक परवलय (parabola) व्यक्त करता है, जो चित्र २. में उअब द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इस वक्र पर पड़नेवाले समस्त विंदुओं के लिए आ/म का मान समान है। यदि पूर्ववत् क = ख (y = x) हो तो

धन किरण का विश्लेषण (Positive Ray Analysis) - १९११ ई. में सर जे. जे. टॉमसन ने उपर्युक्त विधि को धनकिरण के विश्लेषण के एक साधन के रूप में प्रयुक्त किया। उनकी प्रायोगिक व्यवस्था का मुख्य अंग एक विशाल बल्ब ब था (देखें चित्र ३), जिसके अंदर अत्यल्प दाब पर प्रायोगिक गैस भरी थी ताकि धन किरणों के उत्पादन के लिए अत्यंत उच्च विद्युत क्षेत्र स्थापित रखा जा सके। ऋणाग्र (cathode) एक लौह नलिका (iron-tube) अ थी, जिसमें एक

चित्र ३.

अत्यंत पतले छिद्र का अक्षीय मार्ग (axial channel) बना था। अभीष्ट चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति विद्युच्चुंबक च द्वारा होती थी। इसकी ध्रुवीय सतहें (polar surface) शेष चुंबक से पृथक्कृत कर दी गई थीं और इनको बैटरी से संयुक्त कर इन्हीं के बीच विद्युत् क्षेत्र भी उत्पन्न कर दिया जाता था। ऋणाग्र के अक्षीय मार्ग से निकलकर विद्युत् एवं चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा विक्षिप्त होनेवाला धन किरणपुंज सामने रखी हुई फोटोग्राफी की पट्टिका, अथवा अन्य किसी प्रकार के प्रतिदीप्तिशील पर्दे प पर पड़ती थी।

इस प्रकार इस विधि में विद्युत् एवं चुंबकीय क्षेत्र एक ही स्थिति और दिशा में आरोपित किए गए थे। जैसा चित्र ४. में दिखलाया

श्

चित्र ४.

गया है, मान लीजिए कि विद्युत् और चुंबकीय क्षेत्र दोनों ही ग (z) अक्ष के समांतर आरोपित किए गए हैं और आवेशित कण क (x) अक्ष के समांतर व (v) वेग से गमन कर रहा है,

तो

तथा कण पर चुंबकीय बल (Magnetic force) = च या व (Hev)। चूँकि यह बल ख अक्ष (y-axis) की ओर कार्य करेगा, अत: उस दिशा में कण का त्वरण (acceleration) दख/द स. (dy/dt) होगा।

किंतु

श्

यदि ल (1) दूरी पार करने के बाद कण में ख (y) परिमाण में विक्षेपजन्य स्थानांतरण (displacement) उत्पन्न हो, अर्थात् क = ल (x = 1) हो तो

..=

खंडश: समाकलन (Integration by parts) द्वारा

=

= अ (A) मान लिया

जहाँ अ (A) एक स्थिरांक है, जो केवल चुंबकीय क्षेत्र के वितरण (distribution) तथा उस क्षेत्र में कणों के पथ पर ही निर्भर करता है और सभी कणों के लिए समान है। अत:

म व ख = आ. अ (m v y = e. A).

या ख = ... ... ... (१)

पुन: विद्युत् क्षेत्र के लिए विद्युद्बल = आ. वि (electric force -e.E)

उपर्युक्त परिणाम में द व/द स (dv/dt) को त्याग दिया गया है, क्योंकि लघु स्थानांतरणों के लिए वेग में परिवर्तन त्याज्यप्राय है।

जहाँ

है और केवल कण के पथ पर विद्युत् क्षेत्र के वितरण पर ही निर्भर करता है अत: समीकरण के लिए इसका मान समान होगा।

... ... ... (२)

समीकरण (१) और (२) को संयुक्त करने पर

... ... ... (३)

तथा ... ... ... (४)

समीकरण (४) की सहायता से अनेक परवलय (parabola) प्राप्त किए गए जो चित्र ५. में प्रदर्शित हैं। इसमें उ ख (O Y) अक्ष चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्पन्न स्थानांतरण के संमातर है और उ ग (O Z) अक्ष विद्युत् क्षेत्र के द्वारा उत्पन्न स्थानांतरण के समांतर है। यद्यपि स्थिरांक अ (A) और ब (B) के मान ज्ञात नहीं किए जा सके हैं, तथापि इतना तो स्पष्ट है कि इनके मान सभी कणों के लिए समान हैं, चाहे वे जिस गैस के हों। सरल रेखा उ ज उन सभी कणों के संघातों का विंदुपथ (locus) है जिनके वेग समान हैं। इसी प्रकार आ/म (e/m) के समान मानवाले कणों द्वारा पट्टिका पर प्रदत्त विंदु, ख/ग = स्थिरांक (y2/z = constank), परवलय पर

चित्र५.

स्थित होंगे। यह समीकरण (४) से स्पष्ट है। मूल विंदु उ (origin, O) वह विंदु है, जहाँ अनावेशित अणु और परमाणु पट्टिका पर आघात करते हैं।

द्रव्यमान वर्णक्रमलेखी (Mass Spectrograph) - धन किरण विश्लेषण की विधि की सुग्राहकता में अत्यधिक वृद्धि कर उसके परिणामों की सुगमतर रीति से व्याख्या करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय ऐस्टन (Aston) ने सन् १९१८ में अपने द्रव्यमान वर्णक्रमलेखी नामक यंत्र के रूप में प्राप्त किया। इसमें धन आयनों की धाराएँ विद्युत् एवं चुंबकीय क्षेत्रों में एक साथ प्रविष्ट न होकर पहले विद्युत् क्षेत्र में प्रविष्ट होकर विसरित (disperse) होती हैं और उसके पश्चात् चुंबकीय क्षेत्र द्वारा फोकस की जाती हैं।

धन किरणें दो समांतर विदरों (slits) अ अ और ब ब (देखें चित्र ६.) द्वारा एक पतले किरणपुंज के रूप में संयमित होकर पट्टिका स तथा द के बीच विद्युत् क्षेत्र में प्रविष्ट होती हैं। उपर्युक्त पट्टिकाएँ किरणपुंज की दिशा से कुछ झुकी हुई होती हैं, जिसके कारण किरणें अपने पूर्वमार्ग से को (q ) कोण विचलित होकर व विंदु की ओर चली जाती हैं और साथ ही उनमें विक्षेपण (dispersion) भी हो जाता है। यदि विद्युत् क्षेत्र के अंदर धनायनों को ल (१) दूरी पार करनी पड़ती हो और उनका स्थानांतरण ग (z) हो तो सूत्र (२) द्वारा,

... ... ... (५)

इसी प्रकार यदि चुंबकीय क्षेत्र द्वारा किरणों का विचलन को (f ) हो तो सूत्र १. से

... ... ... (६)

समीकरण (५) और (६) को अवकलित (differentiate) करने पर

इसीप्रकार

अर्थात्

यह संबंध तभी सत्य है जब आ/म (e/m) स्थिरांक हो।

विंदु O पर विक्षेपण का परिमाण = द को (a d q ), जहाँ द को (dq ) कोणीय विक्षेपण (angular dispersion) है।

यदि विक्षेपित किरणपुंज सीधे ख दूरी तक चला जाता तो कुल विक्षेपण = (क+ख) द को [(a + b) dq ],

किंतु चुंबकीय क्षेत्र इस विक्षेपण का निराकरण (annulment) कर देता है,

\ ख दकौ = (क+ख) दकौ [b. df = (a+b) dq ]

या

श्

इससे स्पष्ट है कि किरणों को फ पर फोकस करने के लिए कौ = ४ को [f = 4q ], अर्थात् ख = क होना चाहिए। प फ स्थान पर

चित्र ६.

फोटोग्राफी की पट्टिका रखकर फोकस पुंज का चित्र लिया जा सकता है। इस प्रकार आ/म (e/m) के विभिन्न मानवाले आयन-किरणों का चित्र पट्टिका पर विभिन्न स्थलों पर प्राप्त होगा और उनका एक वर्णक्रम (spectrum) प्राप्त होगा। विभिन्न पदार्थों के वर्णक्रमों से उन पदार्थों की रचना पर अभूतपूर्व प्रकाश पड़ता है।

यदि कुछ ऐसी गैसों के साथ उपर्युक्त प्रयोग किया जाए जिनके लिए आ/म (e/m) का मान ज्ञात हो, तो उनके लिए प फ दूरी ज्ञात कर वर्णक्रम पैमाना (spectrun scale) बनाया जा सकता है। इस पैमाने पर अन्य गैसों के आ/म (e/m) का मान ज्ञात किया जा सकता है।