िद्वपद प्रमेय (Binomial Theorem) बीजगणित में धन (+ ) अथवा ऋण (- ) चिन्ह से जुड़े हुए दो पदों को द्विपद कहते हैं। द्विपद प्रमेय वह प्रसिद्ध सूत्र है, जिससे द्विपद के किसी घात का प्रसार लिखा जा सकता है। मान लें द्विपद क्र + ख (a+b) है और म (n) कोई धनात्मक पूर्ण संख्या है। तो द्विपद सूत्र यह होगा
(क +
ख)म =
कम +
म कम-१
कम-२ ख२ +
.........+
म क खम-१ +
खम
(a+b)n=an+n
an-1
an-2 b2+.........+n a bn-1+bn
म (n) के किसी भी निश्चित घनात्मक पूर्ण संख्या के मान के लिए इस सूत्र की सत्यता की जाँच की जा सकती है। मान लें, म (n) = ३, तो वास्तविक गुणन से
(क + ख)३ = (क + ख) (क + ख)२ = (क + ख) (क२ + २क ख + ख२)
= क३ + ख२ ख + ३क ख२ + ख३
(a+b)3 = (a+b) (a+b)2 = (a+b) (a2+2ab+b2)
= a3+3a2b+3 ab2+b3
यही सूत्र समीकरण (१) के दाहिने पक्ष में (n) को ३ के बराबर रखने पर प्राप्त होता है। म (n) के व्यापक मान के लिए सूत्र (१) की उपपत्ति आगमन (induction) विधि से होती है। सूत्र (१) के दाहिने पक्ष को स्मरण रखने के लिए ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक पद में उसके पूर्वगामी पद की अपेक्षा क (a) का घात १ कम और ख का १ अधिक होता जाता है (प्रथम पद में ख (b) का घात ० शून्य है।)। प्रत्येक पद का गुणांक पूर्वगामी पद के गुणांक को उसी पूर्व पद के घात से गुणा कर के ख (b) के घात से १ अधिक संख्या के क्रम गुणित से भाग देने पर प्राप्त होता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर पद लिखने पर जब गुणांक शून्य आने लगे तब प्रसार को पूर्ण समझ लेना चाहिए।
भिन्नात्मक और ऋण घात - जब घात म (n) धनात्मक पूर्ण संख्या नहीं होता तब सूत्र (१) में पदों का अंत नहीं होता, यही नहीं, यदि ख (b) और क (a) को आपस में बदल दें तो एक दूसरा सूत्र प्राप्त होता है, यद्यपि वाम पक्ष में कोई अंतर नहीं आता। इन दो प्रसारों में से एक ही विहित है, अर्थात् वस्तुत: वह जो अभिसारी है। कम (an) से आरंभ होनेवाला प्रसार तब वैध है जब क > ख (a > b) अर्थात् यदि क (a) और ख (b) वास्तविक सख्यांएँ हैं तो जब क (a) संख्यात्मकत: ख (b) से बड़ी है। प्राय: सूत्र को निम्नलिखित रूप में रखने में सुविधा रहती है :
जिसमें च (x) <१। इस सूत्र में च (x) को ख/क (b/a) के बराबर रखने पर और दोनों पक्षों को कम (an) से गुणा करने पर सूत्र (1) प्राप्त होता है। इस सूत्र में चस (x)r वाला पद व्यापक पद कहलाता है। स (r) को क्रमानुसार ०, १, २,......रखने से प्रसार के विभिन्न पद प्राप्त होते हैं।
इन सूत्रों को विशेष प्रतिबंधों के साथ उन स्थितियों में भी प्रयुक्त किया जा सकता है जब क, ख, च, म (a, b, x, n) में से एक या अधिक राशियाँ मिश्र हों। द्विपद के स्थान में बहुपद के घात के प्रसार को बहुपद प्रमेय कहते हैं। इसकी स्थापना लाइबनिटज़ ने की थी।
उपयोग - इस प्रमेय का विशेष उपयोग सन्निकटन की विधियों में होता है। जब च (x) कोई छोटी संख्या होती है, तब
१ +
म च, १ +
म च +
म (म - १) च२.....
[1+n x, 1+n x+n
(n-1) x2,...]
क्रमानुसार (१ + च)म[(१+x) n] के क्रम १, २...के सन्निकट मान हैं उदाहरणत:
प्रथम क्रम का सन्निकट मान = १०/३(१-०.०००३) = ३.३३३२२२ है, जो ६ दशमलव स्थानों तक शुद्ध है।
इतिहास - द्विपद प्रमेय का इतिहास अत्यंत मनोरंजक है। धन पूर्णसंख्यात्मक घात के लिये यह सर आइज़ैक न्यूटन से पहले भी ज्ञात था, किंतु ऋण और भिन्नात्मक घातों के लिए न्यूटन ने इसकी खोज सन् १६६५ में की और इसकी व्याख्या रॉयल सोसायटी ऑव लंदन के सेक्रेटरी को लिखे १६७६ ई. के दो पत्रों में की। कुछ व्यक्तियों की धारणा है कि यह सूत्र न्यूटन की कब्र पर खुदा है, किंतु यह असत्य है। इस प्रमेय की दृढ़ उपपत्ति आबेल ने १८२६ ई. में दी और उन दशाओं में भी इसकी स्थापना की जब घात और द्विपद के पद सम्मिश्र होते हैं।(हरिश्चंद्र गुप्त)