द्रौपदी पांचाल के राजा द्रुपद की कन्या जिसका वास्तविक नाम कृष्णा था। इसे (यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण) यज्ञसेनी, पांचाली, सैरध्रीिं, पंचमी तथा नित्ययौवना भी कहते हैं। इसके पितामह पृषत् के नाम पर कभी कभी इसे पार्षती भी कहा जाता है। जब दुर्योधन ने द्यूत का षड्यंत्र रचा और युधिष्ठिर उसमें सब कुछ हार चुके तो अंत में उन्होंने द्रोपदी को भी दाँव पर लगा दिया। एकवस्त्रा होने पर भी दु:शासन ने भरी सभा में इसे विवस्त्र करने की चेष्टा की। तब कृष्ण ने चीर बढ़ाकर इसकी लाज बचाई।
पाँचों पतियों में से प्रत्येक से इसे एक एक पुत्र हुआ। युधिष्ठिर से प्रतिविंध्य, भीम से श्रुतसोम, अर्जुन से श्रुतकीर्ति, नकुल से शतानीक और सहदेव से श्रुतकर्मा। ये पाँचों महाभारत में अश्वत्थामा द्वारा मारे गए। द्रौपदी अंतिम दिन तक युद्धस्थल में उपस्थित रही और हिमालय यात्रा में भी पांडवों के साथ थी। उस यात्रा में पहले इसी का देहांत हुआ और अपने पुत्रों की हत्या का बदला लेने के लिए जब इसने अपने पतियों से प्रार्थना की तो युधिष्ठिर ने बड़ी सांत्वना दी और अंत में भीम से अश्वत्थामा को पकड़ लाने के लिए कहा। अर्जुन उसके पीछे गए पर उससे एक बहुमूल्य रत्न पा जाने पर उसे छोड़ दिया। यह रत्न अर्जुन ने भीम को दे दिया और जब यह द्रौपदी को मिला तो उसे कुछ शांति मिली और उसने उसे युधिष्ठर को भेंट कर दिया। वैसे पांडवों में से उसे अर्जुन सबसे अधिक प्रिय थे।
(रामाज्ञा द्विवेदी)