द्रूस लेबनान निवासी इस्माइली शियाओं का संप्रदायविशेष जो धर्मपरिवर्तन कराने के कार्य से विरत रहता है। द्रूसों की अनुमानित जनसंख्या लगभग १,००,००० है। इसमें से करीब करीब आधे लोग जबालुद-दरूज़ नाम के फारसदेशीय रहस्यवादी ने स्थापित किया था। किंतु इसके सात धर्मनिर्देश (Seven Commandments) एवं प्राचीनतम धर्मग्रंथ किसी 'हमज़ा' की रचना हैं जो मिस्त्र के छठे फातिमाई खलीफा अल-हाकिम-बी अमरिल्लाह (९९६-१०२१) का भूतपूर्व मंत्री और धर्मप्रचारक था। द्रूस लोग कट्टर एकेश्वरवादी हैं किंतु वे ईश्वर (सर्वोच्च सत्ता) के ७० अवतारों में विश्वास करते हैं और मानते हैं कि आगे उसका अवतार नहीं होगा। उन्हें आशा है कि अल-हकीम पुन: आएँगे और सच्चे धर्म की प्रतिष्ठा करेंगे। कहते हैं, द्रूस ईसा मसीह को ईश्वर का अवतार मानते हैं किंतु मोहम्मद को नहीं। उनके अनुसार ईसाई धर्मंग्रथ और कुरान प्रेरणाप्राप्त पुस्तकें अवश्य हैं किंतु सच्चे धर्मनिर्देश की प्राप्ति का वे अपने गुह्य और पवित्र धर्मशास्त्रों द्वारा ही संभव मानते हैं। वे कभी धार्मिक विवाद नहीं उठाते किंतु आवश्यकतानुसार उन्हें बहुसंख्यकों- कट्टर मुस्लिमों अथवा ईसाइयों के धर्म को अनुगत बनाने का निर्देश है। इनकी कुल आबादी के लगभग १० प्रतिशत लोगों की गणना आक़िलों (विवेकशील व्यक्तियों) में होती है जिनसे समुदाय के नेतृत्व की आशा की जाती है। दूसरे इस्माइली समूहों की भाँति द्रूसों में पहले प्रधान होते थे लेकिन उनकी स्थिति धार्मिक नेताओं की अपेक्षा अधिकतर सामंत सरदारों जैसी थी।

द्रूस युद्धप्रिय पर्वतीय लोग हैं। उन्होंने ओटोमन तुर्कों की मिस्त्र विजय में सहायता की और तत्पश्चात् ओटोमन सुलतानों के विरुद्ध विद्रोह किया। आगे चलकर अधिदेशकाल (Mandate period) (१९२०-४५) में इन्होंने फ्रांसीसियों के विरुद्ध विद्रोह कर अपने को अलग कर लिया और जब १९४५ में लेबनान स्वतंत्र हुआ तब द्रूसों, ईसाइयों और कट्टर मुस्लिमों ने ऐसा राजनैतिक रूप स्थिर किया जो सभी के लिए अनुकूल प्रतीत होता है।(मोहम्मद हबीब)