दौलत खाँ मई इसके वंश के लोग पंजाब में लूट पाट और कुछ जमींदारी से जीवनयापन करते थे। पहले यह मुगल सम्राट् जहाँगीर की सेवा में मंसबप्राप्त सरदार की स्थिति में नियुक्त हुआ। मुगल दरबार में इसे खवास खाँ की उपाधि मिली। सेवाभावना से प्रसन्न होकर जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ ने इसे ढाई हजार का मंसब प्रदान किया। इसकी वीरता से प्रभावित होकर इसे दौलत खाँ की उपाधि दी। १६३५ में ठट्ठा का सूबेदार नियुक्त हुआ। इस काल में उसने अपने को सफल प्रशासक सिद्ध किया। सम्राट् ने इसके मंसब में वृद्धि करके इसे कंधार में नियुक्त किया। लेकिन इसके कंधार वास में हुई घटना ने इसके संपूर्ण जीवन को कलंकित कर दिया। ईरान के शाह अब्बास द्वितीय ने कंधार दुर्ग को घेर लिया। शीत के कारण शाहजहाँ दौलत खाँ को तुरंत सैनिक सहायता नहीं भेज सका। दौलत खाँ ने शाह अब्बास से संधि कर ली और दुर्ग का अधिकार उसे सौंप दिया। यह हिंदुस्तान वापस आ गया और लज्जित होकर शेष जीवन के लिए एकांतवासी हो गया।