देवीसिंह, राजा मुगलसम्राट् शाहजहाँ ने इसे दो हजारी मंसबदार बनाया और राजा की उपाधि दी। जुझार सिंह से ओरछा राज्य छीन कर इसको दिया गया। कुछ दिन वहाँ का प्रबंध स्थायी करके यह सम्राट् के पास लौट गया। शाहजहाँ ने इसे बीजापुर पर अधिकार करने के लिए भेजा। युद्ध में कुशलता दिखाने से प्रसन्न होकर दरबार में इसका सम्मान और बढ़ गया। इसके पश्चात् राजकुमार मुरादबख्श के साथ बलख और बदख्शाँ में इसने वीरता का परिचय दिया। पहले औरंगजेब और फिर दाराशुकोह के साथ कंधार में बड़ी निष्ठा से सैनिक कर्तव्य का पालन किया। लगभग दो वर्ष मालवा के पास भिलसा का फौजदार रहा। राजकुमार औरंगजेब का रास्ता रोकने के लिए मालवा में महाराज जसवंतसिंह का सहायक नियुक्त हुआ। यह चुपके से औरंगजेब से जा मिला। औरंगजेब ने इसका मंसब बढ़ाकर ढाई हजारी (२५०० सवार) का कर दिया। कुछ दिन पुन: भिलसा का फौजदार नियुक्त रहा। इसके बाद यह विद्रोही चंपत बुंदेला के विरुद्ध कालवा के निकट भेजा गया। यूसुफजई जातियों के दमनार्थ भी यह नियुक्त किया गया था। इसके शेष जीवन का वृत्तांत अप्राप्य है।