दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं।
दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्षों की दूरी पर हैं। प्रकाशवर्ष (light-year) खगोलीय दूरी का मात्रक है। प्रकाश १,८६,००० मील प्रति सेकंड के वेग से एक वर्ष में जितनी दूरी तय करता है उसे एक प्रकाशवर्ष कहते हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं।
मोलिन्यूक्स (Molyneux) ने अपनी पुस्तक डिऑप्ट्रिका नोवा (Dioptrica Nova) में लिखा है कि रॉजर बेकन (Roger Bacon) को, जिसकी मृत्यु सन् १२९५ में हुई थी, दूरबीन और खुर्दबीन का सैद्धांतिक ज्ञान था, लेकिन दूरदर्शी का सर्वप्रथम निर्माण सन् १६०८ के लगभग हॉलैंड निवासी हैंसलिपरशे (Hanslippershey) नामक व्यक्ति ने किया। इसके बाद क्रमश: गैलिलिओ, केपलर, हाइगेंज़, ब्रैडले, ग्रेगरी और न्यूटन आदि ने दूरदर्शी का व्यवस्थित यंत्र के रूप में विकास किया। दूरबीन के विकास में गैलिलिओ का महत्वपूर्ण योग है। गैलिलिओ ने अपने दूरदर्शी की सहायता से संसार को यह बता दिया है कि कोपर्निकस की सूर्यकेंद्रीय (heliocentric) ज्योतिर्व्यवस्था सत्य है और टालिमी की भूकेंद्रीय (geocentric) व्यवस्था अशुद्ध है।
दूरदर्शी मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं : (१) अपवर्तन दूरदर्शी (refracting telescope) तथा (२) परावर्ती दूरदर्शी (reflecting telescope)।
अपवर्तन दूरदर्शी - ये दूरदर्शी भी दो प्रकार के हैं : गैलिलिओ प्रकार के दूरदर्शी तथा (२) केपलर प्रकार के दूरदर्शी। प्रत्येक वर्तन दूरदर्शी के दो मुख्य अवयव होते हैं : अभिदृश्यक लेंस (objective) और नेत्रक (eyepiece)। ये दूरदर्शी की नलिका के सिरों पर स्थित होते हैं।
गैलिलिओ किस्म के दूरदर्शी में अभिदृश्यक अभिसारी लेंस (converging lens) और नेत्रक अपसारी लेंस (diverging lens) होता है चित्र १. में इस प्रकार के दूरदर्शी द्वारा प्रतिबिंब निर्माण प्रदर्शित किया गया है।
चित्र १. गैलिलिओ के दूरदर्शी की संरचना
ता. अभिदृश्यक तथा ले. उपनेत्रक लेंस।
गैलिलिओ दूरदर्शी की उपयोगिता और असुविधाएँ निम्नलिखित हैं :
उपयोगिताएँ - (१) सीधा प्रतिबिंब (erectimage), (२) प्रदीप्त दृष्टिक्षेत्र (Illuminated Field of view), (३) कम लंबाई की दूरदर्शी नलिका, (४) उत्तल और अवतल लेंसों क संयुक्त व्यवस्था के कारण किसी अंश तक विपथन दोषों (aberrations) का निराकरण।
असुविधाएँ - १. इस दूरदर्शी का दृष्टिक्षेत्र (field of view) विस्तृत नहीं होता तथा २. इसमें क्रूसतंतु (crosswires) की व्यवस्था नहीं हो सत, इसलिए माप संबंधी कार्यों के लिए यह अनुपयुक्त होता है।
केपलर दूरदर्शी - इसमें अभिदृश्यक लेंस और नेत्रक दोनों अभिसारी (converging) होते हैं। चित्र २. में केपलर दूरदर्शी द्वारा प्रतिबिंबनिर्माण की विधि का प्रदर्शन किया गया है।
चित्र २. केपलर का दूरदर्शी
ता अभिदृश्यक तथा ले नेत्रक लेंस, प वस्तु, २� माध्य-मिक तथा २ अंतिम प्रतिबिंब
केपलर दूरदर्शी में प्रतिबिंब साधारणतया उल्टा बनता है और दूरदर्शी नलिका की लंबाई भी अधिक होती है, लेकिन इसका दृष्टिक्षेत्र (field of view) अधिक होता है। इसके अतिरिक्त इसमें क्रूसतंतु की व्यवस्था भी हो सकती है। इसलिए माप संबंधी कार्यों के लिए यह अधिक उपयुक्त है। आजकल आकाश के ज्योतिष्पिंडों और पृथ्वी पर स्थित दूरवर्ती वस्तुओं के देखने में अधिकतर दूरबीनों का ही उपयोग होता है। आकाश के ज्योतिष्पिंडों को देखने के लिए प्रयुक्त होनेवाले दूरदर्शी ज्योतिष-दूरदर्शी (astronomical telescope) कहलाते हैं। इनमें प्रतिबिंब, जैसा चित्र २. में दिखाया गया है, उलटा बनता है। जहाँ तक ज्योतिष्पिंडों का प्रश्न है, उनके प्रतिबिंब का उल्टा या सीधा होना विशेष महत्व नहीं रखता, किंतु पार्थिव उपयोग में आनेवाले दूरदर्शी में प्रतिबिंब का सीधा होना आवश्यक है। पार्थिव उपयोग में आनेवाले केपलर दूरदर्शी को पार्थिव दूरदर्शी (terrestrial telescope) की संज्ञा दी गई है। पार्थिव दूरदर्शियों में सीधा प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए एक अतिरिक्त लेंस व्यवस्था का उपयोग होता है। चित्र ३ में पार्थिव दूरबीन की प्रकाशीय व्यवस्था प्रदर्शित है।
चित्र ३. पार्थिव दूरदर्शी
ता१ नेत्रक तथा ता२ अभिदृश्यक लेंस; ले अतिरिक्त लेंस, जो अंतिम प्रतिबिंब को सीधा करता हैं; प वस्तु, बिं१ प्रथम बिंब तथा बिं२ अंतिम प्रतिबिंव है।
अपवर्तन दूरदर्शी का अभिदृश्य लेंस - एक अच्छे अपवर्तन दूरदर्शी में उसके अभिदृश्यक लेंस का वर्णविपथन से रहित होना आवश्यक है। वर्णविपथन (chromatic aberration) के कारण प्रतिबिंब कुछ रंगीन दिखाई देता है। वर्णविपथन के दोष से रहित लेंस व्यवस्था को अवर्णक लेंस व्यवस्था (achromatic system of lenses) कहते हैं। अवर्णकता प्राप्त करने के लिए एक उच्च विक्षेपण (high dispersion) वाले ऋण लेंस (negative lens) का निम्न विक्षेपण (low dispersion) के धन लेंस के साथ युग्म बनाया जाता है। सैद्धांतिक विश्लेषण करने पर यह पाया गया कि वर्णविपथन के दोष से रहित लेंस-युग्म एक सीमा तक गोलीय विपथन (spherical aberration) से भी विमुक्त होता है। फोटोग्राफी के लिए दूरदर्शी में कभी कभी तीन अभिदृश्यक लेंसों (triple object glass) का उपयोग किया जाता है।
अभिदृश्यक लेंस के निर्माण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना पड़ता है :
परावर्तन दूरदर्शी - परावर्तन दूरदर्शियों का अभिदृश्य दर्पण (mirror) होता है, लेंस नहीं। ग्रेगरी (Gregory) ने दर्पणों और लेंसों द्वार निर्मित प्रतिबिंबों का विशेष अध्ययन किया। उसने यह बताया कि यदि दर्पणों और लेंसों के धरातल शंकव वक्रता (conical curvantre) युक्त हों तो उनमें विपथन का दोष नहीं होता। शांकब वक्रता के लेंस बनाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसलिए ग्रेगरी ने यह सुझाव उपस्थित किया कि दूरदर्शी के अभिदृश्यक के लिए लेंस के स्थान पर शांकब वक्रता के दर्पण का उपयोग किया जाए। इस अभिदृश्यक दर्पण को परावर्तक (reflector) कहा जाता है। इसको पहले स्पेक्युलम (speculum) भी कहते था। न्यूटन ही प्रथम व्यक्ति था, जिसने परावर्तक दूरबीन का निर्माण किया था। इस यंत्र की सहायता से उसने बृहस्पति के उपग्रहों का और शुक्र के धन्वाकार का निरीक्षण किया था।
परावर्तन दूरबीन में परावर्तक दर्पण का विशेष महत्व होता है। इस दर्पण की श्रेष्ठता इस बात में है कि इसकी पॉलिश धुँधली न पड़े। चार भाग ताँबा और एक भाग टिन की बनी स्पेक्यूलम धातु पर्याप्त कठोर होती है और सफेद पॉलिश को आसानी से पकड़ लेती है।
लीबिख (Liebig) द्वारा काच पर चाँदी की फिल्म चढ़ाने की विधि का आविष्कार होने पर फूको (Foucault) ने सन् १८५७ में यह प्रस्ताव किया कि धातु के स्पेक्यूलम के स्थान पर काच के दर्पण का उपयोग किया जाना चाहिए। धातु के बने दर्पण दो मुख्य कठिनाइयाँ उपस्थित करते थे : १. धातु के दर्पण की पॉलिश धुँधली हो जाने पर नई पॉलिश चढ़ाने के लिए उसको खुरचना पड़ता था। इस खुरचने से दर्पण के पृष्ठ पर विकृति होने की आशंका रहती थी और कभी कभी उसका फिर से घर्षण (grinding) करना पड़ता था। २. इसके अतिरिक्त, ताप (temperature) के परिवर्तन से धातु के दर्पण में प्रसार या संकोच होता था, जिससे उसकी फोकस दूरी में अंतर हो जाता था। काच के दर्पण का रजतपटल यदि धुँधला भी हो जाता है तो आसानी से नया रजतपटल चढ़ा लिया जाता है। आजकल रजतपटल के स्थान पर काच के दर्पण पर ऐल्यूमिनियम का पटल चढाने की प्रथा है। वायु में खुला छोड़ने पर ऐल्यूमिनियम का आक्सीकरण (oxidation) हो जाता है, जिससे यह पटल सख्त और स्थायी बन जाता है।
परावर्तन दूरदर्शी पाँच प्रकार के होते हैं : (१) प्राइम-फोकस दूरदर्शी, (२) न्यूटन दूरदर्शी, (३) कैसेग्रेन दूरदर्शी, (४) ग्रिगोरीय दूरदर्शी तथा (५) काउड (Coude) दूरदर्शी। उक्त दूरदर्शियों में मुख्यत: परावर्तक (reflector) के धरातल की आकृति का अंतर होता है। प्राय: सब परावर्तक दूरदर्शियों में शांकव वक्रतायुक्त अभिदृश्यक दर्पणों का उपयोग होता है। चित्र ४. में न्यूटन दूरदर्शी द्वारा प्रतिबिंब निर्माण की क्रिया समझाई गई है।
चित्र ४. न्यूटन का परावर्तक दूरदर्शी
द. अवतल दर्पण का ध्रुव, न. समतल दर्पण तथा बिं. प्रतिबिंब
प्रत्येक दूरदर्शी में निम्नलिखित गुण यथोचित रूप में अवश्य होने चाहिए :
आवर्धन क्षमता और विभेदकता एक दूसरे पर निर्भर करती हैं। विभेदकता बढ़ाने के लिए आवर्धन बढ़ाना आवश्यक है। दूरबीन की आवर्धन क्षमता आ (M) निम्नलिखित समीकरण से प्राप्त होती है :
आ =
यहाँ को (F) = अभिदृश्यक लेंस अथवा परावर्तक की फोकस, दूरी तथा प (f) = नेत्रक की फोकस दूरी।
विभेदकता का अर्थ है किसी यंत्र की सहायता के बिना, नेत्र से एक प्रतीत होनेवाली दो वस्तुओं को अलग अलग करके दिखने का सामर्थ्य। दूरदर्शी की विभेदकता वि (P) का समीकरण है :
वि =
यहाँ दै (l ) = दूरदर्शी द्वारा संगृहीत प्रकाश का औसत तरंगदैर्घ्य तथ ध्या (D) = दूरदर्शी का अभिदृश्यक का व्यास। उपयोग की दृष्टि से अपवर्तन और परावर्तन दूरबीनें एक दूसरे की पूरक हैं। अपवर्तन दूरदर्शी की फोकस दूरी ताप के साथ नहीं बदलती। इसलिए ज्योतिषीय माप संबंधी कामों के लिए यह अधिक उपयुक्त है, किंतु यह विपथन दोषों से पूर्णरूपेण विमुक्त नहीं होता। इसके अतिरिक्त अपवर्तन दूरदर्शी पकाश के बहुत अच्छे संग्राहक नहीं होते, इसलिए प्रकाश में धुँधले दिखाई देनेवाले ज्योतिष्पिंडों (नीहारिका इत्यादि) के निरीक्षण के लिए अपवर्तन दूरदर्शी उपयुक्त नहीं होते।
परावर्तन दूरदर्शी माप और गणना संबंधी कार्यों के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होते, किंतु इनकी प्रकाशव्यवस्था पूर्ण रूप से अवर्णक होती है। वर्णक्रम चित्र (spectrogram) के कार्य में परावर्तन दूरदर्शी विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। ज्योतिष संबंधी अन्वेषण में प्राय: दो प्रकार के फोटो लिए जाते हैं। ये क्रमश: साधारण फोटो और वर्णक्रम फोटो होते हैं। आकाशीय पिंडों के ताप, रासायनिक रचना एवं वेग (velocity) ज्ञात करने के लिए उनके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के वर्णक्रम का फोटो ले लिया जाता है। त्रिपार्श्व (prism), अथवा परावर्तन या विवर्तन ग्रेटिंग (reflection of diffraction grating) की सहायता से आकाशकीय पिंड से आए हुए प्रकाश को उसके वर्णक्रम (spectrum) में फैला दिया जाता है, और उस वर्णक्रम का फोटो ले लिया जाता है।
दूरदर्शी का आरोहण - दूरदर्शी के आरोहण का उतना ही महत्व है, जितना उसकी प्रकाशीय पूर्णता (optical perfection) का। किसी नक्षत्र की दैनिक गति (diurnal motion) का अनुसरण करने के लिए दूरदर्शी को निरंतर उन्नतांशीय (altitudinal) और दिगंशीय (azimuthal) गति से चलाना होता है। इसके लिए दूरदर्शी का विशेष ढंग से आरोहण करना पड़ता है।
इस सिलसिले में विषुव आरोहण (equatorial mounting) का विशेष महत्व है। इस आरोहण में दूरदर्शी को दो समकोणिक अक्षों (axes) पर स्वतंत्र रूप से घुमाने की व्यवस्था होती है। दूरदर्शी को एक चालक घड़ी या ड्राइविंग क्लॉक (driving clock) द्वारा घुमाया जाता है, जिससे उसकी गति आंतरायिक (intermittent) न होकर एक समान रह सके। दूरदर्शी की इस गति का कंपन रहित होना भी नितांत आवश्यक है, और वेग ऐसा होना चाहिए कि तारे दूरदर्शी के दृष्टिक्षेत्र में बिल्कुल अचल रहें।
कुछ विश्वविख्यात दूरदर्शियों का विवरण निम्नलिखित है :
यरकिज़ (Yerkes) दूरदर्शी - यह संसार का सबसे बड़ा अपवर्तन दूरदर्शी है। इसके अभिदृश्यक लेंस का व्यास ४० इंच है। अमरीका की यरकिज़ वेधशाला में सन् १८९७ में इसका आरोहण हुआ था।
माउंट
विलसन का दूरदर्शी
- इस दूरदर्शी
का आरोहण सन्
१९१९ में अमरीका की
माउंट विलसन
वेधशाला में
किया गया था।
इस दूरदर्शी के
परावर्तक का
व्यास १०० इंच है। इसकी
सहायता से हमारी
आकाशगंगा (galaxy)
से पृथक् रहनेवाले
आकाशीय पिंडों
का निरीक्षण् संभव
हो सका है। इस
दूरदर्शी के परावर्तक
का भार
टन के लगभग है
तथ इसकी गति
संबंधी व्यवस्था
का भार १०० टन है।
जिस गुंबंज में
इसका आरोहण
हुआ है उनका व्यास
१०० फुट और ऊँचाई
१०५ फुट है।
हेल
परावर्तक दूरदर्शी
- डा. एलरी
हेल (Ellery Hale)
के प्रयत्नों के
परिणामस्वरूप
अमरीका में पैलोमॉर
(Palomar)
वेधशाला की
स्थापना की गई।
सन् १९४७ में इस वेधशाला
में २०० इंच व्यास के
परावर्तक का
आरोहण हुआ।
डा. हेल के नाम
पर इस दूरदर्शी
का नाम हेल दूरदर्शी
रखा गया। यद्यपि
इस दूरदर्शी का
संपूर्ण भार
५३० टन है, तथापि
इसका संतुलन
इतनी उत्तम विधि
से किया गया
है कि केवल अश्वशक्ति
की मोटर द्वारा
इसे भली भँाति
घुमाया जा सकता
है। इस दूरदर्शी
का परास (range)
दो अरब लाख प्रकाशवर्ष
है।
रेडियो दूरदर्शी - प्रकाशीय दूरदर्शी में प्रकाश के द्वारा हमें आकाशस्थ पिंडों के विषय में सूचना प्राप्त होती है। रेडियो दूरदर्शी में प्रकाशीय पिंडों द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगों के द्वारा उनकी रचना इत्यादि के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है। सन् १९३१ में जान्स्की
चित्र. ५
द्वार यह घोषणा की गई कि आकाशगंगा या उसके पास के प्रदेशों से रेडियो तरंगें पृथ्वी पर आती है और इन तरंगों से उन प्रदेशों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। रेडियो दूरदर्शी का आधार जान्स्की (Jansky) का उक्त अन्वेष्ण है। रेडियो दूरदर्शी के मुख्य भाग चित्र ५. में प्रदर्शित किए गए हैं। अ (A) एक एरियल (aerial) है, जो परवलयाकार प्याले की आकृति का तारों का जाल होता है और जो आकाश के किसी भी बिंदु की ओर लक्षित किया जा सकता है। केबल (cable) द्वारा यह एरियल रेडियो संग्राही (Receiver) र (R) से संबंधित रहता है। र (R) एक अभिलेखयंत्र (Recorder) म (M) से जुड़ा रहता है। अभिलेख यंत्र एरियल द्वारा ग्रहण की गई रेडियो तरंगों का लेखाचित्र एक वक्र के रूप में बनाता है। इस लेखाचित्र से रेडियो तरंगों के स्रोत के ताप इत्यादि के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है। संसार का सबसे बड़ा और प्रख्यात रेडियो दूरदर्शी अमरीका में जोड्रेल बैंक (Jodrell Bank) में है।
सं.ग्रं. - एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (१९५७); वॉन नॅस्ट्रैड्स सायंटिफिक एनसाइक्लोपीडिया, डी. वॉन नॉस्ट्रैंड कं. इं. न्यूयॉर्क (१९४७); लिटरेचर ऑन जाएंट रिफ्लेक्टर्स पब्लिश्ड बाइ दि माउंट विल्सन ऐंड पैलोमार ऑब्ज़र्वेटरीज़, ८१३, सैंटा बारबरा स्ट्रीट, पैसाडीना, कैलिफॉर्निआ (यू.एस.ए.)।(बसंतलाल जैन)