दुर्वासा प्रसिद्ध ऋषि। अत्रि एवं अनुसूया के तीन पुत्रों में से एक जो रुद्र के अंश से उत्पन्न हुए थ। मार्कंडेय (१७।९) द्वारा विष्णु (१.९.२) पुराण में इन्हें शंकर का अवतार माना गया है। महाभारत (अनु., १६०।१४) के अनुसार त्रिपुर का विनाश करनेवाला शंकर का बाण ही शिशुरूप में उनकी गोद में आ बैठा जिसे दुर्वासा नाम से पुकारा गया। अग्निपुराण (२०।१२) में इन्हें अत्रि का पुत्र और दत्तात्रेय का भाई कहा है।
दुर्वासा बड़े क्रोधी थे। क्रुद्ध होकर शाप देना और प्रसन्न होकर वरदान देना इनका स्वभाव था। शाप के कारण लोग इनसे बहुत डरते थे। इन्होंने शकुंतला को ही नहीं, इंद्र तक को शाप दिया था। कृष्ण जी इन्हें भोजन कराने के बाद इनके पैरों से जूठा पोछना भूल गए तो इन्होंने उन्हें शाप दिया- 'तुम्हारे पैरों में बाण लगने से ही मृत्यु होगी'- यह कथा विष्णु पुराण में है। एक बार इन्होंने अपनी पत्नी कंदला को, जो और्व ऋषि की कन्या थी, शाप से भस्म कर दिया था। इसी प्रकार वपु नामक अप्सरा जब इनको तप विरत करने के लिए देवताओं द्वारा भेजी गई तो उसको दुर्वासा ने गरुड़ पक्षी होने का शाप दिया था।
१८ उपपुराणों में से एक का नाम दुर्वासा पुराण भी है। जीवन भर में दुर्वासा ने कुंती को ही प्रसन्नतापूर्वक वरदान दिया था जिसके फलस्वरूप उन्हें सूर्यदेव से कर्ण ऐसे योद्धा और दानवीर पुत्र की प्राप्ति हुई थी।(रामाज्ञा द्विवेदी)