दीक्षित, शंकर बालकृष्ण (जन्म २४ जुलाई, १८५३, मृत्यु २० एप्रिल १८९८) आपका जन्म दापोली जिले के मुरुड़ गाँव में हुआ था। गणित में आपकी रुचि बचपन से ही थी। विसाजी कृष्ण लेले के सायणवाद संबंधी लेखों को पढ़कर ज्योतिष में भी आपकी रुचि हुई। ठाणा के जनार्दन बालाजी मोडक, जिन्हें आप गुरु मानते थे, के स्नेह ने आपकी यह रुचि और भी अधिक बढ़ा दी।
डॉ. फ्लीट महोदय ने अपनी पुस्तक 'गुप्त इंस्क्रिप्शन्स' में गुप्तों के कालनिर्णय में आपकी सहायता ली थी। इसी प्रकार सीवेल की पुस्तक 'इंडियन कैलेंडर' आपके सहलेखकत्व में ही लिखी जा सकी। इसमें आपने अपने मौलिक विचारों को निर्भीकता के साथ रखा है। अपनी पुस्तक 'भारतीय ज्योतिषशास्त्र' की प्रस्तावना में आपने भारतीय विद्वानों पर पाश्चात्य विद्वानों के प्रभाव का उल्लेख करते हुए हममें आत्मविश्वास की आवश्यकता पर जोर दिया।
'भारतीय ज्योतिषशास्त्र' आपका अमूल्य ग्रंथ है। केवल यही ग्रंथ आपकी कीर्ति को ऊपर करने के लिए पर्याप्त है। वैदिक काल से लेकर अपने समय तक ज्योतिष संबंधी सामग्री एकत्रित कर उसपर आधारित अनुमानों की ऐतिहासिक दृष्टिकोण से आपने विवेचना की है। इसके लिए ५०० से अधिक संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन आपने किया। इसके कारण आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य आदि ग्रंथकारों का परिचय मराठी में सुलभ हो सका। पंचांग संशोधन से संबंधित सामग्री तथा पक्ष और विपक्ष के विभिन्न तर्कों का संग्रह इसमें देखने को मिलता है। इसी ग्रंथ में सायण पंचांग की ग्राह्यता, वेदों की प्राचीनता तथा ज्योतिषशास्त्र में गणित की भारतीयता आदि विषयों में इनके मत भी देखने को मिलते हैं। थीबो, बर्गेस आदि यूरोपीय विद्वानों के उन भ्रमों का जिसमें भारतीय ज्योतिष पर ग्रीस और रोम का प्रभाव देखा जाता था आपने अपने तर्कों से निराकरण किया (भा.ज्यो.पृ. ५१३।)
पाश्चात्य और पौर्वात्य ज्योतिष का आपका अध्ययन गंभीर था। इसीलिए ज्योतिष से संबंधित विषयों पर आप अधिकार के साथ बोलते थे। 'दक्षिण प्राइज कमिटी' तथा गायकवाड सरकार ने आपके इस ग्रंथराज को पुरस्कृत कर गौरव का अनुभव किया। आपके इस ग्रंथ को पढ़ने के लिए अनेक देश-विदेश के विद्वानों को मराठी पढ़ने की स्फूर्ति मिली थी। वैदिक वाङ् मय की संपूर्ण आलोचना वेदांगकालीन ज्योतिष की विवेचना और विद्वानों को कंठित करनेवाले अनेक मौलिक तर्कों के कारण इस पुस्तक की उपादेयता महनीय है।
(हरि अनंत फड़के)